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पढ़ाई को रोज 10 किमी कदमताल, इससे उच्च शिक्षा में रुचि हो रही कम

उत्तराखंड राज्य बने हुए 20 साल बाद भी दूरदराज पहाड़ी क्षेत्रों में 50 फीसद से ज्यादा छात्राएं उच्च शिक्षा के लिए हर रोज 10 से 15 किमी की दूरी तय करने को मजबूर हैं। इस वजह से छात्राओं की उच्च शिक्षा में रुचि कम हो रही है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 06:30 AM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 06:30 AM (IST)
पढ़ाई को रोज 10 किमी कदमताल, इससे उच्च शिक्षा में रुचि हो रही कम
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नई टिहरी। जागरण आर्काइव

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। उत्तराखंड राज्य बने हुए 20 साल बाद भी दूरदराज पहाड़ी क्षेत्रों में 50 फीसद से ज्यादा छात्राएं उच्च शिक्षा के लिए हर रोज 10 से 15 किमी की दूरी तय करने को मजबूर हैं। इस वजह से छात्राओं की उच्च शिक्षा में रुचि कम हो रही है। सियासतदां इस मुद्दे को लेकर कतई गंभीर नहीं हैं। पर्वतीय क्षेत्रों के नाम हर दम सियासी चाशनी छानने वालों ने भी इस समस्या पर गौर करने की जरूरत नहीं समझी। उच्च शिक्षा में इस वजह से छात्राओं का ड्राप आउट बढ़ रहा है। फिलहाल इस मामले में अच्छी बात ये है कि केंद्र सरकार ने सुध ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों के बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने महिला सशक्तीकरण के रूप में इस मामले को लिया। राज्य सरकार से महिला छात्रावास के लिए प्रस्ताव मांगे गए हैं। इससे दूरस्थ दस महाविद्यालयों में छात्रावास बनाने का रास्ता साफ होने जा रहा है।

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स्पेशल आडिट में परतें उधड़ना तय

शिक्षा विभाग में इन दिनों हड़कंप है। इसकी वजह स्पेशल ऑडिट है। लंबे अरसे से शिक्षकों की ये आम शिकायत है कि विभाग में वेतन निर्धारण सही तरीके से नहीं हो रहा है। इसमें मनमानी और नियमों की अनदेखी की जा रही है। ऑडिट के लिए तकरीबन तीन महीने पहले आदेश जारी किए गए थे, लेकिन कोविड-19 के संकट ने इसकी राह में रोड़े अटका दिए थे। अब ऑडिट टीमों ने मोर्चा संभाल लिया है। इससे जिलास्तरीय विभागीय अधिकारी बेचैन हैं। ऑडिट के निशाने पर सरकारी के साथ ही सहायताप्राप्त अशासकीय विद्यालय भी हैं। इन विद्यालयों में शिक्षकों के वेतन निर्धारण के साथ नियुक्तियों को लेकर भी प्रबंधन के खिलाफ शिकायतें शासन को मिलीं थी। शिक्षा विभाग और विद्यालय प्रबंधन की मिलीभगत से चलने वाले खेल का ऑडिट टीम पर्दाफाश कर सकती हैं। ऐसा हुआ तो कानाफूसी से अलग हटकर पहली दफा भ्रष्टाचार की परतें उधड़ती नजर आनी तय हैं।

पिछड़ गए हरिद्वार के दो ब्लाक

पूरे प्रदेश में सिर्फ दो ब्लाक ही ऐसे हैं जो अटल उत्कृष्ट विद्यालय योजना का पूरा लाभ लेने से वंचित रह गए। पिछडऩे में अगड़े साबित होने वाले ये ब्लाक हरिद्वार जिले के हैं। खानपुर और नारसन ब्लाकों में दो-दो के बजाय सिर्फ एक-एक राजकीय इंटर कालेज इस योजना का हिस्सा बन पाए। राज्य के कुल 95 में से 93 ब्लाकों में दो-दो अटल उत्कृष्ट विद्यालय चुने गए हैं। वैसे भी शिक्षा के मामले में इन दोनों ही ब्लाकों की स्थिति अच्छी नहीं है। हरिद्वार जिला केंद्र सरकार की ओर से चयनित उत्तराखंड के दो आकांक्षी जिलों में से एक है। आकांक्षी जिले के रूप में चयन में शैक्षिक पिछड़ापन बड़ा आधार रहा है। ऐसे जिले के एक नहीं बल्कि दो ब्लाक राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में पीछे खिसक गए। यहां ये भी याद रखना होगा कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हरिद्वार से ही सांसद भी हैं।

पढ़ाई के बाद मूल्यांकन भी ऑनलाइन

कोरोना महामारी ने शिक्षा की मुहिम को बड़ी चोट पहुंचाई है। तकरीबन दस महीने बाद भी बोर्ड की 10वीं 12वीं की कक्षाओं को छोड़कर कक्षा एक से 11वीं तक छात्र-छात्राएं ऑनलाइन पढ़ाई के भरोसे हैं। बेहद तेजी और संसाधनों की कमी के साथ शुरू की गई ऑनलाइन पढ़ाई का लाभ शहरी क्षेत्रों में तो मिला, लेकिन दूरदराज ग्रामीण क्षेत्रों में इसका अपेक्षित लाभ नहीं मिला। इन क्षेत्रों की अपेक्षाकृत कम आय वाली आबादी में छात्र-छात्राओं के लिए लैपटॉप और स्मार्ट सुविधा के साथ ही इंटरनेट कनेक्टिविटी आज भी बड़ी चुनौती है। हालांकि सरकारी स्कूलों ने ऐसे क्षेत्रों में विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए वाट्सएप और अन्य माध्यमों के इस्तेमाल की तरकीब निकाली। एससीईआरटी ने वर्कशीट के जरिये पढ़ाई भी कराई तो मासिक टेस्ट भी लिये। अब साल के आखिर में गृह परीक्षाएं कराना भले ही मुमकिन नहीं हो पा रहा हो, लेकिन छात्र-छात्राओं के ऑनलाइन मूल्यांकन की तैयारी जारी है।

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