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उत्तराखंड में सूखते जलस्रोत बने परेशानी, प्रबंधन को एसएमसी का गठन

उत्तराखंड में सूखते जलस्रोतों के प्रबंधन के लिए पहली बार स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट कंसोर्टियम का गठन किया गया है।

By Edited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 03:00 AM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 04:26 PM (IST)
उत्तराखंड में सूखते जलस्रोत बने परेशानी, प्रबंधन को एसएमसी का गठन
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: उत्तराखंड में सूखते जलस्रोतों ने सरकार की पेशानी पर बल डाल दिया है। नीति आयोग की रिपोर्ट में भी पहले ही यह बात सामने आई है कि गुजरे 150 वर्षों में यहां 300 जलस्रोत सूख चुके हैं। लंबे इंतजार के बाद बात समझ आई कि जैव विविधता संरक्षण और स्थानीय लोगों की जलापूर्ति के मद्देनजर जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। इसी कड़ी में वन महकमे के मुखिया की अगुआई में पहली बार प्रदेश में स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट कंसोर्टियम (एसएमसी) का गठन किया गया है। इसमें सरकारी-गैर सरकारी संगठनों के अधिकारियों एवं विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। यह कंसोर्टियम राज्य में धारा प्रबंधन एवं भूजल रिचार्ज की भावी रणनीति तैयार करने के साथ ही वर्षा जल संरक्षण की मुहिम को गति देने के लिए सरकारी-गैर सरकारी संगठनों के मध्य समन्वय पर फोकस करेगा।
नीति आयोग की जलस्रोतों को लेकर जुलाई में आई रिपोर्ट में उल्लेख है कि हिमालयी क्षेत्र में पिछले दशकों में जलस्रोतों के जल स्तर में 60 फीसद की कमी आई है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि हिमालयी क्षेत्रों में 60 फीसद स्थानीय लोग अपने जल की जरूरत के लिए जलस्रोतों पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में जैव विविधता संरक्षण एवं स्थानीय लोगों को जलापूर्ति के दृष्टिकोण से जलस्रोतों के पुनर्जीवन-पुनरूद्धार की जरूरत है। 
उत्तराखंड का 71 फीसद भूभाग वन क्षेत्र है और अधिकतर जलस्रोत वन क्षेत्रों में ही हैं। इसे देखते हुए जलस्रोतों के प्रबंधन के लिए वन विभाग के समन्वय से राज्य में स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट कंसोर्टियम का गठन किया गया है। कंसोर्टियम में प्रमुख मुख्य वन संरक्षक अध्यक्ष, प्रमुख-अपर प्रमुख वन संरक्षक नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन उपाध्यक्ष बनाए गए हैं, जबकि हिमोत्थान सोसायटी के समन्वयक सदस्य सचिव होंगे। 
सदस्यों में मुख्य वन संरक्षक प्रशासन, गढ़वाल, कुमाऊं, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन, अनुश्रवण व मूल्यांकन व प्रचार प्रसार, पूर्व वन संरक्षक एसटीएस लेप्चा, जल संस्थान के पूर्व महाप्रबंधक हर्षपति उनियाल, हेस्को के संस्थापक पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी, पर्यावरण प्रेमी जगत सिंह जंगली, हेनब केंद्रीय विवि श्रीनगर के डिपार्टमेंट आफ रूरल टेक्नोलॉजी विभागाध्यक्ष डा.आरएस नेगी, जल संस्थान के मुख्य महाप्रबंधक अथवा उनके द्वारा नामित अधिकारी, क्षेत्रीय निदेशक केंद्रीय भूजल बोर्ड, निदेशक स्वजल, निदेशक एनएचआइ रुड़की, मुख्य अधिशासी अधिकारी राज्य जल एवं स्वच्छता मिशन, निदेशक भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण को बतौर सदस्य शामिल किया गया है। 
प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जय राज के अनुसार यह कंसोर्टियम नीति आयोग की रिपोर्ट का संज्ञान लेने के साथ ही सभी के सहयोग से राज्य में जलस्रोतों के पुनर्जीवन व पुनरूद्धार की दिशा में प्रभावी कार्यवाही करेगा। यही नहीं, चिराग, पीएसआई, एक्वाडेम, आराध्यम समेत अन्य गैर सरकारी संगठनों के साथ क्षमता विकास एवं नियोजन के दृष्टिगत समन्वय करेगा। इसके साथ ही तकनीकी विशेषज्ञों की सेवाएं लेने को वित्तीय सहयोग के लिए आराध्यम, टाटा ट्रस्ट समेत अन्य संस्थाओं का सहयोग लिया जाएगा।

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