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उत्‍तराखंड में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर करोड़ों खर्च, फिर भी डायलिसिस को खाने पड़ रहे धक्के

उत्‍तराखंड में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एक तरफ सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है वहीं मरीजों को डायलिसिस तक को धक्के खाने पड़ रहे हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Mon, 15 Jul 2019 09:36 AM (IST)Updated: Mon, 15 Jul 2019 09:36 AM (IST)
उत्‍तराखंड में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर करोड़ों खर्च, फिर भी डायलिसिस को खाने पड़ रहे धक्के
उत्‍तराखंड में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर करोड़ों खर्च, फिर भी डायलिसिस को खाने पड़ रहे धक्के

देहरादून, सुकांत ममगाईं। प्रदेशवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए एक तरफ सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। वहीं, गुर्दा रोग से पीड़ि‍त मरीजों को डायलिसिस तक को धक्के खाने पड़ रहे हैं। राजधानी दून की ही बात करें तो सरकारी अस्पताल में डायलिसिस के लिए संसाधन सीमित हैं और प्राइवेट अस्पतालों पर जरूरत से ज्यादा लोड। ऐसे में निजी अस्पतालों में डायलिसिस के लिए भी लंबी वेटिंग चल रही है। जिस कारण कई मरीजों की जान सांसत में है। गंभीर यह कि इतनी बड़ी समस्या पर भी सरकार आंखें मूंदे बैठी है। नीति नियंता यह जहमत भी नहीं उठा रहे कि इस ओर कोई ठोस पहल की जाए। अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के तहत निश्शुल्क उपचार की सुविधा जरूर है, पर कई जगह यह स्थिति है कि किसी की डायलिसिस बंद होगी तभी नए मरीज को सुविधा मिलेगी। ऐसे में मरीज समझ नहीं पा रहे कि आखिर किया क्या जाए।

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गुर्दा रोग से पीड़ि‍त मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। अस्पतालों में डायलिसिस के लिए आने वाले मरीजों का अत्याधिक दवाब इस बात की तस्दीक कर रहा है। पर राजधानी दून में अब तक भी उस मुताबिक संसाधन विकसित नहीं हो पाए हैं। शहर की करीब 9 लाख की आबादी है। पर अगर स्वास्थ्य सुविधाओं पर नजर दौड़ाएं तो मौजूदा हेल्थ सिस्टम में असंतुलन की खाई दिखती है।

स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने से लेकर इसकी पहुंच तक, पारंपरिक तौर पर स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा कुछ बिखरे स्वरूप में नजर आता है। खास विशेषज्ञ सुविधा में स्थिति बहुत बुरी है। सरकारी अस्पतालों में इंतजाम नाकाफी हैं। बड़े या कॉरपोरेट अस्पतालों में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं जरूर हैं, पर निम्न व मध्यम वर्ग में इतना सामथ्र्य नहीं कि इनका रुख कर सकें। 

अटल आयुष्मान, ईसीएचएस, सीजीएचएस आदि के माध्यम से पहुंच बनी भी है, पर अब बड़े अस्पतालों पर भी अत्याधिक दबाव है। डायलिसिस की ही बात करें तो छोटे-बड़े कुछेक गिनती के अस्पताल ही यह सुविधा दे रहे हैं। इनकी गिनती अगर की जाए तो यह 15 के आसपास ही सिमट जाएगी। ऐसे में डायलिसिस के इंतजार में किडनी का दर्द बढ़ रहा है। सरकार शायद तभी चेतेगी जब किसी मरीज की जान चली जाए। 

डायलिसिस के लिए तय हैं मानक 

एक मरीज का डायलिसिस करने में करीब तीन से चार घंटे लगते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान खून मरीज के शरीर से निकलकर डायलिसिस मशीन में जाता है और वहां से फिल्टर होकर वापस शरीर में पहुंचता है। इसके बाद प्रत्येक मशीन को पुन: इस्तेमाल में लाने के लिए डिस-इंफेक्शन प्रॉसीजर, रिसिंग आदि से गुजरना पड़ता है। 

छोटे अस्पताल नहीं कर रहे मानकों का पालन

  • मरीजों के बढ़ते दबाव के बीच कई छोटे-छोटे अस्पताल व नर्सिंग होम डायलिसिस के तय मानकों का भी पालन नहीं कर रहे। जिससे मरीज को संक्रमण का खतरा बना रहता है। पर ताज्जुब ये कि स्वास्थ्य महकमा इनसे भी मुंह फेरे बैठा है। 
  • भूपेंद्र रतूड़ी (वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी श्री महंत इंदिरेश अस्पताल) का कहना है कि अस्पताल में डायलिसिस का अत्याधिक दबाव है। वर्तमान समय में तकरीबन 200 तक वेटिंग चल रही है। हम इसके खतरे से वाकिफ हैं। पर किसी पुराने मरीज का डायलिसिस बंद होने पर ही नए का रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है। 
  • डॉ. पुनीत अरोड़ा (वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट मैक्स अस्पताल) का कहना है कि हम प्रत्येक माह डेढ़ हजार तक डायलिसिस कर रहे हैं। डायलिसिस की जरूरत पर किसी मरीज को लौटाया नहीं जा सकता। ऐसे में नए मरीजों का रात नौ बजे बाद का स्लॉट दिया जाता है। 
  • डॉ. आशुतोष सयाना (प्राचार्य दून मेडिकल कॉलेज) का कहना है कि हमने डायलिसिस यूनिट के विस्तार की योजना तैयार की है। इसके लिए जगह चिन्हित की जा रही है। इसमें कुछ समय लगेगा। ऐसे में मौजूदा संसाधनों से काम चलाया जा रहा है। 

यह स्थिति बयां कर रही हकीकत

  • प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल, दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में डायलिसिस की केवल तीन मशीन हैं। डेढ़ दशक पुरानी ये मशीनें जब तब ठप हो जाती हैं। मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने नई मशीनें खरीदने का निर्णय जरूर लिया है पर यह जाने कब परवान चढ़ेगा। 
  • कोरोनेशन अस्पताल में पीपीपी मोड पर डायलिसिस यूनिट संचालित की जा रही है। यहां अभी 13 मशीनें हैं, जिनमें वर्तमान में अलग-अलग शिफ्ट में 140 मरीज डायलिसिस करा रहे हैं। पर नए मरीज आने पर उन्हें वेटिंग में डाल दिया जाता है। 
  • श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में 24 डायलिसिस मशीन हैं। प्रत्येक माह यहां 2 हजार के करीब मरीजों का उपचार किया जा रहा है। मरीजों की संख्या देख सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि दबाव कितना है। ऐसे में लंबी वेटिंग चल रही है। 
  • मैक्स अस्पताल में 16 डायलिसिस मशीन हैं और एक माह में तकरीबन 1400-1500 डायलिसिस होते हैं। पर स्थिति यहां भी अच्छी नहीं है। नए मरीज को रात का वक्त दिया जा रहा है। 
  • सिनर्जी अस्पताल में डायलिसिस की ग्यारह मशीनें हैं। प्रतिदिन तीन शिफ्ट में 33 मरीजों का डायलिसिस यहां किया जा रहा है।

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