महंगी बिजली खरीद कर जनता पर डाल दिया भारी बोझ, पढ़िए खबर
ऊर्जा निगम को बिजली कंपनियों से करीब चार फीसद अधिक दर पर बिजली खरीदनी पड़ी। निगम ने अपना घाटा कम करने के लिए इसका बोझ विद्युत दरों में वृद्धि कर जनता के सिर डाल दिया।
देहरादून, जेएनएन। ऊर्जा निगम की माली हालात दिनों दिन कमजोर होते जा रहे हैं। इसका बड़ा कारण ऊर्जा निगम की लचर व्यवस्थाएं हैं, जिसके चलते निगम घाटे में जा रहा है। यही वजह है कि पिछले साल (वित्तीय वर्ष 2018-19) ऊर्जा निगम को बिजली कंपनियों से करीब चार फीसद अधिक दर पर बिजली खरीदनी पड़ी। निगम ने अपना घाटा कम करने के लिए इसका बोझ विद्युत दरों में वृद्धि कर जनता के सिर डाल दिया।
अब अक्टूबर माह से सभी श्रेणी में बिजली की औसत दर 8.99 फीसद बढ़ गई है, जबकि घरेलू उपभोक्ताओं को 39 पैसे प्रति यूनिट अधिक चुकाने होंगे। यह दरें मार्च 2020 तक रहेगी।
महंगी दर पर बिजली खरीदने के चलते ऊर्जा निगम को 295 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। ऊर्जा निगम ने इसको आधार बनाकर उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग को विद्युत दरों की वृद्धि की याचिका दायर की। ऊर्जा निगम के घाटे और उसकी कमजोर स्थिति को देखते हुए आयोग को विद्युत दरों में वृद्धि की याचिका स्वीकार करनी पड़ी।
आयोग के सचिव नीरज सती ने बताया कि ऊर्जा निगम ने घाटे के चलते करीब दो-तीन माह से सभी तरह के भुगतान बंद कर दिए थे। ऐसे में निगम के पूरी तरह घाटे में चले जाने की आशंका बढ़ गई थी। हालांकि, अगले साल के लिए जब बिजली की दरें तय की जाएंगी तो इस बढ़ोत्तरी को भी ध्यान में रखा जाएगा।
दूसरी और यह भी सच्चाई है कि जब ऊर्जा निगम अपेक्षाकृत कम दर पर बिजली की खरीद करता है तो उस समय विद्युत दरें कम करने का प्रस्ताव नहीं लाया जाता।
ओडी अकाउंट का सही उपयोग नहीं
कुछ समय पहले सूचना आयोग में यह मामला सामने आया था कि ऊर्जा निगम ने ओवर ड्राफ्ट (ओडी) अकाउंट से 50 करोड़ रुपये का ऋण लेकर उसकी अन्य बैंक में एफडी करा रखी है। यह गंभीर इसलिए भी है कि ओडी अकाउंट बिजली कंपनियों को समय पर भुगतान के लिए होता है।
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क्योंकि समय पर राशि चुकता न करने पर निगम को 1.25 फीसद जुर्माना सरचार्ज के रूप में अदा करना होता है। सिर्फ यूजेवीएनएल को ही ऊर्जा निगम 40 करोड़ रुपये जुर्माने के रूप में अदा कर चुका है। इसके अलावा नियामक आयोग लंबे समय से ऊर्जा निगम को लाइन लॉस कम करने के लिए कह रहा है। इसके बावजूद लाइन लॉस कम करने की तरफ ऊर्जा निगम ने ध्यान नहीं दिया। जिससे हर साल करोड़ों रुपये की चपत लगती है।
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