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उत्तराखंड में पशु नस्ल सुधार से बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन, जानिए क्या है पूरी योजना

राज्य में गोवंशीय और महिषवंशीय पशुओं की नस्ल सुधार के उत्साहजनक नतीजे सामने आए हैं। लिंग वर्गीकृत वीर्य के उपयोग से गर्भ धारण करने वाले इन पशुओं से 95 फीसद बछियाओं का जन्म हुआ।

By Edited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 10:44 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2020 02:37 PM (IST)
उत्तराखंड में पशु नस्ल सुधार से बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन, जानिए क्या है पूरी योजना
उत्तराखंड में पशु नस्ल सुधार से बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन, जानिए क्या है पूरी योजना

देहरादून, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान योजना में राज्य में गोवंशीय और महिषवंशीय पशुओं की नस्ल सुधार के उत्साहजनक नतीजे सामने आए हैं। लिंग वर्गीकृत वीर्य के उपयोग से गर्भ धारण करने वाले इन पशुओं से 95 फीसद बछियाओं का जन्म हुआ। ऐसे में दुग्ध उत्पादन भी बढ़ा है। कृत्रिम गर्भाधान की इस योजना का द्वितीय चरण एक अगस्त से शुरू होने जा रहा है। इसके तहत राज्य के प्रत्येक जिले में 50 हजार पशुओं को गर्भित करने का लक्ष्य है। 

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पशुपालन सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम ने सोमवार को सचिवालय में पत्रकारों से बातचीत में ये जानकारी दी। उन्होंने बताया कि देशी गाय और भैंस का लिंग वर्गीकृत वीर्य केवल सौ रुपये में उपलब्ध होगा। विदेशी और क्रॉस ब्रीड पशुओं के लिए वर्तमान में यह 490 रुपये में दिया जा रहा है, मगर जिलों को निर्देश दिए गए हैं कि वह इसमें भी सब्सिडी बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि इस योजना के जरिये पशु नस्ल सुधार और उच्च आनुवांशिक गुणवत्ता के पशुओं की संख्या में वृद्धि से जहां दुग्ध उत्पादन में इजाफा होगा, वहीं पशुपालकों की आय में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने बताया कि वर्तमान में राज्य में 187.75 मिलियन मीट्रिक टन दूध का उत्पादन हो रहा। 
इसे 275.99 मिलियन मीट्रिक टन तक ले जाने का लक्ष्य है। कुक्कुट और भेड़-बकरी पालन को बढ़ावा पशुपालन सचिव के अनुसार मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 35 हजार कुक्कुट (मुर्गी) पालन यूनिट स्थापित की जाएंगी। प्रति यूनिट 50-50 चूजे दिए जाएंगे। इसके अलावा राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम से वित्त पोषित योजना के तहत भेड़-बकरी पालन में 10 हजार पशुपालकों की समितियां गठित हो चुकी हैं। प्रत्येक समिति को 20 बकरी व एक बकरा दिया जाएगा। बाईबैक के तहत भेड़-बकरी की खरीद की जाएगी और फिर इनके मांस को हिमालयन मीट के नाम से बाजार में उतारा जाएगा। 
उन्होंने बताया कि आस्ट्रेलिया से मंगाई गई मरीनो भेड़ का प्रयोग सफल रहा है। इनसे पर्याप्त ऊन भी मिल रहा और ये यहां के वातावरण में खुद को ढाल गई। अब मरीनो भेड़ों के जरिये भी अक्टूबर-नवंबर से नस्ल सुधार कार्यक्रम चलेगा। संस्थाओं की जियो मैपिंग उन्होंने बताया कि पशुपालन के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं और पशुपालकों का इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन रिमोट सेंसिंग के जरिये सर्वे कराया जाएगा। संस्थाओं की जियो मैपिंग भी कराई जाएगी। उन्होंने बताया कि पशुगणना का सर्वे हो चुका है। केंद्र से इसके आंकड़े जारी करने को अनुमति का इंतजार है। उन्होंने बताया कि पशुओं को खुरपका-मुंहपका रोग से मुक्त करने को भी अभियान चलेगा।

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