ट्रैफिक को लेकर इन दिनों वैज्ञानिक बनी हुई दून पुलिस
ट्रैफिक को लेकर पुलिस इन दिनों वैज्ञानिक बनी हुई है। दिमाग में कोई प्लान आया नहीं कि सड़कों को परखनली बनाकर नागरिकों के धैर्य और परेशानी का टेस्ट शुरू कर दिया जा रहा है।
देहरादून, संतोष तिवारी। ट्रैफिक को लेकर पुलिस इन दिनों 'वैज्ञानिक' बनी हुई है। दिमाग में कोई प्लान आया नहीं कि सड़कों को 'परखनली' बनाकर नागरिकों के धैर्य और परेशानी का टेस्ट शुरू कर दिया जा रहा है। गुजरे रविवार को पुलिस ने स्मार्ट सिटी के बहाने घंटाघर के आसपास कई मार्गों को वन-वे करके ऐसा एक और प्रयोग किया। पुलिस की इस मनमानी से शहर की हृदयस्थली कहे जाने वाले घंटाघर में लोग चकरघिन्नी बनकर रह गए। घंटों तक अधिकारी इंतजार करते रहे कि प्रयोग सफल होगा, लेकिन नतीजा शून्य रहा। हो सकता है कि इस प्रयोग को सफल बनाने के कुछ सूत्र हाथ लगे भी हों। अब पुलिस यह प्रयोग वर्किंग डे में दोहराने का प्रण कर चुकी है। प्रण किया तो उसे रोकेगा कौन। क्योंकि, जिन अफसरों को पुलिस को राय देनी है वह तो दफ्तरों से कम ही निकलते हैं। निकलते भी हैं तो उनके लिए तो रास्ता पहले ही खाली करा दिया जाता है।
यातायात नियमों के 'ध्वजवाहक'
सिटी बसें और विक्रम शहर की सड़कों पर फर्राटा भरते समय किसी 'आतंकी' से कम नजर नहीं आते। इनके चालक न तो खाकी से डरते हैं और न ही यातायात नियम इनके लिए कोई खास मायने रखते। नियमों का पालन करने का फैसला सिर्फ और सिर्फ चालक के विवेक पर होता है। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी हरकत से कोई चोटिल हो सकता है या फिर मौत के मुंह में भी जा सकता है। ऐसी स्थिति के लिए पुलिस ही जिम्मेदार है। दरअसल, पुलिस और सिटी पेट्रोल यूनिट की नजर में ये यातायात नियमों के 'ध्वजवाहक' हैं। पुलिस को ट्रैफिक चालान का कोटा पूरा करने की 'मजबूरी' में हेलमेट न पहने दोपहिया वाहन सबसे आसान शिकार नजर आते हैं। हफ्ते क्या महीनों में विक्रम और सिटी बस का चालान न होना भी जाहिर कर देता है कि कुछ तो पुलिस की 'मजबूरी' है कि जो इनकी ओर आंख उठाकर देखने से रोक देती है।
नासूर बनेगा दून चौक
सिस्टम कितना अदूरदर्शी हो सकता है। इसकी झलक देखनी हो तो कुछ देर दून चौक पर बिता लीजिए। यहां आपको दून मेडिकल कॉलेज की नई बिल्डिंग थोड़ी देर के लिए आकर्षित तो करेगी, लेकिन चंद मिनटों में ही असलियत समझ आ जाएगी। दून मेडिकल कॉलेज के नए भवन से भले ही भविष्य के 'भगवान' बनकर निकलेंगे, लेकिन सच तो यह है कि आने वाले दिनों में यह शहर के ट्रैफिक सिस्टम के लिए नासूर बनने वाला है। जिसकी झलक अभी से दिखने लगी है। कप्तान को यहां ट्रैफिक को लेकर हर दिन सीपीयू के दारोगा की तैनाती करनी पड़ रही है और आधा दर्जन कांस्टेबल अलग से ड्यूटी बजा रहे हैं। अभी तो शुरुआत है। आने वाले दिनों में यहां ट्रैफिक चलाने को पूरे पुलिस महकमे को उतरना पड़े तो कोई हैरत की बात नहीं होगी। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है।
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गुमनाम पत्र का पैंतरा
पुलिस महकमे में इन दिनों एक गुमनाम पत्र की खूब चर्चा है। पत्र में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर ऊधमसिंहनगर की पुलिस पर कई आरोप लगाए गए हैं। अब ट्रांसफर-पोस्टिंग से आम लोगों को कोई लेना-देना तो है नहीं, ऐसे में जाहिर है कि महकमे के ही किसी 'पीड़ित' ने यह कदम उठाया होगा। चर्चा इस बात को लेकर नहीं कि आरोप सही हैं या गलत। इसका पता लगाने के लिए तो पुलिस मुख्यालय ने जांच बैठा दी है। असल डर इस बात का है कि भड़ास निकालने का यह तरीका अगर और भी लोगों ने आजमाया तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। लिहाजा अब अधिकारी एक बार फिर पुलिस कर्मियों को अनुशासित बल का हिस्सा होने से लेकर पुलिस आचरण नियमावली का पाठ पढ़ाने में जुट गए हैं। ताकि बात को यहीं पर खत्म कर दिया जाए।
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