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उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में कर रहे हैं सफर तो हो जाइए सावधान

उत्तराखंड परिवहन निगम अब भी सड़कों पर उन बसों को दौड़ा रहा है जो अपनी आयु सीमा पूरी कर चुकी हैं। इससे किसी दुर्घटना के होने की भी आशंका है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 06 Jul 2018 06:19 PM (IST)Updated: Sun, 08 Jul 2018 05:19 PM (IST)
उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में कर रहे हैं सफर तो हो जाइए सावधान

देहरादून, [अंकुर अग्रवाल]: उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में अगर आप सफर कर रहे हैं तो संभलकर रहें। कहीं ऐसा न हो कि चलती बस का स्टेयरिंग जाम हो जाए या फिर कमानी टूट जाए। ये आशंका भी है कि कहीं बस के ब्रेक फेल न हो जाएं। जिससे कहीं भी कोर्इ भी दुर्घटना हो सकती है। दरअसल, परिवहन निगम की 243 बसें गत एक जुलाई को अपनी आयु सीमा की मियाद पूरी कर चुकी हैं, फिर भी इन्हें सड़कों पर दौड़ाया जा रहा। इतना ही नहीं दिसंबर तक कुल 378 बसें कंडम की श्रेणी में आ जाएंगी। जिससे निगम का बस बेड़ा लगभग आधा रह जाएगा। अभी तक रोडवेज ने नई बसों की खरीद का प्रस्ताव तक नहीं बनाया। ऐसे में पर्वतीय मार्गों पर सेवाएं बढ़ाना तो दूर, वर्तमान में संचालित सेवाएं देना भी मुश्किल हो जाएगा। 

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परिवहन निगम के नियमानुसार एक बस अधिकतम आठ साल अथवा आठ लाख किलोमीटर तक चल सकती है। इसके बाद बस की नीलामी का प्रावधान है, मगर यहां ऐसा नहीं हो रहा। परिवहन निगम के पास 1407 बसों का बेड़ा है। इनमें 1059 बसें निगम की अपनी हैं जबकि 224 अनुबंधित हैं। इसके अलावा 124 जेएनएनयूआरएम की हैं। बेड़े की करीब 900 बसें ऑनरोड रहती हैं, जबकि बाकी विभिन्न कारणों से वर्कशॉप में। 

परिवहन निगम की बीती एक जुलाई की रिपोर्ट के मुताबिक ऑनरोड व ऑफरोड बसों में 243 कंडम हो चुकी हैं। नियमानुसार इन बसों की नीलामी हो जानी चाहिए थी मगर निगम इन्हें दौड़ाए जा रहा है। इससे या तो बीच रास्ते में बसें खराब हो जाती हैं या हादसे का शिकार बन जाती हैं। ऐसे कई पिछले उदाहरण हैं जब बसों के स्टेयरिंग निकल गए या फिर ब्रेक फेल हो गए। 

पिथौरागढ़ में 20 जून 2016 को हुआ हादसा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। आयु सीमा पूरी कर चुकी बस हादसे का शिकार बनी और चालक समेत 14 यात्री काल के मुंह में समा गए। बसों में ईंधन पंप खराब होने व कमानी टूटने के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं। निगम की रिपोर्ट में यह जिक्र है कि 1959 बसों में से दिसंबर तक 378 बसें आयु सीमा पूरी कर लेंगी। रिपोर्ट में तत्काल नई बसें खरीदने की बात कही गई है। 

मैकेनिक की भारी कमी 

परिवहन निगम के पास तकनीकी स्टाफ की कमी है। उत्तर प्रदेश से पृथक होने के बाद आधे से ज्यादा नियमित कर्मी रिटायर हो चुके हैं। नई भर्ती हुई नहीं। कार्यशाला में एजेंसी कर्मियों से काम चलाया जा रहा है। उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन के प्रांतीय महामंत्री अशोक चौधरी का कहना है कि कंडम बसों को किसी सूरत में मार्ग पर नहीं भेजना चाहिए। इस बसों को बीमा क्लेम तक नहीं मिलता। यही ये हादसे का शिकार हो जाएं तो जिम्मेदारी कौन लेगा। 

