केंद्र सरकार का रमजान पर सैन्य कार्रवार्इ पर रोक का फैसला गलत
पूर्व सैन्य अधिकारियों ने रमजान के मौके पर नए सैन्य ऑपरेशन शुरू नहीं करने के केंद्र सरकार के फैसले को पूरी तरह से गलत बताया है।
देहरादून, [जेएनएन]: केंद्र सरकार के सुरक्षा बलों को घाटी में रमजान के दौरान किसी भी तरह का नया ऑपरेशन शुरू ना करने के निर्देश को पूर्व सैन्य अधिकारियों ने गलत माना है। उनका कहना है कि युद्धविराम दो मुल्कों के बीच में होता है, न कि आतंकियों और सेना के बीच में।
कश्मीर में लगातार सैन्य कार्रवाई से आतंकियों के हौसले पस्त हुए हैं। वह अब इस मौके का फायदा उठाकर एकजुट होने की कोशिश करेंगे और खुद को ताकतवर बनाएंगे। उन्हें षड्यंत्र रचने और कश्मीरियों के बीच दुष्प्रचार का अच्छा मौका मिल गया है। उस पर लश्कर-ए-तैय्यबा इस प्रस्ताव को नकार चुका है। जाहिर है कि आतंकी चुप बैठने वाले नहीं हैं। वर्ष 2000 में भी रमजान के मौके पर ऐसा ही निर्णय लिया गया था। तब आतंकवादियों ने कई बड़े आतंकवादी हमले किए थे, जिसमें श्रीनगर हवाई अड्डे पर किया गया हमला भी शामिल था।
लें.जनरल (सेनि.) एमसी भंडारी का कहना है कि यह एक तरह का राजनीतिक स्टंट है। इसका नुकसान हमें ही होगा। यह कहा गया है कि आतंकियों की ओर से हमला होने की सूरत में सुरक्षाबल जवाबी कार्रवाई कर सकेंगे। यानी जान-माल का नुकसान होने के बाद रिस्पांड करेंगे। सामरिक नीति का जरा भी ज्ञान रखने वाला शख्स इससे इत्तेफाक नहीं रखेगा। मैं खुद कई साल तक घाटी में रहा हूं। इस वक्त सैन्य कार्रवाई से आंतकी दबाव में हैं। लेकिन, यह फैसला उनके लिए एक मौके की तरह है।
ले. जनरल (सेनि.) ओपी कौशिक का कहना है कि मैं इस फैसले के पक्ष में नहीं हूं। सरकार की इस एकतरफा घोषणा का कोई असर आतंकवादियों पर नहीं पड़ने वाला है। वह निर्दोष लोगों और सुरक्षाबलों को निशाना बनाते रहेंगे। जब कभी भी कश्मीर या उत्तर पूर्व में इस तरह का सीजफायर हुआ है, आतंकी संगठनों ने खुद को नए सिरे से संगठित करने, नए हथियार जुटाने में इसका इस्तेमाल किया है। इससे उन्हें दुष्प्रचार का भी मौका मिलता है।
ले. जनरल (सेनि.) गंभीर सिंह नेगी ने कहा जब सेना वहां आतंकियों के खात्मे के सफल अभियान में जुटी है तो सवाल यह है कि क्या यह फैसला राजनीतिक और रणनीतिक दोनों तरह से गलत नहीं है। यह कदम आतंकी गुटों में जान फूंकने जैसा होगा। क्योंकि फैसला ऐसे समय में लिया गया है, जब आतंकियों के हौसले पस्त होते जा रहे हैं। ऐसे कदम पहले भी उठाए गए हैं। लेकिन, पिछले अनुभव बताते हैं कि इससे आतंकी गुटों ने खुद को मजबूत कर लिया था। इस कदम का हमें ही नुकसान होगा।
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