पौड़ी में खतरे में पारंपरिक घराटों का वजूद, जानिए कैसे चलता है घराट
पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक घराटों (पनचक्की) का वजूद खतरे में है। हश्र यह हुआ कि जैसे-जैसे पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन बढ़ा वैसे ही घराट भी सिमटते गए।
पौड़ी, जेएनएन। पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक घराटों (पनचक्की) का वजूद खतरे में है। अपवाद को छोड़ दिया जाए तो राज्य बनने के इन बीते वषों में शायद ही कभी ऐसे देखने को मिला हो, जब इनके संरक्षण की दिशा में कोई प्रभावी पहल हुई हो। हश्र यह हुआ कि जैसे-जैसे पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन बढ़ा, वैसे ही घराट भी सिमटते गए। आलम यह है कि अब सीमित तादाद में ही गदेरों (बरसाती नाले) में पानी से संचालित होने वाले घराट देखने को मिलते हैं। बता दें कि पहले सिर्फ पौड़ी जिले में 400 के करीब घराट हुआ करते थे, लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या 40 के करीब रह गई है।
शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक आशीष चौहान बताते हैं कि पहले पौड़ी जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी संख्या में पानी से संचालित होने वाले पारंपरिक घराट न केवल गेहूं पिसाई का जरिया हुआ करता थे, बल्कि गांव में जिस व्यक्ति का पानी से संचालित होने वाला घराट हुआ करता था उसे गांव के आर्थिक रूप से समृद्धशाली लोगों में गिना भी जाता था। अब पलायन की मार ऐसी पड़ी कि पौड़ी जनपद में वर्ष 2011 के बाद सड़क सुविधा, बिजली, स्वास्थ्य सुविधा आदि के अभाव में करीब 33 गांव निर्जन हो गए। इस सब के बीच जनपद के विभिन्न क्षेत्रों से 25,584 व्यक्ति पूर्णकालिक तौर पर पलायन कर गए। जाहिर सी बात है कि पलायन की मार से घराटों पर बुरा असर पड़ा होगा।
चकबंदी आंदोलन के प्रणेता गणेश गरीब बताते हैं कि पहले गांवों में घराट एक पहचान हुआ करती थी। खेत आबाद थे तो गेहूं पिसाई के चलते ग्रामीणों का सीधा लगाव घराटों से हुआ करता था, लेकिन अभी तक की सरकारों ने न तो घराटों की सुध ली और ना ही घराट स्वामियों की। ऐसे में हश्र यह हुआ कि पलायन के साथ-साथ घराटों का वजूद भी खतरे में पड़ने लगा। सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन डांगी ने भी सरकार से पारंपरिक घराटों के संरक्षण की दिशा में प्रभावी कदम उठाने की मांग की है।
कैसे चलता है घराट
किसी खड्ड या नाले के किनारे कूहल के पानी की ग्रेविटी से घराट चलते हैं। यह आम तौर पर डेढ़ मंजिला घर की तरह होते हैं। ऊपर की मंजिल में बड़ी चट्टानों से काटकर बनाए पहिए लकड़ी या लोहे की फिरकियों पर पानी के बेग से घूमते हैं और चक्कियों में आटा पिसता है।
शुल्क में लेते हैं आटा
घराट में अनाज पीसने का शुल्क रुपये की बजाय हिस्सेदारी से लिया जाता है। गेहूं, मडुवा, जौं आदि की मात्रा के अनुसार घराट मालिक का भाग होता है। अनाज पीसने के बाद लोग उसके हिस्से का अनाज घराट पर छोड़ देते हैं। इससे जहां घराट मालिक को रोजी रोटी मिलती है, वहीं आपसी सद्भाव भी बढ़ता है।