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उत्तराखंड में अंब्रेला एक्ट और कंडी रोड समेत कई योजनाएं ठंडे बस्ते में, पढ़िए पूरी खबर

उत्तराखंड में अंब्रेला एक्ट और कंडी रोड समेत कई योजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद इस दिशा में आगे नहीं बढ़ा जा सका है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 02:48 PM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 02:48 PM (IST)
उत्तराखंड में अंब्रेला एक्ट और कंडी रोड समेत कई योजनाएं ठंडे बस्ते में, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड में अंब्रेला एक्ट और कंडी रोड समेत कई योजनाएं ठंडे बस्ते में, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। निजी विश्वविद्यालयों की फीस, एडमिशन और अन्य मनमानियों से जूझ रहे अभिभावक और छात्रों के मन में उम्मीद की एक किरण जगी थी। इसे जगाने का काम किया प्रदेश सरकार ने। सरकार ने निजी विश्वविद्यालयों की मनमानी रोकने को अंब्रेला एक्ट बनाने का निर्णय लिया। उम्मीद जताई गई कि इससे सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों के संचालन में एकरूपता लाई जा सकेगी।

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निजी विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता तो बरकरार रहेगी, लेकिन वे मनमानी नहीं कर पाएंगे। एक्ट को पारदर्शी और जनहितकारी बनाने के लिए सरकार ने एक समिति का गठन किया। इसमें निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को भी शामिल किया गया। मंशा यह कि एक राय बनाकर यह एक्ट लाया जाए। अब हकीकत यह है कि तीन वर्ष पूर्व योजना का खाका खींचने के बावजूद इसे अभी तक अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। समितियों के गठन और रिपोर्ट के इंतजार में यह प्रस्ताव अभी भी इधर से उधर झूल रहा है। 

कंडी रोड का निर्माण 

गढ़वाल मंडल को कुमाऊं मंडल से जोड़ने के लिए प्रस्तावित कंडी मार्ग वन कानूनों में फंसता नजर आ रहा है। तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश सरकार इस दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रही है। सालों की कसरत और करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद अब यह पता चला है कि मार्ग बन ही नहीं सकता। दरअसल, उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के पहले से ही इस मार्ग के निर्माण की मांग चल रही है।

इस मार्ग के बनने से न केवल गढ़वाल से कुमाऊं का आवागमन सुगम होगा, बल्कि धन की बचत भी होगी। तीन साल पहले वन विभाग ने इस पर काम शुरू किया। कानूनी प्रावधानों के हिसाब से प्रस्ताव तैयार किया गया। काम शुरू हुआ तो मामला कोर्ट में चला गया। राहत मिली तो विभाग के अंतिम सर्वे में यहां सड़क बनाना संभव नहीं पाया गया। नतीजतन, लाखों लोगों की उम्मीदों पर अब ग्रहण लगना तय है। 

कब लगेंगे वॉटर मीटर 

जल ही जीवन है। जल संचय, जीवन संचय, ऐसे तमाम स्लोगन के साथ पेयजल निगम ने पानी के उपयोग में मितव्ययता बरतने की मुहिम चलाई। पानी का दुरुपयोग करने वालों पर नकेल कसने का निर्णय लिया गया। कहा गया कि जितना इस्तेमाल किया जाएगा, उतना ही भुगतान करना होगा। इसके लिए वॉटर मीटर लगाने का निर्णय लिया। वर्ष 2016 में इस योजना का खाका खींचा गया, बाकायदा टेंडर तक किए गए। बताया गया कि मीटर में डाटा डिजिटल रिकार्ड के रूप में रखा जाएगा।

मीटर की रिकार्डिंग के लिए घर के भीतर नहीं जाना होगा। दूर से ही रिमोट के जरिये रीडिंग मिल जाएगी। एशियन डेवलपमेंट बैंक के सहयोग से ये मीटर लगाए जाने थे। इसके बाद इस मामले में ऐसी राजनीति हुई कि मीटर अभी तक नहीं लग पाए हैं। परिणामस्वरूप पानी का सीमित इस्तेमाल करने वाला उपभोक्ता उतना ही बिल दे रहा है, जितना इसका दुरुपयोग करने वाला। 

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जिला मुख्यालय अभी दूर 

प्रदेश का हर जिला मुख्यालय एक-दूसरे से जुड़े, यात्रियों को कोई परेशानी न हो, निर्बाध बस सेवाएं सुचारू आवागमन में अहम भूमिका निभाएं। इस अवधारणा के साथ सरकार ने परिवहन निगम की बसों को प्रत्येक जिला मुख्यालय के साथ ही देश की राजधानी दिल्ली तक चलाने का निर्णय लिया। इसे कैबिनेट से भी पारित कराया गया। तय हुआ कि जिला मुख्यालयों में बस अड्डे भी बनाए जाएंगे।

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बावजूद इसके स्थिति यह है कि कैबिनेट का निर्णय आज तक परवान नहीं चढ़ पाया है। अब भी चुनिंदा जिलों से ही अन्य जिला मुख्यालयों और दिल्ली के लिए बसों का संचालन किया जा रहा है। विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों के जिला मुख्यालय आज तक एक-दूसरे से नहीं जुड़ पाए हैं। यहां तक कि राजधानी देहरादून से भी सीमित जिलों तक ही बसों का संचालन किया जा रहा है। इस कारण निजी आपरेटर इन मार्गों पर कब्जा जमाए पूरी तरह चांदी काट रहे हैं। 

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