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अभी गर्मी पड़ी भी नहीं है कि पेयजल निगम के अधिकारियों के छूटने लगे पसीने

अभी गर्मी पड़ी भी नहीं है कि पेयजल निगम के अधिकारियों के पसीने छूटने लगे हैं। स्रोत संवर्धन के नाम पर फील्ड विजिट की जगह मटरगश्ती करने वालों की पोल खुलने वाली है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 23 Feb 2020 09:16 AM (IST)Updated: Sun, 23 Feb 2020 09:16 AM (IST)
अभी गर्मी पड़ी भी नहीं है कि पेयजल निगम के अधिकारियों के छूटने लगे पसीने
अभी गर्मी पड़ी भी नहीं है कि पेयजल निगम के अधिकारियों के छूटने लगे पसीने

देहरादून, सुमन सेमवाल। अभी गर्मी पड़ी भी नहीं है कि पेयजल निगम के अधिकारियों के पसीने छूटने लगे हैं। स्रोत संवर्धन के नाम पर फील्ड विजिट की जगह मटरगश्ती करने वाले अधिकारियों की पोल खुलने वाली है। जब गर्मियों में फाइलवर्क के अनुरूप स्रोतों में पानी नहीं बढ़ेगा तो लेगवर्क का भी पता चल जाएगा। जिन अफसरों ने लेगवर्क किया ही नहीं, उन्हें क्या पता था कि इस सर्दी इतनी बारिश होगी और जमकर बर्फ पड़ेगी। क्योंकि जब मौसम ने साथ दिया है तो मानसून से पहले गर्मियों में भी स्रोत पानी से लकदक रहने चाहिए। जनता को इस बात की जितनी उम्मीद है, अफसर उतने ही टेंशन में हैं। टेंशन का राज उनके ही क्रियाकलाप में छिपा है। कुछ पछता रहे हैं कि मटरगश्ती के नाम पर संवर्धन के कुछ अच्छे काम ही कर लेते। अब तो देर हो चुकी है। बारिश भी जा चुकी है और अच्छा होने की उम्मीद भी।

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विधायक के सवालों से बेहाल

पेयजल निगम को वो दिन याद आ रहे हैं, जब उन्होंने देहरादून व मसूरी में तमाम कार्यों के टेंडर जारी किए। काम नियम-कायदे में रहकर किए गए हों तो कोई बात नहीं। यहां तो सवाल ही सवाल हैं। ऐसे में रायपुर क्षेत्र के विधायक उमेश शर्मा काऊ ने रिस्पना नदी में गड़बड़झाला कर डाली गई सीवर लाइन, 13 वित्त आयोग के कार्यों में गड़बड़ी और मसूरी के कुछ टेंडर को लेकर ताबड़तोड़ सवाल दाग दिए हैं। सवाल पेयजल निगम मुख्यालय में पहुंचते ही हड़कंप मच गया है। ढूंढने से भी वाजिब जवाब नहीं मिल रहे। अधिकारी दिनभर बैठकर सिर खुजा रहे हैं। उन्हें डर सता रहा है कि विधानसभा सत्र में जब जवाबों का पिटारा खुलेगा तो कहीं भूचाल न आ जाए। ऊपर वाले को भी याद किया जा रहा है। अब तो रातों की नींद उड़ती दिख रही है। खैर, तब पछतो होत क्या, जब चिड़ि‍या चुग गई खेत।

पद पांच, जमे हैं नौ

सरकारी एजेंसियों में अक्सर कार्मिक इस बात का रोना रोते रहते हैैं कि पद अधिक हैं और नियुक्ति कम। पेयजल निगम ऐसी एजेंसी हैं, जहां उल्टी गंगा बह रही है। मुख्यालय में अधिशासी अभियंताओं के पांच पद हैं और कुर्सी पर नौ जमे हैं। ऐसा भी नहीं है कि जिले की सीटें खचाखच भरी हैं। सच ये है कि फील्ड में दौडऩे के लिए टीम तैयार ही नहीं है। पहले से कई विवादों में घिरे प्रबंध निदेशक की ऐसी फील्डिंग किसी के समझ नहीं आ रही। मुख्यालय में एक अधिकारी अधिकतम तीन साल तक बना रह सकता है और यहां एक अधीक्षण अभियंता स्तर के अधिकारी एसी पंत को साढ़े पांच साल होने वाले हैं। देहरादून निर्माण मंडल में अधीक्षण अभियंता का पद खाली है पड़ा है, जिसे भरा ही नहीं जा रहा। दो और अधीक्षण अभियंताओं के पद जल्द खाली होने को हैं, पर साहब को इससे क्या मतलब।

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सब कुछ सार्वजनिक, खर्च सीक्रेट

राजकीय शिक्षक संघ में पारदर्शिता का खुमार नेताओं के सिर चढ़कर बोल रहा है। हर छोटी-मोटी टीका-टिप्पणी और बैठकों की जानकारी सोशल मीडिया पर खूब वायरल की जा रही है। एक बात है, जिसे संघ के पदाधिकारी सोशल मीडिया पर तो क्या कागजों में भी साफ-साफ दर्ज करने की जहमत नहीं उठाते। अब बात खर्च का हिसाब देने की आएगी तो उसे भला कौन सार्वजनिक करना चाहेगा। हिसाब मांगने में जितना मजा आता है, उसे देने में थोड़े ही आता है। अब संघ में चुनाव की तैयारियां जोर पकडऩे लगी हैं तो विपक्षी खेमे वाले मास्साब भी संघ के पदाधिकारियों को मजे ले-लेकर चिढ़ा रहे हैं। आपस में भी गप्पबाजी की जा रही है कि सोशल मीडिया का इतना ही बुखार चढ़ा है तो जरा अपने खर्चों की पोस्ट भी किसी दिन वायरल कर ही दो। अब पावर में बैठे नेतागण की स्थिति ऐसी है कि काटो तो खून नहीं। 

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