सरकारी अस्पतालों में भी बिक रही ब्रांडेड दवाइयां, कब टूटेगी नींद
निजी अस्पतालों के साथ ही सरकारी अस्पतालों में भी ब्रांडेड दवाइयां बेची जा रही है। ऐसे में इस तरफ भी ध्यान देना बेहद जरूरी है।
देहरादून, [जेएनएन]: जेनेरिक दवाएं किफायती हैं और यदि सरकार का नियामक तंत्र सही काम करे तो उनका प्रभाव भी ब्रांडेड दवाओं की तरह ही होता है, लेकिन दवा कंपनियों के मुनाफा कमाने की होड़ ने डॉक्टरों एवं केमिस्टों के साथ मिल कर एक ऐसा जाल बुन दिया है कि न तो केमिस्टों को इन्हें बेचने में रुचि है और न ही डॉक्टरों की लिखने में दिलचस्पी। एमसीआइ से लेकर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन तक इस बावत निर्देश जारी कर चुके हैं, पर व्यस्था अमल में नहीं आ सकी है। निजी अस्पतालों की बात छोड़िए, सरकारी में भी ब्रांडेड दवा लिखने की शिकायतें कम नहीं है। अब जब उच्च न्यायालय ने सभी सरकारी और गैर सरकारी चिकित्सालयों में जेनरिक दवाइयां लिखे जाने का आदेश दिया है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार व शासन भी इसे लेकर गंभीर होंगे।
दरअसल, केंद्र सरकार ने आम लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए जनऔषधि केंद्र को बढ़ावा देना शुरू किया है। लेकिन, इसकी उपलब्धता अभी भी सीमित है। ऐसे में दवा के नाम पर उपभोक्ता लगातार लूटे जा रहे हैं। दवाओं का पूरा खेल कमीशन और बिचौलियों का है। इसी में फंसकर लोग ठगे जा रहे हैं। जिस जेनेरिक टेबलेट की कीमत 20 पैसे होती है, उसे ब्रांडेड में एक रुपए में बेचा जाता है। मतलब, सीधे पांच गुना ज्यादा कीमत। इसे बड़े रूप में देखें, तो सौ रुपए की दवा 500 में और 500 की दवा 2500 में। कीमत में यह अंतर इससे कम भी हो सकता है और ज्यादा भी। शासन-प्रशासन जेनरिक दवा को लेकर बार-बार निर्देश जारी कर रहे हैं, लेकिन स्थिति ढाक के तीन पात। दवा के तीन पर्चे के रूप में अब एक पहल जरूर हुई है।
क्लीनिक एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर सुस्त चाल
राज्य के निजी क्लीनिकों को क्लीनिक एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के दायरे में लाना स्वास्थ्य विभाग के लिये टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। एक्ट के कई बिंदुओं को आइएमए मानने को तैयार नहीं है। कई दौर की वार्ता के बाद भी समाधान नहीं निकल पाया है। उम्मीद है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद इस ओर कुछ तेजी दिखाई देगी। केंद्र सरकार द्वारा करीब ढाई वर्ष पूर्व क्लीनिकल एस्टेबलिशमेंट एक्ट पारित किया गया था।
स्वास्थ्य कान्करेंट सूची का विषय है, लिहाजा स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता व बेहतरी के उद्देश्य से पारित हुए इस एक्ट को लागू करना राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी है। यह दीगर बात है कि उत्तराखंड सरकार इस महत्वपूर्ण एक्ट को राज्य में लागू नहीं कर पाई। इसका कारण निजी अस्पतालों का भारी दबाव रहा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) को इसके कुछ प्रावधानों पर आपत्ति है। वह लगातार न्यूनतम मानक तय करने की बात करता रहा है।
