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सात मोर्चों पर देहरादून को सीख लेने की जरूरत

दून जिन मोर्चों पर खासा पिछड़ा साबित हुआ, उनमें बिजली, पानी, स्वास्थ्य, प्रदूषण मुक्त वातावरण, कूड़ा प्रबंधन, जल निकासी के इंतजाम व पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी जन सुविधाएं शामिल हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 01:04 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 03:24 PM (IST)
सात मोर्चों पर देहरादून को सीख लेने की जरूरत
सात मोर्चों पर देहरादून को सीख लेने की जरूरत

देहरादून, [जेएनएन]: बसने योग्य शहरों की सूची में दून को 80वां स्थान हासिल होना यूं तो अपने आप में चिंता की बात है, मगर नागरिक सुविधाओं से जुड़े सात मोर्चे ऐसे हैं, जिन पर खासा ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही उन शहरों से सीख लेने की भी जरूरत है, जिन्होंने इन मोर्चों पर खुद को बेहतर साबित किया है।

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ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स-2018 में दून जिन मोर्चों पर खासा पिछड़ा साबित हुआ, उनमें बिजली, पानी, स्वास्थ्य, प्रदूषण मुक्त वातावरण, कूड़ा प्रबंधन, जल निकासी के इंतजाम व पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी आधारभूत जन सुविधाएं शामिल हैं। यह इंडेक्स जनगणना-2011 के आंकड़ों पर आधारित है। हालांकि, जनगणना से पहले से लेकर अब तक कई मोर्चों पर दून ने काफी काम भी किया। फिर भी बढ़ती आबादी और योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के अभाव में स्थिति उतनी संतोषजनक नहीं मानी जा सकती। मसलन, पेयजल, ऊर्जा, कूड़ा प्रबंधन की दिशा में काफी काम किए गए हैं। यह बात जरूर है कि योजनाओं में समग्रता के अभाव में शहर को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया। जबकि जल निकासी, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य व पब्लिक ट्रांसपोर्ट की दिशा में कोई भी संतोषजनक काम नहीं किया जा सका।

2011 से अब तक बहुत गड़बड़ा चुका भूपयोग

इंडेक्स में भले ही भूपयोग के मामले में दून को देशभर में तीसरा स्थान मिला हो, मगर आज की तस्वीर देखें तो धरातलीय स्थिति बेहद विकट हो गई है। महज 64 वर्ग किलोमीटर के शहर में सीमित दायरे में काफी अधिक सुविधाएं हैं, लेकिन मास्टर प्लान के अनुरूप भूपयोग नियोजित नहीं है। 

यहां काम हुए, अपेक्षित सुधार बाकी

  • पेयजल व्यवस्था: दून की पेयजल आपूर्ति के लिए वर्ष 2008 के आसपास जेएनएनयूआरएम में 60 करोड़ रुपये से अधिक के काम कराए गए। हालांकि, यह काम एक सीमित क्षेत्र में काफी विलंब और अव्यवस्थाओं के बीच हुआ। वहीं, एडीबी पोषित योजना में करीब 2400 करोड़ रुपये का ऋण स्वीकृत हुआ था, जिसमें से 2008 से 2018 के बीच महज 900 करोड़ रुपये के ही काम हो पाए। 
  • ऊर्जा व्यवस्था: वर्ष 2014 में जब रिस्ट्रक्चर्ड एक्सलेरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्मस प्रोग्राम (आर-एपीडीआरपी) आया तो बिजली व्यवस्था में तेजी से सुधार होने लगे। यह योजना अब अंतिम चरण में है। इसके तहत ईसी रोड पर दो गुणा 05 मेगा वोल्ट एंपियर (एमवीए) व मोथरोवाला में 02 गुणा 10 एमवीए के बिजली घर बना दिए गए हैं। इससे शहर के कम से कम 40 हजार लोगों की बिजली आपूर्ति में सुधार हुआ है। साथ ही 600 और नए ट्रांसफार्मर लग जाने के बाद बिजली व्यवस्था को नई ऊर्जा मिली। करीब 191 करोड़ रुपये की इस योजना में 150 करोड़ रुपये से अधिक के काम किए जा चुके हैं। हालांकि, जनगणना 2011 के आंकड़ों के आधार पर हुई, लिहाजा हासिल उपलब्धियां अछूती रह गईं। फिर भी अभी ऊर्जा की दिशा में ढांचे को मजबूत किया जाना है, क्योंकि अभी भी बारिश व अंधड़ में बिजली आपूर्ति निर्बाध नहीं रह पाती।
  • कूड़ा प्रबंधन: दून में रोजाना 295 मीट्रिक टन से अधिक कूड़ा निकलता है, जबकि उठान 200 टन का ही हो पाता है। दूसरी तरफ सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट के शुरू हो जाने के बाद अब तक डोर-टू-डोर कलेक्शन सुचारू नहीं हो पाया है। हालांकि, 2011 तक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट दूर की कौड़ी था।

इन क्षेत्रों में पिछड़ा दून

सेक्टर------------रैंक------अंक

स्वास्थ्य---------108----1.63

ऊर्जा--------------105----0.96

पेयजल-----------101----1.19

प्रदूषण-------------95-----1.49

कूड़ा प्रबंधन--------91----1.39

जल निकासी-------87-----1.03

परिवहन------------78-----(0.71)

सात सेक्टर में अव्वल इन शहरों से सीख लेने की जरूरत

सेक्टर------------शहर------------------अंक

स्वास्थ्य----------तिरुचिरापल्ली------6.16

कूड़ा प्रबंधन------तिरुपति------------5.01

पेयजल------------इरोड------------------4.7 

पर्यावरण------------लुधियाना----------4.42

जल निकासी------विजयवाड़ा------------4.2

परिवहन------------ठाणे------------------3.46

ऊर्जा----------------ठाणे------------------2.91

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