Forest Fire in Uttarakhand : तीस हजार हेक्टेयर जंगल को भारी नुकसान, कुमाऊं क्षेत्र के जंगलों को ज्यादा हानि
Forest Fire in Uttarakhand सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग तीस हजार हेक्टेयर जंगल को भारी नुकसान हुआ है जिसमें कुमाऊं क्षेत्र के जंगलों को ज्यादा हानि पहुंची है। आग ने घोसलों और चूजों को स्वाहा कर दिया जिससे पक्षी विविधता में भारी कमी पाई गई।
जागरण संवाददाता, हरिद्वार : Forest Fire in Uttarakhand : उत्तराखंड के जंगलों को आग से भारी नुकसान पहुंचा है। यह बात एक सर्वेक्षण में सामने आया है। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पक्षी विविधता एवं संवाद प्रयोगशाला के प्रधान अन्वेषक प्रोफेसर एमेरिटस डा. दिनेश भट्ट की शोध टीम ने हाल ही में उत्तराखंड में जंगलों में आग से हुए नुकसान का सर्वे किया।
शोधार्थी हिमांशु बर्गली ने कुमाऊं क्षेत्र, पारुल भटनागर ने धनोल्टी और सौरभ ने पौड़ी व टिहरी क्षेत्र का सर्वे किया। सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग तीस हजार हेक्टेयर जंगल को भारी नुकसान हुआ है, जिसमें कुमाऊं क्षेत्र के जंगलों को ज्यादा हानि पहुंची है।
आग बुझाते हुए एक महिला की जान भी गई
पिछले दो साल तक कोविड के प्रभाव के कारण जंगलों में आमजन की आवाजाही बहुत कम थी, जिससे आग लगने की घटनाएं भी न्यूनतम थी। लेकिन इन दो साल में चीड़, साल और अन्य वृक्षों की पत्तियां जंगल के सतह पर जमा होती रही और जब इस अप्रैल माह में गर्मी और तेज हवाएं चली, तो जंगल में जमा अवशेषों के कारण आग और विकराल हो गई, जिसमें पिथौरागढ़ की एक महिला की आग बुझाते हुए जान भी चली गई और अनेक वनस्पति, पशु व पक्षियों की भारी हानि हुई।
डा. भट्ट ने बताया कि उत्तराखंड में वसंत और ग्रीष्म ऋतु में सभी प्रकार के फल व फूल लगते हैं, जिसमें अनेक प्रकार के कीट-पतंग व पशु-पक्षी निर्भर रहते हैं। इसी समय अधिकांश पक्षी जैसे प्रेनिया, हार्नबिल, बारबेट, वुडपेकर, नटहेच, बुलबुल, फ्लैकत्चेर, वारब्लर्स, पेराकीट्स, आउल, ओरियल आदि कई थ्रश प्रजातियां अपने घोसले झाडिय़ों और पेड़ों या पेड़ों के खोखर में बनाते हैं और अपने चूजों का लालन-पालन करते हैं। जंगल की आग ने इन सबके घोसलों और चूजों को स्वाहा कर दिया, जिससे पक्षी विविधता में भारी कमी पाई गई।
ऐसा माना जाता है कि उत्तराखंड में ज्यादातर आग मानव निर्मित होती हैं, जो अक्सर अवैध रूप से अगले सीजन में घास के बेहतर विकास को बढ़ावा देने के लिए शुरू की जाती है। इनके अलावा जंगल में आग लगाने के लिए पर्यटकों की लापरवाही भी जिम्मेदार है। जैसे सिगरेट फेंकना और मनोरंजन स्थलों से फैली आग। आग से ग्रामीणों को काफी आर्थिक नुकसान हुआ है, क्योंकि जंगल ईंधन, इमारती लकड़ी, भोजन, जैव उत्पाद, ग्रीनहाउस गैस विनियमन, वायु, जल आपूर्ति, कार्बन भंडारण, पोषक चक्रण जैसी वस्तुओं और सेवाओं की श्रृंखला प्रदान करते हैं।
करोड़ों रुपये का नुकसान
इससे वन संपदा और वन्य जीवन को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है। राज्य में लगभग 200 एनटीपीएफ जैसे औषधीय और सुगंधित पौधे, पाषाणभेद, वनहल्दी, आंवला, हरड, हिशालु, किल्मोरा,जंगली बेर, चारा प्रजाति भीमल, बांज-ओक ईंधन की लकड़ी, चीड़-पाइन और इन प्रजातियों के अंकुर और पौधे जंगल की आग के कारण जल गए। महत्वपूर्ण यह कि कूड़े और अवशेषों के नुकसान से मिट्टी की नमी को नुकसान पहुंचता है और मिट्टी के कटाव को बढ़ावा मिलता है।
दुर्भाग्य से वन विभाग की ओर से पांच हजार फारेस्ट गार्डर्स को इसी फायर सीजन में हटाया गया, जिससे आग बुझाने में और भी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इन्होंने आमजन को पूरे फायर सीजन में खेतों में कूड़ा और कृषि अवशेष नहीं जलाने, जंगल की आग को रोकने के लिए दीर्घकालिक और अनुसंधान से जुड़े संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों से समन्वय स्थापित कर योजना बनाने, इकोनामी और ईकोलाजी का समन्वय स्थापित करते हुए कार्य करने का सुझाव दिया। इसमें विषय विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाए।
पिरूल के एकत्रीकरण और इससे आजीविका कैसे बढ़ाई जा सकती है, इसके लिए ठोस नीति बनाई जाए। जंगल की आग को रोकने और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता के लिए स्कूलों में करिकुलर एक्टिविटी करवाई जाए। वन विभाग, राजस्व, पुलिस और महिला मंगल दल, युवक मंगल दल, स्वयं सहायता समूहों एवं आपदा मित्रों से भी जंगल की आग को रोकने में सहयोग लिया जाए। जंगल में आग को रोकने के लिए आधुनिकतम तकनीक का प्रयोग किया जाए। फारेस्ट विभाग को समय पर संसाधन उपलब्ध कराया जाना चाहिए।