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उत्‍तराखंड के सियासी जंगल में भटक गया हाथी

अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में यूं तो भाजपा और कांग्रेस का ही वर्चस्‍व रहा मगर इन दोनों के अलावा बसपा भी अपनी अहम उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रही। मगर चौथे विधानसभा चुनाव में भाजपा की आंधी के सामने बसपा का हाथी भी टिक नहीं पाया।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2020 12:17 PM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 12:17 PM (IST)
उत्‍तराखंड के सियासी जंगल में भटक गया हाथी
उत्‍तराखंड के सियासी जंगल में भटक गया हाथी।

देहरादून, विकास धूलिया। उत्‍तराखंड में अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में यूं तो भाजपा और कांग्रेस का ही वर्चस्‍व रहा है, मगर इन दोनों के अलावा बहुजन समाज पार्टी भी अपनी अहम उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रही। पहले तीन चुनावों में तो पार्टी का प्रदर्शन काबिलेगौर रहा, मगर चौथे विधानसभा चुनाव में भाजपा की आंधी के सामने बसपा का हाथी भी टिक नहीं पाया। इसके बावजूद हासिल मत प्रतिशत के लिहाज से तीसरा स्‍थान बसपा का ही था। यह स्थिति तब है जब सांगठनिक रूप से बसपा हमेशा अस्थिर नजर आई। पिछले 20 वर्षों के दौरान बसपा उत्‍तराखंड में 17 प्रदेश अध्‍यक्ष नियुक्‍त कर चुकी है, जबकि 13 दफा प्रदेश प्रभारी बदले गए हैं। 

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बसपा बनी तीसरी बड़ी ताकत

उत्‍तराखंड के अलग राज्‍य बनने पर पहली अंतरिम विधानसभा में कुल 30 सदस्‍य शामिल किए गए थे, इनमें बसपा के दो सदस्‍य शामिल थे। दरअसल, तब उत्‍तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्‍व करने वाले 30 सदस्‍यों को लेकर अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया था। वर्ष 2002 में पहले विधानसभा चुनाव हुए, इसके लिए राज्‍य को 70 विधानसभा क्षेत्रों में विभक्‍त कर दिया गया था। इस चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्‍ता से बाहर करते हुए 36 सीटें हासिल कर बहुमत के आंकड़े को छुआ। भाजपा के हिस्‍से आई 19 सीटें। आश्‍चर्यजनक प्रदर्शन रहा बसपा का, जिसे मिलीं सात सीटें और 10:93 प्रतिशत मत।

हाथी ने फिर बढ़ाई अपनी पहुंच

वर्ष 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव बसपा के लिए प्रदर्शन के लिहाज से अब तक के सबसे बेहतर चुनाव रहे। इस चुनाव में फिर सत्‍ता कांग्रेस के हाथ से फिसलकर भाजपा के पास चली गई। भाजपा को 70 सदस्‍यों वाली विधानसभा में ठीक आधी, यानी 35 सीटें मिलीं। कांग्रेस के खाते में आई 21 सीट। भाजपा ने बाहरी समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात रही बसपा को मिली चुनावी सफलता। बसपा के आठ विधायक चुने गए। यानी, पिछली विधानसभा के मुकाबले बसपा के विधायकों की संख्‍या में एक की बढ़ोतरी हुई। यही नहीं, पार्टी को हासिल मतों में भी इजाफा हुआ। बसपा को कुल 11.76 फीसद मत प्राप्त हुए।

सीट तो घटीं, मत प्रतिशत बढ़ा

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की फिर सत्‍ता में वापसी हुई। हालांकि सीटों के लिहाज से भाजपा और कांग्रेस में कड़ी टक्‍कर देखने को मिली। कांग्रेस को मिली 32 सीटें, तो भाजपा महज एक सीट पीछे रहकर 31 तक ही पहुंच पाई। स्‍वाभाविक रूप से राज्‍य विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के कारण कांग्रेस सरकार बनाने की दावेदार बन गई। इस बार हालांकि बसपा सीटों के लिहाज से पिछली बार के मुकाबले आधे से भी कम प्रदर्शन कर पाई, उसके हिस्‍से आई महज तीन सीट। इसके बावजूद बसपा को हासिल मतों में इजाफा हुआ। बसपा ने 12.29 प्रतिशत मत पाए, जो पिछली बार से 0.54 प्रतिशत ज्‍यादा रहे।

