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जंगल पनपाने को मुख्यधारा में शामिल होगा एएनआर, पढ़िए पूरी खबर

उत्तराखंड में जंगलों को प्राकृतिक तौर पर पनपाने के लिए अब सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन (एएनआर) को मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा। अभी तक मुख्य रूप से साल और बांज वनों में ही वन विभाग इस पद्धति को अपनाता आया है।

By Sumit KumarEdited By: Published: Fri, 02 Jul 2021 06:05 AM (IST)Updated: Fri, 02 Jul 2021 06:05 AM (IST)
जंगल पनपाने को मुख्यधारा में शामिल होगा एएनआर, पढ़िए पूरी खबर
अब वन क्षेत्रों में होने वाले पौधारोपण के लिए जवाबदेही तय करने पर जोर दिया जा रहा है।

राज्य ब्यूरो, देहरादून: उत्तराखंड में जंगलों को प्राकृतिक तौर पर पनपाने के लिए अब सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन (एएनआर) को मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा। अभी तक मुख्य रूप से साल और बांज वनों में ही वन विभाग इस पद्धति को अपनाता आया है। अब अन्य प्रजातियों के जंगलों में भी इसे अमल में लाया जाएगा। इस पद्धति से जंगल प्राकृतिक तौर पर उगता है और पौधों के जीवित रहने की दर सौ फीसद होती है।

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हर साल ही प्रदेश में डेढ़ से दो करोड़ पौधे तो लग रहे हैं, लेकिन इनमें से कितने जीवित रहते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। स्थिति यह है कि रोपे गए 50 फीसद पौधे भी जिंदा नहीं रह पा रहे हैं। इस सबको देखते हुए अब वन क्षेत्रों में होने वाले पौधारोपण के लिए जवाबदेही तय करने पर जोर दिया जा रहा है। इसके साथ ही विभाग ने एएनआर को अधिक तवज्जो देने का निश्चय किया है। वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी ने बताया कि चीड़ वनों को छोड़कर अन्य सभी प्रजातियों के जंगलों में एएनआर के तहत कदम उठाए जाएंगे। इस बारे में वन संरक्षकों, प्रभागीय वनाधिकारियों को निर्देश जारी किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि एएनआर पद्धति से उगने वाले जंगल में पौधों के जीवित रहने की सफलता को लेकर कोई संदेह भी नहीं रहता।

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क्या है एएनआर पद्धति

सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन पद्धति के तहत किसी भी वन क्षेत्र को चिह्नित कर वहां पौधों के प्राकृतिक रूप से उगने में सहायक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है। इसके तहत संबंधित क्षेत्र को मानवीय हस्तक्षेप, आग से बचाए रखने के कदम उठाए जाते हैं। इससे संबंधित क्षेत्र में पौधे प्राकृतिक रूप से उगते हैं। मिश्रित वनों में यह पद्धति काफी कारगर साबित हुई है।

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