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यहां 110 साल पुराने दरख्तों पर लौटी जवानी, जानिए कैसे हुआ ये करिश्मा

सबसे पुराने सरकारी बागीचों में शुमार देहरादून के सर्किट हाउस स्थित राजकीय उद्यान में 110 साल पुराने लीची और आम के 340 पेड़ों पर जवानी लौट आई है। यह संभव हो पाया है इन पेड़ों के जीर्णोद्धा और छत्र प्रबंधन के बूते।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2020 05:12 PM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 11:02 PM (IST)
यहां 110 साल पुराने दरख्तों पर लौटी जवानी।

देहरादून, केदार दत्त। उत्तराखंड में सबसे पुराने सरकारी बागीचों में शुमार देहरादून के सर्किट हाउस स्थित राजकीय उद्यान में 110 साल पुराने लीची और आम के 340 पेड़ों पर जवानी लौट आई है। यह संभव हो पाया है इन पेड़ों के जीर्णोद्धा और छत्र प्रबंधन के बूते। उत्पादन और प्रबंधन के लिहाज से चुनौती बने इन पेड़ों पर न सिर्फ नए सिरे से बहार आई है, बल्कि इनसे मिल रहे फलों की गुणवत्ता में भी निखार आया है। उत्पादन भी डेढ़ गुना अधिक बढ़ा है और प्रबंधन आसान हुआ है। इन पेड़ों से हर साल 20 हजार नई पौध भी तैयार की जा रही है।

आजादी से पहले वर्ष 1910 में अस्तित्व में आए सर्किट हाउस के बागीचे में तब लीची और आम के पौधे लगाए गए। एक दौर में तो यह बागीचा लीची की नर्सरी के लिए प्रसिद्ध था और यहां से देशभर में पौध भेजी जाती थी। स्वतंत्रता के बाद कृषि विभाग बना तो बागीचा उसके अधीन आ गया। बाद में इसे उद्यान विभाग को सौंप दिया गया। वर्ष 2010 में बात सामने आई कि लीची और आम के इन पुराने पेड़ों की ऊंचाई अत्यधिक बढ़ने से न तो प्रबंधन ठीक से हो पा रहा और न उत्पादन ही पर्याप्त मात्रा में मिल रहा।

राजकीय उद्यान के प्रभारी दीपक पुरोहित बताते हैं कि 2010 की शुरुआत में विभाग ने उन्हें बिहार के मुजफ्फरपुर में लीची उद्यान के अध्ययन के लिए भेजा। तब वहां आंवले के पेड़ों का जीर्णोद्धार और छत्र प्रबंधन किया गया था। इसके नतीजे भी बेहतर थे।

फिर यहां भी इस मुहिम को धरातल पर उतारने का निश्चय किया गया। 2010 में लीची के 10 पेड़ों पर यह प्रयोग किया गया तो नतीजे अच्छे रहे। अब तक लीची के 280 और आम के 60 पेड़ों पर इस प्रयोग के बूते जवानी लौटी है। अब अन्य क्षेत्रों में भी यह प्रयोग किए जाने पर मंथन चल रहा है। 

जीर्णोद्धार और छत्र प्रबंधन

दीपक के अनुसार जीर्णोद्धार के तहत पेड़ को जमीन से छह फुट की ऊंचाई पर काटकर शाखाओं पर चौबटिया पेस्ट, फंगीसाइट आदि का लेपन होता है। एक बरसात पूरी तरह ऐसे पेड़ का ध्यान रखा जाता है।

उसके चारों तरफ छावला बनाकर एक कुंतल गोबर की खाद और ढाई किलो रासायनिक उर्वरक डाले जाते हैं।फिर इस पर फूटने वाली नई शाखाओं का छाते के आकार में प्रबंधन किया जाता है। ऐसे पेड़ तीसरे साल से फल देना शुरू कर देते हैं।

ये हैं फायदे

-पेड़ों का प्रबंधन आसान

-फलों की उच्च गुणवत्ता

-उत्पादन डेढ़ गुना ज्यादा

-बीमारियों का प्रकोप कम

-बाग में खुली जगह का खेती को उपयोग

-नई पौध तैयार करने में मदद

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