हाथी को भी सत्‍ता में हिस्‍सेदारी

इस बार महत्‍वपूर्ण यह रहा कि विधानसभा में कांग्रेस को स्‍पष्‍ट बहुमत न मिलने से उसे सरकार बनाने के लिए बाहरी मदद की जरूरत पडी। इससे बसपा को सत्‍ता में हिस्‍सेदारी का मौका मिल गया। बसपा, कांग्रेस को समर्थन देकर सरकार में भी शामिल हुई। अब यह बात दीगर है कि इनमें से भगवानपुर सीट पर हुए उपचुनाव में यह सीट कांग्रेस ने जीत ली। उसके बाद बसपा के पास महज दो ही सीटें रह गई। कांग्रेस के साथ साझेदारी शायद बसपा को रास नहीं आई। एक तरह से कांग्रेस ने बसपा के वोटबैंक में सेंधमारी करनी शुरू कर इसमें सफलता भी पाई। इसके बाद तो जैसे उत्‍तराखंड में बसपा का बुरा दौर ही शुरू हो गया।

शून्‍य पर पार्टी, मत भी हुए आधे

अब बात करें वर्ष 2017 के चौथे विधानसभा चुनाव की। इस बार तो सूबे की सियासत में इतिहास ही रच दिया गया। भाजपा ने अकेले दम 70 में से 57 सीटों पर जीत कर परचम फहरा दिया। सत्‍ता से बेदखल हुई कांग्रेस केवल 11 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। सिटिंग सीएम हरीश को रावत दो-दो सीटों पर करारी शिकस्‍त झेलनी पड़ी।

भाजपा को 46.50 प्रतिशत मत मिले, तो कांग्रेस 33.50 प्रतिशत मतों के साथ 13 प्रतिशत मतों से पिछड़ गई। बसपा का तो सूपड़ा ही साफ हो गया। पार्टी खाता ही नहीं खोल पाई। अलग राज्‍य बनने के बाद पहली दफा बसपा का हाथी विधानसभा से गायब। मत प्रतिशत 6.90 प्रतिशत तक गिर गया।

केवल मैदान में ही दौड़ा हाथी

उत्‍तराखंड में पिछले चार विधानसभा चुनावों का आकलन किया जाए तो साफ हो जाता है कि बसपा की चुनावी सफलता केवल दो मैदानी जिलों तक ही सीमित रही है, हरिद्वार और और ऊधमसिंह नगर। इन दो जिलों में अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यकों की तादाद काफी है। इसी वजह से दोनों जिलों में बसपा का ठीकठाक जनाधार रहा है। वर्ष 2002 के चुनाव में बसपा को हरिद्वार जिले की पांच और ऊधमसिंह नगर जिले की दो सीटों पर सफलता मिली। इनमें से छह सीटें अनुसूचित जाति आरक्षित सीटें थीं। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव, जो बसपा का अब तक का चरम है, में भी बसपा की कामयाबी इन्‍हीं दो जिलों तक सीमित रही।

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बहनजी, महावतों पर करो भरोसा

तब बसपा को हरिद्वार में छह और उधमसिंह नगर जिले की दो सीटों पर जीत मिली। इनमें दो सीटें आरक्षित थीं। वर्ष 2012 में बसपा को हरिद्वार जिले में ही तीन सीट हासिल हुईं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा एक तरह से अर्श से फर्श तक का सफर तय कर शून्‍य पर जा सिमटी। अब जबकि अगले विधानसभा चुनाव में सवा साल का ही वक्‍त बचा है, देखते हैं बसपा का हाथी कहां तक पहुंच पाता है। एक बात और, अगर बहनजी, 20 साल में 17 प्रदेश अध्‍यक्ष और 13 प्रदेश प्रभारी नियुक्‍त करेंगी, तो हाथी अपने दम पर कुछ नहीं कर पाएगा, क्‍योंकि उसे भी कुशल महावतों का मार्ग निर्देशन चाहिए।

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