एसी बसों का भी बुरा हाल 

एसी बसों में सुहाने-आरामदायक सफर का दावा करने वाला परिवहन निगम भले ही यात्रियों से भारी-भरकम किराया वसूल रहा हो, लेकिन सफर में न तो आराम है न ही सुकून। हालत ये है कि 50 फीसद एसी बसों में एसी खराब पड़े हैं और सीटें टूटी हुई हैं। आधी बसों में सीटों के पुश-बैक काम नहीं करते तो कुछ से गद्दियां गायब हैं। बसों में सीट के ऊपर लगे ब्लोवर तक टूटे पड़े हैं और मोबाइल चार्जर के सॉकेट काम नहीं कर रहे। पानी की बोतल रखने के क्लैंप गायब हैं और पंखे भी चालू नहीं हैं। बसें अनुबंधित हैं, फिर भी निगम इनसे संबंधित कंपनी पर कार्रवाई नहीं करता। 

एक बस अड्डा तक नहीं खोला 

एक तरफ सरकार प्रदेश के दूरस्थ और ग्रामीण इलाकों में रोडवेज बस संचालन का दावा ठोक रही, जबकि हकीकत ये है कि गुजरे पंद्रह वर्ष में सरकार एक अदद बस अड्डा तक नहीं खोल सकी। उत्तर प्रदेश से अलग होकर अक्टूबर-2003 में उत्तराखंड परिवहन निगम का गठन हुआ। उस समय गढ़वाल मंडल में पर्वतीय मार्ग के लिए केवल एक बस अड्डा पर्वतीय डिपो देहरादून में था, जबकि कुमाऊं में पिथौरागढ़, लोहाघाट, रानीखेत, अल्मोड़ा व भवाली डिपो पर्वतीय क्षेत्र में थे। उस दौरान सरकार ने कुमाऊं में रामनगर नया डिपो खोला। फिर दो साल पूर्व सरकार ने गढ़वाल में श्रीनगर में डिपो खोला। 

स्थिति ये है कि दोनों बस डिपो के बुरे हालात हैं। श्रीनगर में तो डिपो खुलने से पूर्व भी पांच बसें संचालित हो रही थीं और आज भी पांच ही बसें चल रहीं। पूर्व में कांग्रेस और वर्तमान की भाजपा सरकारों ने सदन में दावा किया था कि सभी जिलों में बस अड्डे खोले जाएंगे और उन्हें प्रदेश और देश की राजधानी से जोड़ा जाएगा, लेकिन यह हवाई साबित हुआ। बीते वर्ष अप्रैल में गुमा बस हादसे के बाद जौनसार-बावर में समूची परिवहन व्यवस्था रोडवेज बसों के सुपुर्द करने की बात कहते हुए सरकार ने कालसी या चकराता में नया बस अड्डा खोलने का दावा किया था, यह एलान एक वर्ष बाद भी अधूरा है। 

250 नई बसें खरीदेगी सरकार 

रोडवेज की दुर्दशा पर परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने 250 नई बसें खरीदने की बात कही है। आर्य ने कहा कि गुरूवार को ही उनकी रोडवेज प्रबंध निदेशक से वार्ता हुई है। बसों की स्थिति की समीक्षा रिपोर्ट के बाद उन्होंने प्रबंध निदेशक को तत्काल 250 छोटी-बड़ी नई बसों का प्रस्ताव बना मंत्रालय को भेजने के निर्देश दिए हैं। आर्य ने कहा कि सरकार इसमें मदद करेगी। नए बस अड्डों को लेकर नाबार्ड और एडीबी से बात चल रही। सितारगंज व बागेश्वर में बात फाइनल हो चुकी है। आर्थिक हालात कमजोर होने के चलते नए कार्यों में कुछ परेशानी आ रहीं, लेकिन जल्द ही सरकार के तमाम वायदे पूरे किए जाएंगे। 

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