मृत्युंजय की शह पर धूलिया ने की वसूली, बेरोजगारों को लेता था झांसे में
आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले मृणाल धूलिया ने मृत्युंजय मिश्रा की शह पर वसूली की थी।
देहरादून, जेएनएन। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नौकरी के नाम पर ठगी करने वाले मृणाल धूलिया ने मृत्युंजय मिश्रा की शह पर वसूली की थी। वह संपर्क में आने वाले बेरोजगारों को झांसे में लेने के लिए खुद को मिश्रा का बेहद करीबी बताता था। विवि परिसर में उसके रुतबे को देख कर लोग सहज की उसकी बात पर यकीन कर लेते थे। अब तक ठगी के शिकार हुए पंद्रह लोग सामने आ चुके हैं। पुलिस की मानें तो पांच और लोगों ने संपर्क किया है, लेकिन अभी उनकी ओर से तहरीर नहीं आई है।
मृणाल धूलिया पुत्र दिनेश चंद्र धूलिया निवासी जीटीएम मोहकमपुर नेहरू कॉलोनी व उसके भाई नीरज धूलिया ने नेहरू कॉलोनी में ओजस्वी एसोसिएट्स के नाम से आफिस खोल रखा था। धूलिया बंधु उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में पंचकर्म अस्पताल का पीपीपी मोड पर संचालन भी करता था। इसके चलते उसकी नजदीकी तत्कालीन कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा से बढ़ी तो धीरे-धीरे खुद को वह विश्वविद्यालय का ही संचालक बताने लगा। उसका सिक्का चलना शुरू हुआ तो उसी समय विश्वविद्यालय में 135 पदों पर भर्ती निकली। धूलिया बंधुओं ने ऐसा प्रचारित किया जैसे यह सारी भर्तियां उन्हीं को करनी है।
विश्वविद्यालय के अंदरखाने में इसे लेकर हलचल तो थी, लेकिन मिश्रा से नजदीकी और उसके रुतबे को देख कोई भी बोलने का साहस नहीं कर सका। इस दौरान उसने एसोसिएट प्रोफेसर, लैब टेक्नीशियन व अन्य पदों पर नौकरी दिलाने के लिए लोगों से वसूली करने लगा। शुक्रवार को नेहरू कॉलोनी थाने में दर्ज एफआइआर में वादी की ओर से पंद्रह लोगों के नाम दिए गए हैं, जिन्होंने कुल मिला 1.41 करोड़ रुपये धूलिया को दिए थे।
धूलिया के घर पुलिस की दबिश
शुक्रवार को मृणाल धूलिया पर धोखाधड़ी का मुकदमा पंजीकृत करने के बाद पुलिस की एक टीम ने देर रात धूलिया के मोहकमपुर स्थित घर पर दबिश दी, लेकिन यहां कोई नहीं मिला। वहीं शनिवार को नेहरू कॉलोनी स्थित उसके ओजस्वी एसोसिएट्स के आफिस भी पुलिस पहुंची, लेकिन यहां भी ताला लटका मिला।
पैसे देने वालों में हड़कंप
धूलिया बंधुओं की ठगी के शिकार लोगों में हड़कंप की स्थिति है। शनिवार को पांच और लोगों ने पुलिस से संपर्क किया, लेकिन उनकी ओर से अभी तहरीर नहीं दी गई है। इनमें से अधिकांश तो उत्तराखंड के हैं, जबकि इसके अलावा उत्तर प्रदेश व हरियाणा के भी कई लोग शामिल हैं। इन लोगों के चेहरे पर इसलिए हवाइयां उड़ रही हैं कि उनकी जीवन भर की गाढ़ी कमाई डूब चुकी है।
एसपी सिटी श्वेता चौबे ने बताया कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय में हुई ठगी की विवेचना आरंभ कर दी गई है। जल्द ही जिन लोगों ने नौकरी के नाम पर धूलिया बंधुओं को रुपये दिए हैं, उनके बयान लिए जाएंगे। साथ ही गिरफ्तारी के भी प्रयास शुरू कर दिए गए हैं।
आयुर्वेद विवि की नियुक्तियों का खेल बेपर्दा
