सैलानियों को फिर से मोहपाश में बांधने को तैयार चौरासी कुटी, इस मशहूर रॉक बैंड से भी रहा है नाता
महर्षि महेश योगी की साधना स्थली रही चौरासी कुटी अब फिर से सैलानियों को अपने मोहपाश में बांधने को तैयार है। राजाजी नेशनल पार्क की गौहरी रेंज में ऋषिकेश से सात किमी के फासले पर सुरम्य वादी में है यह स्थली।
देहरादून, केदार दत्त। भावातीत ध्यान के प्रणेता महर्षि महेश योगी की साधना स्थली रही चौरासी कुटी अब फिर से सैलानियों को अपने मोहपाश में बांधने को तैयार है। राजाजी नेशनल पार्क की गौहरी रेंज में ऋषिकेश से सात किमी के फासले पर सुरम्य वादी में है यह स्थली। महर्षि महेश योगी ने 1970 में यहां शंकराचार्यनगर की स्थापना की। योग साधना को गुंबदनुमा 84 कुटियाएं बनवाई गई। फिर यह स्थल चौरासी कुटी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मशहूर रॉक बैंड बीटल्स गु्रप ने भी कई गीतों की धुनें यहीं तैयार की। राजाजी पार्क के अस्तित्व में आने पर चौरासी कुटी बंद कर दी गई। 2015 में यह धरोहर सैलानियों के लिए खोली गई। तब से इसके कद्रदान निरंतर वहां का रुख कर रहे हैं। गत वर्ष 41 हजार से ज्यादा सैलानी चौरासी कुटी पहुंचे थे। कोविड के कारण मार्च से बंद इस स्थली को अब 15 अक्टूबर से खोलने की तैयारी है।
आखिर कब सुनाई देगी सोन की सीटी
ज्यादा वक्त नहीं गुजरा, जब राजाजी नेशनल पार्क से 31 साल पहले विलुप्त हो चुके वाइल्ड डॉग (सोन) फिर से बसाने की जोर-शोर से बात हुई। भौंकने की बजाए सीटी बजाने जैसी आवाज निकालने वाले सोन कुत्ते झुंड में रहते हैं और इनका एक सामाजिक सिस्टम होता है। झुंड में ही ये शिकार करते हैं। राजाजी में इनको लाने के पीछे मंतव्य गुलदारों पर प्राकृतिक तरीके से नियंत्रण करना भी था। फिर सोन कुत्ते मनुष्य के लिए खतरा भी नहीं हैं। पिछले पांच सौ वर्षों में इनके द्वारा मनुष्यों पर हमले की बात सामने नहीं आई है। इस सबको देखते हुए स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड ने भी वन विभाग के इस प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी थी। फिर महाराष्ट्र या कर्नाटक से इन्हें लाने की बात हुई, मगर पिछले छह माह से यह मसला ठंडे बस्ते में है। यह पहल कब परवान चढ़ेगी, ये भविष्य के गर्भ में छिपा है।
कुंभ पर मंडराया गुलदार, हाथियों का साया
कोरोनाकाल में हरिद्वार में अगले साल होने वाले कुंभ पर कोरोना के साथ ही गुलदार, हाथियों का साया भी मंडरा रहा है। दरअसल, राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे हरिद्वार और उसके आसपास के इलाकों में लंबे समय से हाथियों व गुलदारों का खौफ तारी है। आए दिन इनका आबादी वाले इलाकों, सड़कों पर धमककर उत्पात मचाना सुर्खियां बन रहा है। यदि इसे थामने को जल्दी से कदम नहीं उठाए गए तो कुंभ के दौरान उमडऩे वाली भीड़ के लिए ये वन्यजीव मुसीबत का सबब बन सकते हैं। सरकार से लेकर शासन और वन महकमे को यह चिंता सता रही है। हालांकि, इससे निबटने को वन सीमा पर सोलर फेंसिंग, हाथी-गुलदारों की निगरानी को उन पर रेडियो कॉलङ्क्षरग का निर्णय जरूर लिया गया है, मगर कोरोना संकट के चलते इन कार्यों की रफ्तार मंद पड़ी है। लिहाजा, चुनौती अब तीन माह के वक्फे में इन कार्यों को पूरा कराने की है।
देवलसारी में और ज्यादा सशक्त हुई जैवविविधता
किसी भी क्षेत्र में मॉथ यानी पतंगों की बड़ी संख्या में मौजूदगी वहां की मजबूत जैवविविधता का सूचकांक भी है। इस लिहाज से देखें तो टिहरी जिले के अंतर्गत देवलसारी का जंगल और भी सशक्त हुआ है। वहां रात में उड़ने वाले पतंगों की तो अच्छी-खासी तादाद है ही, वन्यप्राणी सप्ताह के दौरान देवलसारी में दिन में उडऩे वाला पतंगा एचिलूरा बाइफासियाटा भी रिपोर्ट हुआ है। यह पतंगा भी दो-चार की नहीं, बल्कि सैकड़ों की संख्या में है।
ये पहला मौका है, जब गढ़वाल मंडल में यह पतंगा दिखा है। देवलसारी में इसकी मौजूदगी दर्शाती है कि वहां जैवविविधता सरंक्षण के प्रयास रंग ला रहे हैं। असल में वन पंचायत के इस जंगल के संरक्षण का बीड़ा स्थानीय युवाओं की समिति ने उठाया है। उसके प्रयासों का नतीजा है कि देवलसारी परिंदों के बड़े घर के रूप में उभरा है तो तितलियों और मॉथ का भी वहां अनूठा संसार है।
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