डीएनए बताएगा लद्दाख के द्रोपा मूल आर्यवंशी हैं या नहीं, पढ़िए पूरी खबर
एएनएसआइ के मानवविज्ञानियों ने खुद को मूल आर्यवंशी होने का दावा करने वाले द्रोपा समुदाय के लोगों की डीएनए सैंपल लिए हैं। ताकि पता चल सके द्रोप मूल आर्यवंशी हैं या नहीं।
देहरादून, सुमन सेमवाल। आर्य पहले भारतीय हैं या वह भारत में बाहर से आए। इस मुद्दे पर इतिहासकार भी अभी एकमत नहीं हो पाए हैं। मगर, खुद को शुद्ध आर्यवंशी बताने वाले द्रोपा समुदाय के लोगों से इस रहस्य को सुलझाने में मदद मिल सकती है। भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (एएनएसआइ) विभाग ने इस दिशा में कदम भी बढ़ा दिए हैं। एएनएसआइ के मानवविज्ञानियों ने खुद को मूल आर्यवंशी होने का दावा करने वाले द्रोपा समुदाय के लोगों की डीएनए सैंपल लिए हैं। ताकि उनकी सीक्वेंसिंग के माध्यम से स्पष्ट किया जा सके कि उनका मूल कहां से जुड़ा है।
एएनएसआइ के देहरादून स्थित उत्तरी केंद्र प्रमुख डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि लद्दाख के हनु गांव में रह रहे द्रोपा समुदाय के लोगों की डीएनए जांच के साथ ही उनके ब्लड प्रेशर, हीमोग्लोबिन, ब्लड शुगर आदि की भी जांच की जा रही है। इस समुदाय को डीएनए जांच के लिए इसलिए भी चुना गया, क्योंकि यहां के लोग मूल आर्यवंशियों के दावे के अनुरूप किसी अन्य समुदाय के साथ संबंध कायम नहीं करते हैं।
इनके विवाह भी मूल आर्यवंशी कहे जाने वाले लद्दाख क्षेत्र के लोगों के साथ ही किए जाते हैं। जिस तरह से आर्यों के भारत के साथ संबंध को लेकर बहस कायम है, डीएनए जांच के बाद उससे भी पर्दा उठ जाएगा। क्योंकि इतिहास दर्ज तथ्यों से द्रोपा समुदाय की उत्पत्ति का विश्लेषण किया जाएगा। इससे स्पष्ट न सिर्फ आर्यों के भारत के साथ संबंध स्पष्ट होंगे, बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि द्रोपा समुदाय मूल आर्यवंशी हैं या नहीं।
जीन में बदलाव का भी होगा अध्ययन
डीएनए जांच में यह भी पता लगाया जाएगा कि एक ही समुदाय में विवाह करने पर द्रोपा समुदाय के लोगों के जीन में किस तरह के बदलाव आ रहे हैं। क्योंकि विज्ञान यह कहता है कि वैवाहिक संबंध समुदाय से जितने भिन्न लोगों के साथ रखे जाएंगे, आगे की संतति के जीन की विविधता उतनी ही अधिक होगी, जबकि समुदाय में विवाह करने पर जीन में विकार उत्पन्न हो सकते हैं।
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आर्यों के इतिहास पर यह हैं मत
इतिहासकारों का एक कुनबा यह कहता है कि भारतीय सभ्यता यहीं से निकली है और आर्य इसी का हिस्सा हैं। यही आर्य भारत से निकलकर एशिया व यूरोप के बड़े हिस्सों में फैल गए थे और इन्हीं से इंडो-यूरोपियन भाषाओं का विस्तार हुआ। वहीं, दूसरी तरफ कुछ इतिहासकार व शोध यह बताते हैं कि पिछले 10 हजार सालों में दो मौकों पर बड़ी संख्या में लोग भारत आए। एक दफा दक्षिण-पश्चिम ईरान क्षेत्र से लोग भारत आए और फिर अफ्रीका से बड़ी आबादी भारत आई। इन्हें फर्स्ट इंडियन भी कहा गया है और बताया जाता है कि दोनों ने मिलकर हड़प्पा सभ्यता बसाई।
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