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्तियों को लेकर एक बार फिर सवाल खड़ा हो गया है। इतने बड़े स्तर पर लेनदेन किसी बड़ी धांधली का इशारा कर रहा है। यह आशंका इसलिए भी अधिक प्रबल हो जाती है, क्योंकि खुद विवि के प्रभारी कुलसचिव, उप कुलसचिव रहते हुए भर्ती प्रक्रिया में बाहरियों के दखल की बात उठा चुके हैं। उनकी मांग पर आवेदनों की स्क्रूटनी को बनी समितियां तक भंग करनी पड़ी थी। उस पर गैर शैक्षणिक पदों पर भर्तियां डेढ़ साल से भी अधिक समय से लटकी पड़ी हैं। धूलिया बंधु पर नौकरी दिलाने के नाम पर तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपये के लेनदेन का आरोप है। ऐसा संभव नहीं है कि पूरा खेल बिना विवि प्रशासन की मिलीभगत के रचा गया हो।
दरअसल, आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्ति से जुड़ा विवाद पुराना है। वर्ष 2016 में विवि ने शैक्षिक, तकनीकी व नर्सिंग संवर्ग सहित विभिन्न पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति जारी की थी। लेकिन कुछ दिन बाद ही विज्ञप्ति निरस्त करने की सूचना वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई। इस बीच काफी तादाद में अभ्यर्थी इन पदों के लिए आवेदन भी कर चुके थे। इससे पहले राजभवन स्तर पर साल 2015 में भी नियुक्तियों पर कई सवाल उठाए गए थे। जिसके बाद प्रक्रिया निरस्त कर दी गई। वर्ष 2017 में विवि ने फिर एक बार विभिन्न पदों पर भर्तियां निकालीं। इनमें से कुछ पदों पर तो भर्ती हो गई, पर बाकी का अता-पता नहीं है। स्टाफ नर्स, पंचकर्म थेरेपिस्ट, लैब टेक्नीशियन आदि के पदों पर भर्ती का विज्ञापन जारी हुआ था। जिसके लिए सैकड़ों अभ्यर्थियों ने आवेदन किए और इसका शुल्क भी जमा किया। बताया गया कि मेरिट लिस्ट भी बनकर तैयार थी। पर इसके बाद से इस भर्ती का कुछ अता-पता नहीं है। अभ्यर्थियों का दावा है कि नौकरी में सेटिंग गेटिंग का खेल चल रहा है।
खुद अधिकारी उठा चुके हैं बाहरियों के दखल की बात
आयुर्वेद विवि में भर्तियों में बाहरियों के दखल की बात भी बार-बार सामने आती रही है। वर्ष 2017 में विभिन्न पदों के प्राप्त आवेदनों की शॉर्ट लिस्टिंग को विवि द्वारा विभिन्न समितियों का गठन किया गया था। तत्कालीन उप कुलसचिव व वर्तमान समय में प्रभारी कुलसचिव डॉ. राजेश कुमार ने तब कुलपति को पत्र भेज कहा था कि संबंधित समितियों के सदस्यों के अतिरिक्त कुछ गैर सदस्य भी इस गोपनीय कार्य में शामिल हैं। जिस पर समितियां भंग कर दी गईं। उस दौरान कई पात्र आवेदकों के आवेदन में से दस्तावेज गायब कर देने व कुछ के फार्म में जानबूझकर स्याही गिरा दिए जाने की बात भी सामने आई थी। पर बात आई-गई हो गई।
चिकित्साधिकारी की भर्ती की चल रही जांच
विश्वविद्यालय में चिकित्साधिकारियों की भर्ती मामले की भी जांच चल रही है। चिकित्साधिकारी के 19 पदों के लिए परीक्षा कराई गई थी। अभ्यर्थियों का कहना था कि जो प्रश्न पत्र उन्हें मिला, वह सीलबंद नहीं था। प्रश्न पत्र में एक ही गाइड के पेज नंबर 859 से 868 तक एक ही सीरियल के एक जैसे प्रश्न दे दिए गए। यह प्रश्न पत्र राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान की 2007 में हुई एमडी परीक्षा से हूबहू लिया गया था। आरोप है कि यह खेल कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए खेला गया।
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