Pressure Politics: उत्तराखंड भाजपा में अब दबाव समूह ले रहा आकार
Pressure Politics सत्तारूढ़ भाजपा के अंदर एक दबाव समूह आकार लेता नजर आ रहा है। पिछले सात वर्षों के दौरान कांग्रेस से भाजपा में आए नेता जिनमें धामी सरकार के पांच मंत्री और कई विधायक शामिल हैं अब जिस तरह की एकजुटता का दावा कर रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। Pressure Politics उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ भाजपा के अंदर एक दबाव समूह आकार लेता नजर आ रहा है। पिछले सात वर्षों के दौरान कांग्रेस से भाजपा में आए नेता, जिनमें धामी सरकार के पांच मंत्री और कई विधायक शामिल हैं, अब जिस तरह की एकजुटता का दावा कर रहे हैं, उससे तो ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं। पार्टी के अंदर एक अलग समूह के वजूद में होने की स्वीकारोक्ति स्वयं कैबिनेट मंत्री डा हरक सिंह रावत और विधायक उमेश शर्मा काऊ ने की। माना जा रहा है कि ठीक चुनाव से पहले विधायकों का यह गुट पार्टी पर दबाव बनाकर अपने सुरक्षित भविष्य की गारंटी चाहता है।
उत्तराखंड में कांग्रेस में बिखराव की शुरुआत वर्ष 2014 में पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज के भाजपा का दामन थाम लेने से हुई थी। फिर वर्ष 2016-17 में कांग्रेस के 11 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। इन्हें भाजपा में पूरा सम्मान मिला। सभी को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने टिकट दिया। दो को छोड़कर सभी ने जीत दर्ज की। इनमें से पांच विधायकों सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य को भाजपा ने मंत्री बनाया।
गत मार्च में भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के स्थान पर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया। चार महीने के अंदर ही फिर से सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ और जुलाई में पुष्कर सिंह धामी के रूप में युवा चेहरे को सरकार की कमान सौंपी गई। दरअसल, नेतृत्व परिवर्तन के इन दोनों अवसरों पर कांग्रेस से भाजपा में आए कुछ विधायकों को उम्मीद थी कि वरिष्ठता के नाते मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा भी बनता है, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने इसे कोई तवज्जो नहीं दी। धामी के शपथ ग्रहण से ठीक पहले कुछ वरिष्ठ विधायकों ने नाराजगी प्रदर्शित की। इनमें कांग्रेस पृष्ठभूमि के दो मंत्री सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत भी शामिल थे।
तब इन दोनों के साथ ही यशपाल आर्य को भी अतिरिक्त महकमे देकर सरकार में उनका कद बढ़ाने का फार्मूला भाजपा नेतृत्व ने अपनाया। यह पहला मौका था जब कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं के बीच एकजुटता नजर आई थी। इसके बाद हाल ही में देहरादून की रायपुर सीट के विधायक उमेश शर्मा काऊ के एक कार्यक्रम के दौरान अपनी ही पार्टी के नेताओं पर भड़क उठने के बाद एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ। मंगलवार को वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के विधायक उमेश शर्मा की पैरवी में उतर आने से भाजपा के अंदर की खींचतान सतह पर आ गई। इन दोनों ने बाकायदा मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्हें भाजपा नेतृत्व पर पूरा भरोसा है। हालांकि साथ ही यह भी बोल गए कि कांग्रेस से आए सभी साथी एकजुट हैं और इस मसले पर सब मिल-बैठकर चर्चा करेंगे।
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लगभग तीन सप्ताह पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तीन दिनी प्रवास पर उत्तराखंड आए। उस समय पार्टी ने साफ कर दिया कि जो विधायक परफार्मेंस के पैमाने पर खरा नहीं उतरेंगे, उनका टिकट काटा भी जा सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस पृष्ठभूमि के विधायकों को कहीं न कहीं इस तरह का भय सता रहा है कि भाजपा इस बार शायद उन्हें प्रत्याशी न बनाए। पांच साल पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने पर तो उनसे किया गया वादा पार्टी ने निभाया, मगर यह कमिटमेंट आगे भी कायम रहे, ये नेता इस बात की गारंटी चाहते हैं।
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