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117 वर्ष पहले आज के ही दिन चंपावत आए थे स्‍वामी विवेकानंद

वर्ष 1901 में 18 जनवरी के दिन ही युगनायक स्वामी विवेकानंद के चरण पहली बार चंपावत की धरती पर पड़े थे।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 18 Jan 2018 01:38 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jan 2018 05:58 PM (IST)
117 वर्ष पहले आज के ही दिन चंपावत आए थे स्‍वामी विवेकानंद
117 वर्ष पहले आज के ही दिन चंपावत आए थे स्‍वामी विवेकानंद

चंपावत, [दीपक सिंह बोहरा]: बात 117 वर्ष पुरानी है। 18 जनवरी का दिन था, जब युगनायक स्वामी विवेकानंद के चरण पहली बार चंपावत की धरती पर पड़े। यह वह ऐतिहासिक दिन है, जब अद्वैत आश्रम मायावती के संस्थापक कैप्टन सेवियर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को सांत्वना देने बैलूर मठ जाते हुए स्वामी विवेकानंद ने चंपावत स्थित जिला पंचायत के डाक बंगले में रात्रि विश्राम किया। यहां उन्होंने अध्यात्म के साथ ही चंपावत के नैसर्गिक सौंदर्य पर भी लोगों से विस्तार में चर्चा की।

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28 अक्टूबर 1900 को स्वामी विवेकानंद के परम शिष्य एवं अद्वैत आश्रम मायावती के संस्थापक ब्रिटिश कैप्टन सेवियर का देहावसान हो गया था। तब स्वामी जी पेरिस की यात्रा पर थे। स्वदेश लौटे तो बैलूर मठ पहुंचने पर उन्हें यह खबर मिली। उन्होंने मिसेज सेवियर को सांत्वना देने के लिए मायावती जाने का निर्णय लिया। 27 दिसंबर 1900 को कोलकाता से चलकर 29 दिसंबर को वे काठगोदाम पहुंचे। उनके साथ स्वामी शिवानंद व सदानंद गुप्त महाराज भी थे।

काठगोदाम में विश्राम के बाद वह मायावती से आए स्वामी कालीकृष्ण, विरजानंद व अल्मोड़ा के गोविंद लाल के साथ डोली से मायावती की ओर रवाना हुए। रास्ते में वर्षा के साथ ही बर्फबारी भी होने लगी, लेकिन इसकी परवाह न कर स्वामी जी पहाड़पानी, मौरानौला व धूनाघाट होते हुए तीन जनवरी 1901 को मायावती पहुंचे। यहां वे 17 जनवरी तक प्रवास में रहे। वापसी की यात्रा 18 जनवरी को शुरू हुई और पहला पड़ाव बना चंपावत, जहां उन्होंने जिला पंचायत के डाक बंगले में रात्रि विश्राम किया।

इस दौरान उनकी अध्यात्म के साथ ही हिमालय दर्शन पर लोगों से व्यापक चर्चा हुई। दूसरे रोज स्वामी जी का काफिला दियूरी, श्यामला ताल होते हुए टनकपुर की ओर रवाना हुआ। स्वामी जी की यह यादें पुस्तक 'युगनायक विवेकानंद' भाग-तीन के हिमालय की अंतिम यात्रा खंड में विस्तार से वर्णित हैं। 

उपेक्षित पड़ा है स्मृति पटल 

विवेकानंद के चंपावत प्रवास की स्मृतियों को समेटने के लिए वर्ष 2001 में तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष स्व.मदन सिंह महराना ने पहल की थी। जिस डाक बंगले में स्वामी जी रुके थे, वहां एक स्मृति पटल स्थापित किया गया था। लेकिन, उपेक्षा के चलते अब इस पटल की लिखावट भी धुंधली पड़ गई है। यहां तक कि स्वामी जी की साद्र्धशती मना रही समिति ने भी इस ओर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। 

जब घी के साथ खाया कच्चा भात 

चंपावत में रात्रि विश्राम के बाद 19 जनवरी 1901 की दोपहर स्वामी जी का काफिला दियूरी पहुंचा। सभी को जोरों की भूख लगी थी। खाना बनाने की तैयारी हुई। लेकिन, जिस बर्तन में चावल पकाए गए, वह उसके काफी छोटा होने के कारण भात कच्चा ही रह गया। ऐसे में स्वामी जी के सुझाव पर सभी ने घी के साथ कच्चे भात से ही भूख मिटाई। 

डाक बंगले में दूरदर्शन केंद्र

जिस डाक बंगले में विवेकानंद रुके थे, वर्तमान में वहां दूरदर्शन केंद्र संचालित है। भवन में लगी स्वामी जी की फोटो भी रखरखाव के अभाव में जीर्णशीर्ण हो गई है। वर्तमान में भवन की छत से भी पानी टपकता रहता है।

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