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मॉस्क बीनते मिले बच्चे, कंपनी पर लगाया 50 हजार का जुर्माना

शहर में कूड़ा ट्रांसफर स्टेशन पर पड़े छापे में बच्चों को उपयोग किए गए मॉस्क बीनते पाया गया। शिकायत पर वरिष्ठ नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने छापा मारा तो सच सामने आया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 20 Jun 2020 05:55 PM (IST)Updated: Sat, 20 Jun 2020 05:55 PM (IST)
मॉस्क बीनते मिले बच्चे, कंपनी पर लगाया 50 हजार का जुर्माना
मॉस्क बीनते मिले बच्चे, कंपनी पर लगाया 50 हजार का जुर्माना

देहरादून, जेएनएन। शहर में कूड़ा ट्रांसफर स्टेशन पर पड़े छापे में बच्चों और महिलाओं को उपयोग किए गए मॉस्क बीनते पाया गया। शिकायत पर वरिष्ठ नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरके सिंह ने यहां छापा मारा तो सच सामने आया। डा. सिंह की रिपोर्ट के आधार पर नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने ट्रांसफर स्टेशन का संचालन कर रही चेन्नई एमएसडब्ल्यू कंपनी पर 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया है। इसके साथ ही कंपनी को चेतावनी भी दी गई कि अगर दोबारा यह लापरवाही मिली तो करार खत्म कर दिया जाएगा।

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कोरोना संक्रमण के मद्देनजर केंद्र सरकार ने शुरुआती दिनों में ही सभी राज्य सरकारों को उपयोग किए गए मॉस्क का तय नियमों के तहत निस्तारण करने के आदेश दिए थे। नियमानुसार इनका निस्तारण बॉयोमेडिकल वेस्ट प्लांट में होना चाहिए, लेकिन दून शहर में यह घरों से निकलने वाले कूड़े के साथ या तो डोर-टू-डोर कूड़ा उठान करने वाली गाड़ि‍यों में डाले जा रहे, या सड़क किनारे लगे कूड़ेदानों में। कहीं कहीं पर यह  सड़क पर भी गिरे हुए मिल रहे। इस सबके बावजूद कूड़ा उठान व निस्तारण करने कंपनी इनके उचित निस्तारण की व्यवस्था नहीं कर रही। दरअसल, शहर में डोर-टू-डोर कूड़ा उठान करने की जिम्मेदारी चेन्नई एमएसडब्ल्यू के पास है। कंपनी छोटी गाड़ियों से कूड़ा उठान कर इसे हरिद्वार बाइपास पर ट्रांसफर स्टेशन ले जाती है और वहां से कांपेक्टर या डंपरों के जरिये यह कूड़ा शीशमबाड़ा में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट तक पहुंचाया जाता है।

तय शर्तों के तहत ट्रांसफर स्टेशन पर कूड़े को बीनने का काम नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद कंपनी के अधिकारी बच्चों व महिलाओं के जरिए वहां कूड़ा बीनने का काम करा रहे थे। स्थानीय लोगों ने महापौर सुनील उनियाल गामा और नगर आयुक्त से इसकी शिकायत की थी। जिस पर निगम से स्वास्थ्य अनुभाग की टीम ने शुक्रवार सुबह वहां छापा मारा तो शिकायत सही पाई गई। वरिष्ठ नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा. सिंह ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कूड़ा बीनने का काम कंपनी के सुपरवाइजरों की मौजूदगी में चल रहा था। नगर आयुक्त ने कोविड-19 के तहत एसओपी का उल्लंघन व महामारी अधिनियम के तहत कंपनी पर कार्रवाई कर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।

नहीं सुधर रही कंपनी की कार्यशैली

शहर में डोर-टू-डोर कूड़ा उठान कर रही कंपनी को कार्यशैली सुधारने के लिए नगर निगम द्वारा दिए गए अल्टीमेटम का कंपनी पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। नगर आयुक्त ने बताया कि निगम विधिक राय ले रहा है व उसके बाद कंपनी से करार रद करने का भी फैसला लिया जा सकता है। कंपनी की इस लापरवाही की वजह से लोग परेशान हैं व लगातार शिकायतें कर रहे हैं। आरोप है कि एक-एक हफ्ते तक कूड़ा घरों से नहीं उठ रहा। आरोप है कि कूड़ा उठान नहीं होने से लोग सड़कों पर कूड़ा फेंक रहे या नालियों में बहा रहे। नगर आयुक्त ने बताया कि कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी कर ली गई है।

