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पहली बार बदरीनाथ धाम के साथ खुले वंशीनारायण के कपाट, सात किमी पैदल चलकर पहुंचते हैं मंदिर

वंशीनारायण मंदिर के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए गए हैं। पहली बार ऐसा हुआ है जब मंदिर के कपाट बदरीनाथ धाम के साथ ही खोले गए हैं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sat, 16 May 2020 03:50 PM (IST)Updated: Sat, 16 May 2020 03:50 PM (IST)
पहली बार बदरीनाथ धाम के साथ खुले वंशीनारायण के कपाट, सात किमी पैदल चलकर पहुंचते हैं मंदिर
पहली बार बदरीनाथ धाम के साथ खुले वंशीनारायण के कपाट, सात किमी पैदल चलकर पहुंचते हैं मंदिर

गोपेश्वर(चमोली), जेएनएन। चमोली जिले की उर्गम घाटी में समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित श्री वंशीनारायण मंदिर के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए गए हैं। पहली बार ऐसा हुआ है, जब मंदिर के कपाट बदरीनाथ धाम के साथ ही खोले गए हैं। अब तक रक्षाबंधन पर्व पर सिर्फ एक दिन के लिए मंदिर के कपाट खोले जाते थे।

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मध्य हिमालय के बुग्याली क्षेत्र में स्थित श्री वंशीनारायण मंदिर के कपाट शुक्रवार सुबह छह बजे ग्राम पंचायत कलगोट के पश्वा पुजारी खोले गए। इसके बाद ग्रामीणों ने भगवान वंशीनारायण को सत्तू, बाड़ी, घी और मक्खन का भोग लगाया गया। इस मौके पर श्री वंशीनारायण मंदिर समिति के अध्यक्ष भरत सिंह, ग्राम प्रधान मीरा देवी, क्षेत्र पंचायत सदस्य नरेंद्र सिंह, पूर्व प्रधान दिलीप सिंह, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य बलवंत सिंह, महिला मंगल दल अध्यक्ष महेश्वरी देवी, सरिता देवी आदि ने भगवान वंशीनारायण के दर्शन किए।

ग्राम प्रधान मीरा देवी ने बताया कि पहले रक्षाबंधन पर्व पर सिर्फ एक दिन के लिए ही मंदिर के कपाट खोले जाते थे। इस दिन उर्गम घाटी की बेटियां भगवान विष्णु को राखी बांधती थीं। लेकिन, इस बार मंदिर समिति ने इस परंपरा को बदलते हुए बदरीनाथ धाम के साथ मंदिर के कपाट खोलने का निर्णय लिया। इस मंदिर में भगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में विराजमान हैं। मंदिर के प्रांगण में भगवान गणोश और वन देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए उर्गम घाटी के लोगों को करीब सात किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है।

दुकान नहीं खोल सकेंगे बामणी-माणा के लोग

श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुल गए हैं। लेकिन, शासन-प्रशासन ने बदरीनाथ में भी केदारनाथ की भांति दुकानें न खोलने के नियम लागू किए हैं। जबकि, बदरीनाथ की स्थिति केदारनाथ से भिन्न है। यहां पर माणा व बामणी गांव में माइग्रेट होकर ग्रामीण रहते हैं।

बदरीनाथ के पास माणा व बामणी गांव में ग्रामीणों की आवाजाही शुरू हो गई है। ग्रीष्मकाल के दौरान माणा में रहने वाले जनजाति के लोगों व बामणी में रहने वाले ग्रामीणों को आधार कार्ड के आधार पर ही जाने दिया जा रहा है। लेकिन, ग्रामीण अपने घरों में पहुंचकर भी परेशान हैं। दरअसल, इन दोनों गांवों के लोगों को दुकान खोलने की अनुमति नहीं है। ऐसे में खाद्यान्न कहां से आएगा यह चिंता का विषय है। स्थानीय लोगों की मानें तो वे अपने साथ लाए खाद्यान्न से ही फिलहाल काम चला रहे हैं। लेकिन, वह भी खत्म होने वाला है। दरअसल, केदारनाथ में पूजा व्यवस्थाओं को लेकर ही प्रशासन ने अनुमति दी थी।

क्योंकि केदारनाथ धाम में कोई भी माइग्रेट गांव नहीं है। बदरीनाथ धाम में माणा में डेढ़ हजार की जनसंख्या जनजाति के लोगों की है। जबकि, बामणी गांव में दो हजार से अधिक की जनसंख्या सामान्य लोगों की है। माणा के लोग शीतकाल में गोपेश्वर, घिंघराण आसपास के क्षेत्र में रहते हैं। जबकि बामणी गांव के लोग शीतकाल में पांडुकेश्वर व आसपास के गांवों में आते हैं। सरकार द्वारा अप्रैल अंतिम सप्ताह में माइग्रेट ग्रामीणों को अपने ग्रीष्मकालीन आवासों को जाने की अनुमति दे दी थी। जिसके बाद ग्रामीण अपने ग्रीष्मकालीन गांवों को लौट रहे हैं। परंतु इस क्षेत्र में खाद्यान्न सहित अन्य दुकानों के खुलने की फिलहाल अनुमति नहीं है।

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बामणी गांव व माणा के लोग बदरीनाथ क्षेत्र में व्यापार करते हैं। ऐसे में खाद्यान्न सहित अन्य दुकानों को खोलने की छूट केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार फिलहाल यहां नहीं मिली है। जिससे स्थानीय लोग जरूरत की चीजों के लिए परेशान हो रहे हैं। वहीं, उपजिलाधिकारी जोशीमठ अनिल चन्याल ने कहा कि माणा व बामणी गांवों में आवश्यक सामग्री की दुकानों को खोलने के लिए विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जल्द ही इस पर कार्रवाई की जाएगी।

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