मेहमाननवाजी का आनंद लेने के बाद अधिकांश विदेशी उद्योगपतियों ने नहीं देखा पलट कर
तमाम उद्योगपतियों के साथ सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर भी किए गए मगर अफसोस प्रदेश की मेहमाननवाजी का आनंद लेने के बाद इनमें से अधिकांश ने वापस पलट कर नहीं देखा।
देहरादून, विकास गुसाईं। चीन, सिंगापुर, हांगकांग, मलेशिया, कोरिया के उद्योगपतियों के प्रदेश में आते ही सरकार ने उनका खूब सत्कार किया। यूरोप, अमेरिका, इंग्लैंड, जार्जिया आदि देशों में रोड शो और अंतरराष्ट्रीय मेलों में शिरकत कर उद्यमियों को आकर्षित करने का प्रयास भी किया गया। प्रदेश में आने वाले विदेशी उद्योगपतियों को मुख्यमंत्री और मंत्रियों से मिलाया गया। प्रदेश के तमाम सिडकुल क्षेत्रों का भ्रमण कराया गया। उनके मनपसंद उद्योग लगाने के लिए नियमों में ढील देने तक की बात हुई। उम्मीद जताई गई कि इन देशों के उद्योगपति वेलनेस, फूड इंडस्ट्री, ऑर्गनिक तथा कांट्रेक्ट फार्मिंग, डेयरी, लॉजिस्टिक, एग्रो प्रोसेसिंग, होम स्टे आदि क्षेत्रों में उत्तराखंड में निवेश करेंगे। तमाम उद्योगपतियों के साथ सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर भी किए गए, मगर अफसोस प्रदेश की मेहमाननवाजी का आनंद लेने के बाद इनमें से अधिकांश ने वापस पलट कर नहीं देखा। ऐसे में इनके प्रदेश में निवेश करने की उम्मीदें अब क्षीण हो गई हैं।
आदर्श गांवों का ऑडिट
प्रदेश के सांसद आदर्श गांवों में विकास कार्यों का जायजा लेने को अभी तक थर्ड पार्टी ऑडिट नहीं हो पाया है। जिलों के लिए बनाए गए प्रभारी सचिवों ने इन गांवों में जाकर भौतिक निरीक्षण करने की जहमत भी नहीं उठाई है। ऐसे में मुख्यमंत्री के फरमान अब हवा से होते नजर आ रहे हैं। दरअसल, छह माह पूर्व सांसद आदर्श ग्रामों की समीक्षा बैठक में सांसद प्रतिनिधियों ने इनमें विकास कार्यों को लेकर प्रस्तुत किए गए आंकड़ों पर सवाल उठाए थे। कहा गया कि इन आंकड़ों और धरातल पर हुए विकास कार्यों की तस्वीर बिल्कुल अलग है। ऐसे में मुख्यमंत्री ने सभी जिलों के प्रभारी सचिवों को निर्देश दिए कि 45 दिन में एक बार आदर्श गांवों में जाकर भौतिक निरीक्षण करें। इसके लिए भ्रमण कैलेंडर भी बनाकर उपलब्ध कराया जाए। सरकार के सामने सबने सर हिलाया लेकिन बैठक से निकलने के बाद सब इस फरमान को भूल गए।
होमगार्डस की एरियर फाइल
कहने को तो एक होमगार्ड के अधिकार पुलिस वाले के समान होते हैं लेकिन इन्हें इस अधिकार के लिए बार-बार न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है। अब इनके मानदेय का मामला ही देखा जाए। दो साल तक सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लडऩे के बाद बामुश्किल इनके मानदेय में बढ़ोतरी की गई लेकिन अब इनका एरियर का मसला लंबे समय से फंसा हुआ है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बीते वर्ष होमगार्डों को समान कार्य समान वेतन के सिद्धांत के अनुसार पुलिस कर्मियों के समान ही वेतन देने का निर्णय सुनाया था। इसके अनुपालन में ही प्रदेश सरकार को एक साल लग गया। सुप्रीम कोर्ट के उसी निर्णय में इन्हें जुलाई 2017 से इसका एरियर देने का भी निर्देश दिया गया था। गणना की गई तो यह तकरीबन 50 करोड़ रुपये बैठ रहा है। इन्हें नया मानदेय तो दे दिया गया है लेकिन एरियर पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
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विभागों में इलेक्ट्रिक वाहन
सरकार ने पेट्रोल व डीजल की बचत और मितव्ययता के उद्देश्य से विभागों में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल करने का निर्णय लिया। निर्णय इसलिए भी मानना था क्योंकि बाकायदा केंद्र ने इसके लिए पत्र जारी किया, आदेश निकाला। इसके बाद एक कार को कुछ दिनों तक सचिवालय में एक अधिकारी के पास परीक्षण के लिए दिया गया। कहा गया कि पेट्रोल व डीजल वाहनों से हानिकारक गैसें निकलती हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग से पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा, साथ ही लागत की दृष्टि से भी ये लाभकारी साबित हो सकते हैं। इस पर परिवहन विभाग ने एक रिपोर्ट बनाई। इस रिपोर्ट में कहा गया कि बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों की काफी कमी है। इलेक्ट्रिक वाहनों के पेट्रोल व डीजल वाहनों से संचालन क्षमता, खर्च व सुरक्षा के संबंध में तुलनात्मक आंकड़े भी मौजूद नहीं हैं। इसके बाद से ही सभी विभाग इस पर चुप्पी साधे हुए हैं।
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