पांच साल की मशक्कत पानी में

पांच साल की मशक्कत के बाद नगर निगम ने शहर में डोर-टू-डोर कूड़ा उठान का जिम्मा नई कंपनी को दिया था। पहले यह काम वर्ष 2011 से मार्च 2014 तक डीवीडब्लूएम कंपनी ने देखा, लेकिन बाद में हाथ खड़े कर दिए। फिर नगर निगम ने यह काम अपने निर्देशन में एक आउट-सोर्सिंग कंपनी के जरिए कराया लेकिन यूजर-चार्ज में हर महीने निगम को दस से पंद्रह लाख रुपये की चपत लगती रही। पहले निगम में 25 लाख के आसपास यूजर चार्ज आ रहा था, जो महज 10 लाख रह गया। इस बीच जनवरी-18 में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट शुरू हुआ तो डोर-टू-डोर कूड़ा उठान टेंडर कराना भी जरूरी हो गया। हालात ये हैं कि निगम ने इस काम के लिए उसी कंपनी की सहयोगी कंपनी का चयन किया जो सॉलिड वेस्ट प्लांट संभाल रही। इसमें सांठगांठ का आरोप भी लगा पर सब ठंडे बस्ते में चला गया।

कूड़ा नहीं किया जा सकता डंप

निगम के करार की शर्तों के तहत हरिद्वार बाइपास स्थित ट्रांसफर स्टेशन पर कूड़ा डंप नहीं किया जा सकता। वहां छोटी गाड़ियों से कूड़े को सीधे कांपेक्टर में पलटा जाना था, लेकिन कंपनी यह कूड़ा जमीन पर ही पलट रही। जिससे ट्रांसफर स्टेशन के हाल ट्रेंचिंग ग्राउंड जैसे हो गए हैं। जितना कूड़ा डंप हो रहा, उतनी मात्रा में इसे शीशमबाड़ा तक नहीं पहुंचाया जा रहा। जिससे हरिद्वार बाइपास पर कूड़े के पहाड़ बनते जा रहे हैं और आसपास के लोगों का दुर्गंध की वजह से सांस लेना मुश्किल हो चुका है।

ढाई साल में फेल हो चुका है प्लांट

दून के कूड़ा निस्तारण के लिए सेलाकुई के शीशमबाड़ा में बना गया सूबे का पहला सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट व रिसाइक्लिंग प्लांट सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है।  दरअसल, दावे किए जा रहे थे कि यह देश का पहला ऐसा वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट है, जो पूरी कवर्ड है और इससे किसी भी तरह की दुर्गंध बाहर नहीं आएगी, मगर नगर निगम का ये दावा तो शुरुआत में ही हवा हो गया था। उद्घाटन के महज ढाई साल के भीतर अब यह प्लांट कूड़ा निस्तारण में भी 'फेल' हो चुका है। यहां न तो कूड़े का निरस्तारण हो रहा, न ही कूड़े से निकलने वाले दुर्गंध से युक्त गंदे पानी (लिचेड) का। स्थिति ये है कि यहां कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं और गंदा पानी बाहर नदी में मिल रहा।

