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Coronavirus से कैमाला जंगल में टूटेगी सदियों पुरानी ये देव परंपरा, जानिए

कोरोना के चलते बावर क्षेत्र के कैमाला जंगल में सदियों पुरानी देव परंपरा टूटेगी जिसका लोगों को मलाल तो है पर संतोष इस बात का है कि संक्रमण के फैलने का खतरा टलेगा।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 04:46 PM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 09:30 PM (IST)
Coronavirus से कैमाला जंगल में टूटेगी सदियों पुरानी ये देव परंपरा, जानिए
Coronavirus से कैमाला जंगल में टूटेगी सदियों पुरानी ये देव परंपरा, जानिए

चकराता, चंदराम राजगुरु। कोविड-19 महामारी के चलते बावर क्षेत्र के कैमाला जंगल में सदियों पुरानी देव परंपरा टूटेगी, जिसका लोगों को मलाल तो है पर संतोष इस बात का है कि संक्रमण के फैलने का खतरा टलेगा। हर साल दो और तीन जून को कूणा पंचायत के कैमाला जंगल में आयोजित होने वाला जखोली मेला इस बार नहीं लगेगा। मान्यता के अनुसार सालभर में एक बार मैंद्रथ मंदिर से बाशिक महासू की देव पालकी गाजे-बाजे के साथ जनता के दर्शनार्थ दो दिन के प्रवास पर कैमाला पहुंचती है। जहां क्षेत्र के हजारों लोग देवता से मांगी गई मन्नत पूरी होने पर जखोली मेला मनाते हैं। जखोली मेला मनाने के पीछे कालासूर राक्षस के आतंक से जुड़ी रोचक कहानी बताई जाती है।

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जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को समेटे बावर क्षेत्र के कैमाला जंगल में आयोजित होने वाले जखोली मेले का विशेष महत्व है। लोक मान्यता के अनुसार कूणा और कोटी-बावर पंचायत के केंद्र बिंदु कैमाला जंगल के बुग्याल में प्रतिवर्ष दो और तीन जून को जखोली मेला लगता है। इसमें बावर, देवघार, फनार, शिलगांव, लखौ, कंडमाण और बंगाण क्षेत्र से हजारों की संख्या में लोग बाशिक महासू के दर्शन कर देवता से आशीर्वाद लेने आते हैं।

स्थानीय बड़े-बुर्जर्गों की माने तो कई वर्षों पहले क्षेत्र में हैजा बीमारी फैलने से लोगों में दहशत हो गई थी। बावजूद इसके बाशिक महासू के कैमाला जंगल में जखोली मेले में जाने का प्रवास कार्यक्रम नहीं टला, लेकिन क्षेत्र में यह पहला वाकया है कि कैमाला जंगल में इस बार जखोली मेला नहीं मनेगा। शांठीबिल के बजीर दीवान सिंह राणा ने कहा कि देवता के आदेशानुसार कैमाला जंगल के बुग्याल में दो और तीन जून को आयोजित होने वाले जखोली मेले को इस बार स्थगित कर दिया है। जबकि देशव्यापी लॉकडाउन 31 मई तक है। 

देवता के बजीर दीवान सिंह राणा ने कहा कि सभी से रायशुमारी के बाद यह निर्णय लिया गया है। हनोल मंदिर समिति के सदस्य एनडी पंवार ने कहा कि जखोली मेला क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है। कोरोना महामारी से जन-जागरूकता के चलते कैमाला में पहली बार जखोली मेला स्थगित होने से लोगों में इसका अच्छा संदेश जाएगा।

क्यों मनाते हैं जखोली मेला

बावर क्षेत्र के कैमाला जंगल में हर साल दो और तीन जून को आयोजित होने वाले जखोली मेले को मनाने के पीछे रोचक कहानी है। लोक मान्यतानुसार वर्षों पहले जौनसार-बावर के तमसा नदी से सटे कंडमाण क्षेत्र में कालासुर नामक राक्षस का आंतक था। जिसे बाशिक महासू ने मार गिराया। जनता को कालासूर राक्षस के आंतक से हमेशा के लिए छुटकारा मिलने से लोगों ने खुशी में जश्न मनाया।

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राक्षस की मौत के बाद उसकी पत्नी जखोली ने बाशिक महासू से दया की याचना की। बाशिक महासू ने राक्षस की पत्नी को दिए गए वचन से प्रतिवर्ष दो और तीन जून को जखोली के नाम से मेला मनाने का आदेश दिया। पहले जखोली मेले का आयोजन कंडमाण क्षेत्र के कोटी-कनासर बुग्याल में होता था, लेकिन बाद में देवता के आदेश पर कैमाला के जंगल में मेला मनाया जाने लगा।

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