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नियमों को बनाने और उसे अमल में लाने वालों की नीयत में ही खोट हो तो क्या कहिएगा

नियमों को बनाने और उसे अमल में लाने वालों की नीयत में ही खोट हो तो क्या कहिएगा। शिक्षा महकमे में तबादला एक्ट हो या उसको अमल में लाने की व्यवस्था इसका उदाहरण है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 04:23 PM (IST)Updated: Thu, 28 May 2020 04:23 PM (IST)
नियमों को बनाने और उसे अमल में लाने वालों की नीयत में ही खोट हो तो क्या कहिएगा
नियमों को बनाने और उसे अमल में लाने वालों की नीयत में ही खोट हो तो क्या कहिएगा

देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। कायदे-कानून और नियमों को बनाने और उसे अमल में लाने वालों की नीयत में ही खोट हो तो क्या कहिएगा। शिक्षा महकमे में तबादला एक्ट हो या उसको अमल में लाने की पूरी व्यवस्था इसका खूबसूरत उदाहरण है। इस खूबसूरती को महकमे के ही एक अधिकारी ने चार चांद लगा दिए। वर्ष 2012 में जनाब ने तत्कालीन शिक्षा मंत्री से दिव्यांगता के आधार पर सुगम से दुर्गम में तबादला संशोधन कराया, लेकिन दिव्यांगता प्रमाणपत्र जमा ही नहीं कराया। इसके बाद महकमा भी चुप्पी साध गया। ये जनाब हैं चंपावत जिले के माध्यमिक शिक्षा के प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी दलेल सिंह राजपूत। मामले ने तूल तब पकड़ा, जब शिकायत हुई। बाद में जांच अधिकारी को जांच सौंपी गई। इसके बाद इन्हें आरोप पत्र थमाया गया है। जिन अधिकारियों पर शिक्षकों और कर्मचारियों के तबादलों और अन्य प्रकरणों के अभिलेखों के सत्यापन का दारोमदार है, उनके ऐसे हौसले को क्या कहा जाए।

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दूध का जला छाछ भी...

दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, यह कहावत इन दिनों शिक्षा महकमे पर सटीक साबित हो रही है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत ब्लॉक रिसोर्स परसन और क्लस्टर रिसोर्स परसन जैसे पदों की वापसी हो गई है। दुर्गम में जाने से बचने के लिए इन पदों पर तैनाती शिक्षक नेताओं को खूब सुहाई। नतीजा ये रहा कि प्रारंभिक और माध्यमिक संवर्ग के शिक्षक इन पदों को पाने को लंबे अरसे तक एकदूसरे से भिड़ते रहे। महकमे से लेकर शासन तक सभी की खासी फजीहत हुई। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने इसी वजह से इन पदों पर प्रतिनियुक्ति के बजाए आउटसोर्सिंग से नियुक्ति की हिमायती की। आउटसोर्सिंग से नियुक्ति होने पर वित्तीय भार बढ़ता। वित्त ने हामी नहीं भरी। अब ये पद प्रतिनियुक्ति से भरे तो जाएंगे, लेकिन विवाद की नौबत नहीं आने देने के लिए प्रतिनियुक्ति की प्रक्रिया तय करने में पूरी सावधानी बरती जा रही है।

बोर्ड पर बढ़ने लगा दबाव

उत्तराखंड बोर्ड की शेष परीक्षाएं हों या मूल्यांकन, सरकार और शिक्षा महकमा अब तक विचार-विमर्श में लगे हैं। क्षेत्रफल, जनसंख्या में कई गुना बड़ा राज्य उत्तरप्रदेश बोर्ड परीक्षाफल घोषित करने की तैयारी कर रहा है। उत्तरप्रदेश बोर्ड मार्च माह में लॉकडाउन से पहले फरवरी में ही परीक्षा करा चुका है। वहां बोर्ड की कॉपियों का मूल्यांकन कार्य पूरा करने के बाद अब परीक्षाफल जारी करने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। बिहार बोर्ड ऑनलाइन ही परीक्षाफल घोषित कर चुका है। हाल-ए-उत्तराखंड पर गौर फरमाएं। लॉकडाउन की वजह से 13 विषयों की परीक्षाएं छूटी हैं। कॉपियों का मूल्यांकन भी होना है। कोरोना महामारी के दौर में छात्र-छात्राओं की सुरक्षा का सवाल महत्वपूर्ण है। इसे ध्यान में रखकर ही फैसले लिए जाने हैं। फैसले लेने में जितना वक्त लगेगा, उतना ही और देरी होगी। उत्तराखंड बोर्ड पर शेष परीक्षाओं, मूल्यांकन और परीक्षाफल का दबाव अब साफतौर पर दिखाई दे रहा है।

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मंत्री जी का वर्चुअल फीडबैक

प्रदेश में करोड़ों खर्च कर बनाए गए वर्चुअल स्टूडियो का लॉकडाउन में जिसतरह इस्तेमाल हो रहा है, उसकी कल्पना शिक्षा महकमे ने सपने में भी नहीं की होगी। स्टूडियो से दूरदराज के 500 सरकारी इंटर कॉलेज जुड़े हैं। लॉकडाउन की वजह से शिक्षण संस्थाएं बंद हैं। इन वर्चुअल स्टूडियो में माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए वीडियो क्लिप तैयार की जा रही हैं। इनका प्रसारण दूरदर्शन पर किया जा रहा है। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय इस स्टूडियो के बहुउपयोग की कई दफा हिदायत दे चुके हैं। आखिर उन्होंने वर्चुअल स्टूडियो से पहले अटल ई-संवाद कार्यक्रम में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पक्ष-विपक्ष के विधायकों, पंचायत प्रतिनिधियों से बात कर कोरोना से बचाव की तैयारियों की जानकारी ली। दोबारा स्टूडियो पहुंचकर उन्होंने प्रदेश के प्रधानाचार्यों के साथ संवाद कायम किया। क्वारंटाइन सेंटर बने विद्यालयों को लेकर फीडबैक लिया। फीडबैक लेने के मंत्री के अनोखे अभियान से महकमे के अधिकारी हक्के-बक्के हैं।

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