मुख्यमंत्री जता चुके हैं नाराजगी

23 जनवरी-18 को उद्घाटन के बाद प्लांट शुरू हुआ था। उद्घाटन के दिन ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यहां उठ रही दुर्गंध पर सख्त नाराजगी जाहिर कर इसके उपचार के निर्देश दिए थे, लेकिन यह दुर्गंध कम होने के बजाए बढ़ती गई। दिखावे के लिए निगम की ओर से वायु प्रदूषण जांच कराई गई, लेकिन निजी एजेंसी के जरिए हुई जांच भी सांठगांठ के 'खेल' में दब गई। जन-विरोध लगातार जारी है और दुर्गंध को लेकर स्थानीय लोग प्लांट बंद करने की मांग कर रहे। स्थिति ये है कि ढाई साल के अंदर प्लांट ओवरफ्लो हो चुका है। अब यहां और कूड़ा डंप करने की जगह ही नहीं बची। कूड़े से खाद कम बन रही व कूड़ा ज्यादा डंप हो रहा। कंपनी दावा कर रही कि रोजाना 270 मीट्रिक टन कूड़ा इस प्लांट में पहुंच रहा, पर हकीकत यह है कि यहां 150 मीट्रिक टन कूड़े का भी निस्तारण नहीं हो पा रहा।

हर माह 92 लाख हो रहे खर्च

नगर निगम द्वारा प्लांट का संचालन कर रही रैमकी कंपनी को हर माह कूड़ा उठान से लेकर रिसाइकिलिंग के लिए 92 लाख रुपए दिए जा रहे हैं लेकिन, इस रकम का कारगर उपयोग नहीं हो रहा। प्लांट में सड़ रहा कूड़ा लोगों के लिए मुसीबत बना हुआ है।

चेंबर्स का पता ही नहीं

प्लांट के भीतर कंपनी ने कूड़ा डंपिंग के लिए 30 चेंबर बनाए हुए हैं। कूड़े के पहाड़ के नीचे अब यह चेंबर दिखाई नहीं दे रहे। एक चेंबर में कूड़े को 30 दिन रखे जाने के बाद उससे खाद बनाई जानी थी और उसके बाद ये प्रोसेस साइक्लिंग में चलती रहती। लेकिन जिस तेजी से यहां कूड़ा डंप किया जा रहा है उस तेजी से खाद नहीं बनाई जा रही। ऐसे में चेंबर भी ओवरफ्लो हो गए हैं। अब कंपनी खुले आसमान के नीचे ही कूड़े के ढेर लगा रही है, जो सड़ रहा है।

30 हजार मीट्रिक टन नॉन-डिग्रेडेबल कूड़ा डंप

प्लांट में लगभग 30 हजार मीट्रिक टन नॉन-डिग्रेडेबल कूड़ा जमा है। कंपनी द्वारा अभी तक इस कूड़े के निस्तारण को लेकर कोई रास्ता नहीं निकाला जा सका है। रोज इस ढेर में टनों कूड़ा और डंप हो रहा है।

चेंबर्स में ड्रेनेज सिस्टम नहीं

प्लांट में बनाए गए प्रत्येक चेंबर के लिए कूड़े से निकलने वाले गंदे पानी लिचर्ड का पाइप छोड़ा गया है, लेकिन इसके निस्तारण और सुरक्षित निकास की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कूड़े से निकला गंदा पानी प्लांट के चारों ओर जमा हो रहा है एवं यहां काम करने वाले कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है।

पीसीबी का भी है नोटिस

कूड़े के निस्तारण न होने पर रैमकी को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी नोटिस जारी कर चुका है। स्थिति ये है कि एक साल से इस कारण से बोर्ड ने प्लांट की एनओसी को ही रिन्यूवल नहीं किया है और प्लांट एनओसी के बिना ही चल रहा।

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विनय शंकर पांडेय (नगर आयुक्त) का कहना है कि कंपनी की कार्यप्रणाली बेहद लापरवाह होती जा रही है। कोरोना संक्रमण के बाद भी मॉस्क बीनने का कार्य कराना शर्मनाक है। कंपनी पर महामारी एक्ट के तहत 50 हजार का जुर्माना लगाकर चेतावनी दी गई है। अगर अब सुधार नहीं होता तो कंपनी से करार खत्म कर दिया जाएगा।

एहसान सैफी (प्रोजेक्ट हेड रैमकी व चेन्नई एमएसडब्ल्यू) का कहना है कि लीचेड ट्रीटमेंट और लैंडफिल को लेकर काम कराया जा रहा है। कोशिश यह है कि एक महीने के भीतर सभी खामियों को दूर कर लिया जाए।

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