आइएमए पदाधिकारियों का मत है कि इसे मौजूदा स्वरूप में लागू किया गया तो आधे से ज्यादा क्लीनिक और नर्सिग होम में ताले पड़ जाएंगे। दरअसल, इस एक्ट में कई ऐसे प्रावधान हैं, जिनसे निजी अस्पतालों, डॉक्टरों व नर्सिग होम की मनमानी पर अंकुश लगेगा, जबकि आम जनता के लिए स्वास्थ्य सेवाएं और ज्यादा सुलभ और सस्ती हो जाएंगी। सभी अस्पतालों, क्लीनिक, नर्सिग होम और डॉक्टरों को इस एक्ट के तहत पंजीकरण कराना जरूरी हो जाएगा।
चिकित्सा उपचार संबंधी हर सेवा का शुल्क भी अस्पतालों की श्रेणीवार निर्धारित हो जाएगा। निजी अस्पतालों आदि को अपने डॉक्टर व अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की योग्यता के प्रमाण भी उपलब्ध कराने होंगे। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जुर्माने व अन्य दंड के भी प्रावधान किए गए हैं। इसलिए भी अधिकांश अस्पताल इसका विरोध कर रहे हैं। एक्ट में यह है नियम एक्ट के अनुसार प्रदेश के सभी जिलों में मान्यता प्राप्त चिकित्सा प्रणाली के संचालित संस्थानों का जिला रजिस्ट्रीकरण प्राधिकरण में पंजीकरण किया जाना है। प्राधिकरण के अधिकार नियमों को सख्ती से लागू करने के लिए प्राधिकरण और उसके सदस्यों को कार्रवाई के अधिकार भी दिए गए हैं।
इसके तहत सक्षम अधिकारी किसी भी संस्थान में दाखिल होने, निरीक्षण करने और तलाशी लेने में सक्षम है। इसके अलावा रजिस्ट्रीकरण निलंबन और निरस्त करने का अधिकार भी उसे है। अस्पतालों को करने होंगे यह काम एक्ट के अनुसार प्रत्येक प्राइवेट संस्थान को अनंतिम प्रमाण पत्र हासिल करने के 45 दिनों के भीतर पंजीकृत एस्टेब्लिशमेंट का नाम, पता, स्वामित्व, उत्तरदायी व्यक्ति का नाम, किस चिकित्सा विधा की सेवाएं दी जा रही हैं, सेवा का प्रकार व प्रकृति, चिकित्सक, नर्स और अन्य कर्मियों का पूरा ब्योरा सार्वजनिक करना होगा। उन्हें यह ब्योरा प्राधिकरण की वेबसाइट पर भी अनिवार्य रूप से अपलोड करना है। चिकित्सा सुविधा देने वाले संस्थानों को सेवाओं के एवज में वसूले जाने वाले शुल्क का पूरा ब्योरा प्रदर्शित करना है।
सजा नियमों का उल्लंघन करने वाले, बिना पंजीकरण स्थापना पर पहले अपराध के लिए 50 हजार, दूसरे अपराध के लिए दो लाख और इसके बाद पाच लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। गैर पंजीकृत संस्थानों पर 25 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
प्रांतीय महासचिव डॉ. डीडी चौधरी ने कहा कि हमें एक्ट नहीं, बल्कि कुछेक प्रावधानों पर आपत्ति है। शासन स्तर पर वार्ता हुई है और न्यूनतम मानक का जो खाका हमने रखा है उस पर सहमति भी बन चुकी है। अगर सरकार निजी चिकित्सालयों को हरियाणा की तर्ज पर 50 बेड तक की छूट देने पर राजी है, तो एक्ट चाहे आज लागू करे। मौजूदा प्रारूप में इसे लागू किया गया तो छोटे-छोटे अधिकतर अस्पताल बंद हो जाएंगे। जहां तक हाईकोर्ट के निर्णय का प्रश्न है, इस पर विधिक राय ली जाएगी। जरूरत पड़ने पर आइएमए कोर्ट में अपना पक्ष रखेगा।
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