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हंसी ने एकबार फिर भाई के साथ जाने से किया इनकार, मायूस होकर लौटे; जानें-क्यों चर्चाओं में है ये महिला

हंसी प्रहरी से मिलने के लिए उनके भाई आनंद राम अनुराग शुक्रवार को दोबारा दिल्ली से हरिद्वार पहुंचे। बस अड्डे पर उन्होंने अपनी बहन से मुलाकात की। साथ ही उन्हें अपने साथ ले जाने की इच्छा जताई लेकिन हंसी ने फिर से उनके साथ जाने से इनकार कर दिया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 06:51 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 10:52 PM (IST)
हंसी ने एकबार फिर भाई के साथ जाने से किया इनकार, मायूस होकर लौटे; जानें-क्यों चर्चाओं में है ये महिला
हंसी ने एकबार फिर भाई के साथ जाने से किया इनकार।

हरिद्वार, जेएनएन। कुमाऊं विश्वविद्यालय की होनहार हंसी प्रहरी से मिलने के लिए उनके भाई आनंद राम अनुराग शुक्रवार को दोबारा दिल्ली से हरिद्वार पहुंचे। बस अड्डे पर उन्होंने अपनी बहन से मुलाकात की। साथ ही उन्हें अपने साथ ले जाने की इच्छा जताई, लेकिन हंसी ने फिर से उनके साथ जाने से इनकार कर दिया। हंसी के भाई को महापौर अनीता शर्मा की ओर से आवास मुहैया कराने की जानकारी मिली। इसपर उन्होंने महापौर से मिलने का प्रयास भी किया, लेकिन उनके शहर में नहीं होने के कारण वे मायूस होकर दिल्ली लौट गए। 

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हंसी को पसंद आया महापौर से मिले आवास का प्रस्ताव  

हंसी प्रहरी ने गुरुवार को महापौर अनीता शर्मा के आवास के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। महापौर ने हंसी के सामने पांडेवाला में इकोनॉमिक वीकर सेक्शन के लिए बनाए गए आवासों में से एक आवास रहने के लिए देने का प्रस्ताव रखा था। रोडवेज बस अड्डे पर दैनिक जागरण से बातचीत में हंसी ने बताया कि उनके पास कई स्वयंसेवी संगठनों के अलावा सरकार से भी आवास के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन उसमें सबसे अच्छा प्रस्ताव महापौर का लगा। 

कौन हैं हंसी और क्यों हैं चर्चाओं में 

हंसी छात्र जीवन में कुशल वक्ता और छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में छात्रसंघ उपाध्यक्ष भी चुनी गई। पर इसे नियति का खेल ही कहेंगे कि अंग्रेजी और राजनीति शास्त्र में एमए डिग्रीधारी ये महिला आज हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांग अपना और बच्चे का गुजारा करने को मजबूर थी। पर हौसले अब भी मजबूत हैं। वो अपने बच्चे को पढ़ा भी रही हैं और अफसर बनाने के सपने बुन रही हैं। 

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ऐसे आईं चर्चाओं में 

हरिद्वार में हंसी की ओर मीडिया का ध्यान बीते रविवार को तब गया, जब वह सड़क किनारे अपने छह साल के बेटे को पढ़ा रही थी। उसकी फर्राटेदार अंग्रेजी हर राहगुजर को हतप्रभ कर देने वाली थी। हंसी बताती है कि ससुराल की कलह से परेशान होकर वर्ष 2008 में वह लखनऊ से हरिद्वार चली आई। यहां शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण वह नौकरी नहीं कर पाई और रेलवे स्टेशन, बस अड्डा आदि स्थानों पर भीख मांगने लगी। इस हाल में भी हंसी की हिम्मत डिगी नहीं है, वह बेटे को पढ़ा रही है और चाहती है कि वह प्रशासनिक अधिकारी बने। 

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