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उत्पादन और रोजगार में कटौती, उत्तराखंड में भी सहमे उद्योग

औद्योगिक क्षेत्र में मंदी की दस्तक से उत्तराखंड में भी उद्योग और उद्यमी दोनों ही सहमे हुए हैं। इससे बाजार में सुस्ती छाई हुई है।

By Edited By: Published: Thu, 22 Aug 2019 09:20 PM (IST)Updated: Fri, 23 Aug 2019 02:36 PM (IST)
उत्पादन और रोजगार में कटौती, उत्तराखंड में भी सहमे उद्योग
देहरादून, राज्य ब्यूरो। देश में औद्योगिक क्षेत्र में मंदी की दस्तक से उत्तराखंड में भी उद्योग और उद्यमी दोनों ही सहमे हुए हैं। खासतौर पर बाजार में जिस तरह सुस्ती छाई हुई है, उससे राज्य में ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट में गिरावट साफ दिख रही है। इसका नतीजा उद्योगों के उत्पादन में कटौती के रूप में तो दिख ही रहा है, साथ में बड़ी संख्या में रोजगार पर भी इसका अंदेशा बरकरार है। बड़े और छोटे उद्यमियों, बिल्डर्स से लेकर स्मॉल ट्रेडर्स तक सभी चाहते हैं कि बाजार में किसी तरह कैश फ्लो में इजाफा हो। बाजार में नई उमंग के लिए इसे बेहद जरूरी माना जा रहा है। कैश फ्लो के लिए सरकार पर टकटकी बांधी गई है। 
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआइआइ) मनी सरकुलेशन को मंदी से निपटने का ठोस जरिया मान रही है। वहीं उत्तराखंड इंडस्ट्रीज एसोसिएशन का मानना है कि सरकारी क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में जितनी तेजी आएगी, बाजार पर खतरे से निपटने में उतनी ही मदद मिल सकेगी। ऑटोमोबाइल के साथ फार्मा व खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों ने उत्तराखंड को बड़ी संख्या में पसंद किया है, लेकिन मंदी के इस दूसरे दौर में उद्योग खासतौर पर ऑटोमोबाइल सेक्टर ज्यादा ठिठका हुआ है। वजह उत्तराखंड में टाटा, हीरो, बजाज, अशोक लीलैंड जैसे देश के नामी उद्यम स्थापित हैं। देश के दोपहिया और चौपहिया वाहनों के उत्पादन में राज्य का बड़ा योगदान है। मंदी के साथ ही इलेक्ट्रिकल व्हीकल्स और इंश्योरेंस के साथ ही प्रदूषण मुक्ति को लेकर किए जाने वाले उपायों और बीएस-06 इंजन जैसे इंजन को तवज्जो दिए जाने की नीति ऑटोमोबाइल सेक्टर के मौजूदा ढर्रे को ज्यादा प्रभावित करती दिख रही है। 
प्रदेश में ऑटो सेक्टर में उत्पादन में कमी आई है तो वाहनों की बिक्री की रफ्तार ठहर सी गई है। इससे राज्य में ही इस सेक्टर में सैकड़ों रोजगार पर मार पड़ने के संकेत हैं। खासतौर पर ठेके पर कार्य करने वाले बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार में दिक्कतें उठानी पड़ सकती हैं। सीआइआइ के निदेशक सुमनप्रीत सिंह मानते हैं कि मौजूदा स्थिति में बदलाव संभव है। सरकार को मनी सरकुलेशन बढ़ाकर बाजार में छाई सुस्ती तोड़ने की जरूरत है, साथ ही नीतिगत अनिश्चितता का समाधान करना होगा। मंदी की आहट से एमएसएमई सेक्टर भी परेशान है। फार्मा इंडस्ट्रीज स्लो डाउन से गुजर रही हैं। खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के सामने उत्पादों के लिए बाजार का संकट बढ़ रहा है। 
उत्तराखंड के लिए अभी तक यह राहत की बात रही है कि मध्यम, लघु, सूक्ष्म उद्योगों की सालाना ग्रोथ 18 फीसद बनी रही है। इसका मतलब ये हुआ कि तकरीबन साढ़े तीन हजार उद्योगों का हर साल इजाफा हो रहा है। राज्य में 56 हजार पंजीकृत एमएसएमई हैं। अब यह सेक्टर आशंकित है कि मंदी की मार से उसका बेअसर रहना मुमकिन नहीं है। उद्यमी अनिल गोयल कहते हैं कि सरकार मनी सरकुलेशन का रास्ता ढूंढ रही है। रियल एस्टेट को भी सरकार ने भरोसा दिया है। मंदी का सामना करने के लिए सरकार और उद्यमों, दोनों के बीच मजबूत तालमेल जरूरी है। 
उत्तराखंड इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष पंकज गुप्ता का कहना है कि सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की गति और तेज करनी होगी। इससे हर सेक्टर को मंदी का सामना करने में मदद मिलेगी। 
सीआइआइ के निदेशक सुमनप्रीत सिंह ने बताया कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में सुस्ती को नीतिगत फैसले के साथ ही मनी सरकुलेशन बढ़ाकर खत्म किया जाना चाहिए।

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