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वैध हो जाएंगे दून की बस्तियों के 40 हजार अवैध मकान Dehradun News

निगम बोर्ड ने बस्तियों पर भवन कर लगाने का फैसला तो लिया ही साथ ही उन्हें मालिकाना हक देने का फैसला भी कर डाला। इस फैसले से दून की 129 बस्तियों के सभी 40 हजार भवन वैध हो जाएंगे।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 10:44 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2020 10:44 AM (IST)
वैध हो जाएंगे दून की बस्तियों के 40 हजार अवैध मकान Dehradun News
वैध हो जाएंगे दून की बस्तियों के 40 हजार अवैध मकान Dehradun News

देहरादून, अंकुर अग्रवाल।  मलिन बस्तियों का नियमितीकरण करने व मालिकाना हक दिलाने के लिए राजनेताओं की होड़ किसी से छुपी नहीं। वर्ष-2017 से पूर्व कांग्रेस सरकार भी इसी हसरत के साथ विदा हो गई और भाजपा सरकार भी उसके ही नक्शे-कदम पर चल रही। सरकार द्वारा विनियमितीकरण का जो फैसला लिया गया था, उस पर नगर निगम देहरादून ने अपनी मुहर भी लगा दी। निगम बोर्ड ने बस्तियों पर भवन कर लगाने का फैसला तो लिया ही, साथ ही उन्हें मालिकाना हक देने का फैसला भी कर डाला। 

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यह फैसला दून की 129 बस्तियों के सभी 40 हजार भवनों को बैकडोर से 'वैध' कर देगा। बस्तियों पर डोजर चढ़ाना पहले ही मुश्किल था, लेकिन निगम के इस फैसले से अवैध बस्तियां खुद ही नियमित हो जाएंगी। पिछली सरकार की ओर से गठित मलिन बस्ती सुधार समिति ने जो रिपोर्ट तैयार की थी उसमें चौकानें वाले तथ्य थे। 

रिपोर्ट में जिक्र था कि प्रदेश में 36 फीसद बस्तियां निकायों की भूमि पर हैं, जबकि 10 फीसद राज्य सरकार, केंद्र सरकार, रेलवे और वन विभाग की भूमि पर हैं। 44 फीसद बस्तियां ही निजी भूमि पर बताई गईं थी। दून नगर निगम क्षेत्र में पहले 129 बस्तियां मानी जा रही थी, लेकिन सरकारी आंकड़ों में संख्या 128 बताई गई। इनमें केवल दो ही श्रेणी एक में आती हैं। 

ये लोहारावाला व मच्छी का तालाब बस्तियां हैं। इनमें महज 34 ही भवन नियमितीकरण के लिए उपयुक्त बताए गए थे। शहर में 56 बस्तियां नदी-खाला व जलमग्न श्रेणी की भूमि में हैं, जबकि 62 बस्तियां सरकारी भूमि, निजी भूमि या केंद्र सरकार के संस्थानों की भूमि पर बनी हुई हैं, जबकि आठ बस्तियां वन भूमि पर बसी हैं। सरकार इन्हें कैसे नियमित करती, यही पेंच फंसा हुआ था। नगर निगम के भवन कर लगाने से सभी अवैध भवनों को वैध का प्रमाण-पत्र मिल जाएगा। 

129 मलिन बस्तियां हुई थी चिह्नित 

राज्य बनने से पहले नगर पालिका रहते हुए दून में 75 मलिन बस्तियां चिह्नित की गई थीं। राज्य गठन के बाद दून नगर निगम के दायरे में आ गया। वर्ष 2002 में मलिन बस्तियों की संख्या 102 चिह्नित हुई और वर्ष 2008-09 में हुए सर्वे में यह आंकड़ा 129 तक जा पहुंचा। तब से बस्तियों का चिह्नीकरण नहीं हुआ, लेकिन अगर गुजरे आठ साल का फौरी तौर पर आंकलन करें तो यह आंकड़ा 150 तक पहुंच चुका है।

