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आपदा पीड़ितों ने सुनाई दर्द भरी दास्तां, पलभर में दफन हो गई कई जिंदगियां

आपदा पीड़ितों ने अपनी दर्द भरी दास्तां सुनाई। कहा आपदा ने ऐसा दर्द दिया है जिसे जिंदगी भर नहीं भुला पाएंगे। यह दर्द शारीरिक से ज्यादा मानसिक है।

By Edited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 07:53 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 03:26 PM (IST)
आपदा पीड़ितों ने सुनाई दर्द भरी दास्तां, पलभर में दफन हो गई कई जिंदगियां

देहरादून, जेएनएन। आपदा का वह खौफनाक मंजर उनके मानस पटल पर बहुत गहरे से अंकित हो गया है। अपना दर्द बयां करते जुबान कांपने लगती है और आखों से आंसू नहीं रुकते। आपदा ने ऐसा दर्द दिया है, जिसे जिंदगी भर नहीं भुला पाएंगे। यह दर्द शारीरिक से ज्यादा मानसिक है। कारण ये कि किसी ने अपने को खो दिया है तो कोई मौत के मुहाने से लौटा है। जान बच गई, पर सिर पर छत नहीं बची है। दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में भर्ती आपदा पीड़ितों की चिंता अब ये भी है कि उनका आने वाला कल कैसा होगा। 

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केस-1 

कहते हैं कि जाको राखे साईयां, मार सके न कोई। लोहारी लौखंडी चकराता निवासी राजेंद्र सिंह चौहान और उनके चाचा जालम सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जिसके बाद वे ईश्वर का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहे। दरअसल, उत्तरकाशी के आराकोट में आई आपदा में वह दोनों फंस गए थे। राजेंद्र ने बताया कि वे पिकअप चलाते हैं और सेब की सप्लाई लेने जा रहे थे। टिकोची के टैक्सी स्टेंड में उन्होंने गाड़ी का नंबर लिखवाया और फिर अपने नंबर का इंतजार कर रहे थे। अलसुबह किसी बड़े धमाके की आवाज हुई। एक बोल्डर उनकी गाड़ी पर आ गिरा। देखा तो पता चला कि आसमान से आफत टूट पडी है। वह बमुश्किल गाड़ी से बाहर निकल पाए। उनके चाचा के पेट में स्टेयरिंग फंसा था। उन्हें भी जैसे-तैसे बाहर निकाला। चाचा को बचाने केठीक दो मिनट बाद ही उनकी गाड़ी क्षतिग्रस्त होकर सैलाब में बह गई। अपने घायल चाचा को लेकर वह कई किमी पैदल चलकर आराकोट पहुंचे। जहा से उन्हें रेस्क्यू कर देहरादून लाया गया और दून अस्पताल में भर्ती करवाया गया। वह बताते हैं कि उनके सामने ही कई गाड़िया सैलाब में समा गई, जिनके चालकों का भी पता नहीं है। 

केस-2 

आराकोट के रहने वाले सोहनलाल खेती-बाड़ी कर गुजर बसर करते हैं। वह बताते हैं कि जिस वक्त ये घटना हुई उस समय वह अपने परिवार के साथ थे। उन्हें दूर-दूर तक इस बात का अहसास नहीं था कि ऐसा कुछ होगा। इतने में अचानक से एक सैलाब आया। थोड़ी देर में ही पानी के तेज बहाव के साथ पत्थर, बालू और बड़े-बड़े पेड़ भी आने लगे। जिसे देख पूरा परिवार सुरक्षित स्थान पर भागा, लेकिन इतने में पहाड़ों से पत्थरों का गिरना शुरू हो गया। जब तक वह कुछ समझ पाते तब तक उनकी नाती अचानक हाथ से छूटकर पानी की लहरों में समा गई। उसके बाद उन्होंने जो देखा वह बेहद ही भयावह था। उनका कहना है कि उनके सामने ही कई लोग मलबे में दब गए। अपनी बात कहते उनका गला भर आया और एकाएक वे लंबी खामोशी में चले गए। उनकी आंखों में इस घटना का खौफ साफ दिख रहा था। 

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केस-3 

आराकोट की रहने वाली 40 वर्षीय राधा के आंसू ही नहीं रुक रहे थे। उस खौफनाक मंजर को बयां करते वे फूट-फूटकर रोने लगी। वह बताती हैं कि हर दिन की तरह वह सुबह अपने काम में लगे थे। एकाएक सब बदल गया। करीब साढे 9 बजे तेज सैलाब आया। वह उस वक्त घर के भीतर थीं। पानी का तेज बहाव उन्हें साथ बहा ले गया। वह भी नहीं जानती उनकी जान कैसे बची। ईश्वर की शुक्रगुजार हैं पर इस बात का दुख है कि उनका कुछ नहीं बचा। कहती हैं कि इस आपदा में कई परिवार दफन हो गए। न केवल मवेशी बल्कि कई लोगों को भी सैलाब अपने साथ बहा ले गया।

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