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कभी कुमाऊं विश्वविद्यालय में लाइब्रेरियन रही, अब हरिद्वार में भीख मांगने को मजबूर; प्रशासन करेगा मदद

एक महिला अपने छात्र जीवन में न केवल कुशल वक्ता रही बल्कि छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्रसंघ उपाध्यक्ष भी चुनी गई। दो विषयों में एमए डिग्रीधारी यह महिला हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांगते हुए अपने बेटे को अफसर बनाने के सपने बुन रही है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 09:55 AM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 09:55 AM (IST)
कभी कुमाऊं विश्वविद्यालय में लाइब्रेरियन रही, अब हरिद्वार में भीख मांगने को मजबूर; प्रशासन करेगा मदद
हरिद्वार बस अड्डे के यात्री शेड में बेटे परीक्षित के साथ हंसी प्रहरी बैठी हुई।

हरिद्वार, जेएनएन। नियति का खेल देखिए, ससुराल की कलह से आजिज आकर घर की चौखट के बाहर कदम रखने वाली एक महिला को कदम-दर-कदम कड़े इम्तिहान से गुजरना पड़ा। वह भी उसे, जो अपने छात्र जीवन में न केवल कुशल वक्ता रही, बल्कि छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में छात्रसंघ उपाध्यक्ष भी चुनी गई। अंग्रेजी व राजनीति शास्त्र में एमए डिग्रीधारी इस महिला को हालात से इस कदर जूझना पड़ेगा, शायद ही उसने कभी इसकी कल्पना भी की होगी। लेकिन, नियति को तो कुछ और ही मंजूर था। इस सबके बावजूद वह उसी जीवटता के साथ हरिद्वार की सड़कों पर भीख मांगते हुए अपने बेटे को अफसर बनाने के सपने बुन रही है। हां! सुकून वाली बात यह जरूर है कि मीडिया की नजरों में आने के बाद कई हाथ उसकी मदद को आगे आए हैं। वहीं, इस संबंध में एसडीएम गोपाल सिंह चौहान ने कहा कि भेल स्थित समाज कल्‍याण  आवास में महिला को कमरा उपलब्‍ध कराया जाएगा। 

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अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक स्थित ग्राम रणखिला गांव की रहने वाली इस महिला का नाम है हंसी प्रहरी। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हंसी की इंटर तक की शिक्षा गांव में ही हुई और फिर उसने कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में प्रवेश ले लिया। पढ़ाई के साथ-साथ वह विवि की तमाम शैक्षणिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। बकौल हंसी, 'वर्ष 2000 में मैं छात्रसंघ में उपाध्यक्ष चुनी गई और फिर विवि की ही सेंट्रल लाइब्रेरी में चार साल तक नौकरी की।'

हरिद्वार में हंसी की ओर मीडिया का ध्यान रविवार को तब गया, जब वह सड़क किनारे अपने छह साल के बेटे को पढ़ा रही थी। उसकी फर्राटेदार अंग्रेजी हर राहगुजर को हतप्रभ कर देने वाली थी। हंसी बताती है कि ससुराल की कलह से परेशान होकर वर्ष 2008 में वह लखनऊ से हरिद्वार चली आई। यहां शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण वह नौकरी नहीं कर पाई और रेलवे स्टेशन, बस अड्डा आदि स्थानों पर भीख मांगने लगी। 

इस हाल में भी हंसी की हिम्मत डिगी नहीं है, वह बेटे को पढ़ा रही है और चाहती है कि वह प्रशासनिक अधिकारी बने। 

यही नहीं, हंसी के पास उसके सभी शैक्षणिक प्रमाणपत्र भी सुरक्षित हैं। बताती है कि उसकी एक बेटी भी है, जो नानी के पास रहकर पढ़ाई कर रही है। पिछले साल वह हाईस्कूल में 97 फीसद अंकों के साथ उत्तीर्ण हुई है। उसकी चिंता सिर्फ इतनी है कि सिर छिपाने को सरकार उसे एक छत मुहैया करा दे, ताकि वह बेटे परीक्षित को पढ़ा सके। इसके लिए वह कई बार मुख्यमंत्री समेत तमाम जिम्मेदार अधिकारियों को पत्र भी लिख चुकी है। बताया कि परीक्षित सरस्वती शिशु मंदिर मायापुर में दूसरी कक्षा में पढ़ रहा है।

वर्ष 2002 में लड़ा था विस चुनाव

आप यकीन नहीं करोगे कि हंसी प्रहरी वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में सोमेश्वर सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव भी लड़ चुकी है। तब 53689 मतदाताओं वाली इस सीट से कांग्रेस के प्रदीप टम्टा और भाजपा के राजेश कुमार समेत 11 प्रत्याशी मैदान में थे। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा ने 9146 मत हासिल कर भाजपा प्रत्याशी (8263) को 883 मतों के अंतर हराया था। हंसी को तब 2650 वोट मिले थे।

मदद को आगे बढ़े कई हाथ

मीडिया की नजरों में आने के बाद हरिद्वार के कई जिम्मेदार लोग और समाजसेवी संगठन हंसी की मदद को आगे आए हैं। इनमें नगर निगम में कूड़ा उठान करने वाली कंपनी केआरएल के कोर्डिनेटर सुखबीर सिंह, पंडित नारायण दत्त तिवारी नेहरू युवा केंद्र, होटल कारोबारी और समाजसेवी मिंटू पंजवानी, जगदीश लाल पहवा, विशाल गर्ग आदि प्रमुख हैं।

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