यहां हैं मलिन बस्तियां

रेसकोर्स रोड, चंदर रोड, नेमी रोड, प्रीतम रोड, मोहिनी रोड, पार्क रोड, इंदर रोड, परसोली वाला, बद्रीनाथ कॉलोनी, रिस्पना नदी, पथरियापीर, अधोईवाला, बृजलोक कॉलोनी, आर्यनगर, मद्रासी कॉलोनी, जवाहर कॉलोनी, श्रीदेव  सुमननगर, संजय कॉलोनी, ब्रह्मपुरी, लक्खीबाग, नई बस्ती चुक्खुवाला, नालापानी रोड, काठबंगला, घास मंडी, भगत सिंह कॉलोनी, आर्यनगर बस्ती, राजीवनगर, दीपनगर, बॉडीगार्ड, ब्राह्मणवाला व ब्रह्मावाला खाला, राजपुर सोनिया बस्ती।  

आधार या आईडी अनिवार्य

हाउस टैक्स के लिए परिवार के मुखिया का आधार कार्ड, वोटर कार्ड या राशन कार्ड अनिवार्य होगा। मालिकाना हक के लिए बिजली और पानी का बिल दिखाना होगा। 

ये थे मलिन बस्ती सुधार समिति की रिपोर्ट के निष्कर्ष

-37 फीसद बस्तियां नदी-नालों के किनारे बसी हुई हैं। 

-44 फीसद बस्तियां निजी भूमि पर और 36 फीसद नगर निकाय की भूमि पर हैं।

-10 फीसद बस्तियां राज्य सरकार, केंद्र सरकार, रेलवे, वन विभाग की भूमि पर हैं।

-बस्तियों में 55 फीसद मकान पक्के, 29 फीसद आधे पक्के व 16 फीसद कच्चे मकान हैं।

-24 फीसद बस्तियों में शौचालय नहीं।

-41 फीसद जनसंख्या की मासिक आय तीन हजार रुपये व बाकी की इससे कम।

-38 फीसद लोग मजदूरी, 21 फीसद स्वरोजगार, 20 फीसद नौकरी करते हैं।

-प्रतिव्यक्ति मासिक आय 4311 रुपये, जबकि खर्चा 3907 रुपये है।

-छह फीसद लोग साक्षर नहीं हैं। 

समिति की सिफारिश

-नौ नवंबर 2000 से पूर्व बसे लोगों से बिजली-पानी के बिल के आधार पर उन्हें भूस्वामित्व दिया जाए।

-बस्तियों में रिहायशी सर्किल रेट के आधार पर स्टांप शुल्क लगाकर रजिस्ट्री की जाए, इससे राजस्व भी मिलेगा।

-जिन बस्तियों में सभी मूलभूत सुविधाएं हैं, उन्हें नियमित किया जाना जरूरी है।

-जो बस्तियां नदी-नाले किनारे बसी हैं, उनका जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर सर्वेक्षण हो।

केंद्र सरकार की तर्ज पर हुई शुरूआत 

महापौर सुनील उनियाल गामा के मुताबिक, केंद्र सरकार की ओर से पिछले दिनों बस्तियों के विनयमितीकरण को लेकर जो निर्णय लिए गए थे, उसी क्रम में हमने भी सरकार की कवायद के तहत कार्रवाई की है। लंबे अर्से से इन बस्तियों के मालिकाना हक की लड़ाई हजारों लोग लड़ रहे थे।

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इससे बेहतर फैसला कुछ नहीं 

राजपुर क्षेत्र के विधायक खजानदास के अनुसार, बस्तियों में पानी और बिजली आदि की सुविधा हम जनप्रतिनिधि ही उपलब्ध कराते हैं। यदि निगम बोर्ड से मालिकाना हक का फैसला हो जाए, तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। 

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