भारी बर्फबारी ने रोकी फूलों की घाटी की राह, पैदल रास्ते को पहुंचा नुकसान
विश्व धरोहर फूलों की घाटी में भी शीतकाल के दौरान हुई भारी बर्फबारी से खासा नुकसान पहुंचा है। अभी भी घाटी में पांच फीट से अधिक बर्फ जमी हुई है।
चमोली, रणजीत सिंह रावत। चमोली जिले में समुद्रतल से 3962 मीटर (12995 फीट) की ऊंचाई पर 87.5 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली विश्व धरोहर फूलों की घाटी में भी शीतकाल के दौरान हुई भारी बर्फबारी से खासा नुकसान पहुंचा है। अभी भी घाटी में पांच फीट से अधिक बर्फ जमी हुई है। यही नहीं, अलग-अलग स्थानों पर पांच बड़े हिमखंड घाटी का रास्ता रोके हुए हैं। ऐसे में वन विभाग ने फूलों की घाटी पहुंचने वाले पैदल रास्ते की मरम्मत का कार्य 15 मई से शुरू करने का निर्णय लिया है।
फूलों की घाटी एक जून को पर्यटकों के लिए खोली जानी है। इसी के मद्देनजर वन विभाग ने वन कर्मियों की एक टीम घाटी के निरीक्षण के लिए भेजी है। चार-सदस्यीय यह टीम घांघरिया से फूलों की घाटी तक चार किमी पैदल मार्ग की स्थिति जांचेगी। इससे पूर्व भी एक टीम घाटी का जायजा ले चुकी है।
वन क्षेत्राधिकारी बृजमोहन भारती ने बताया कि इस चार किमी पैदल मार्ग पर बामणधौड़, द्वारीपुल, मैरी की कब्र, पिकनिक स्पॉट व एक अन्य स्थान पर भारी-भरकम हिमखंड हैं। बताया कि बर्फबारी से पैदल रास्ते और खीर गंगा समेत अन्य स्थानों पर लगे पुलों को काफी नुकसान पहुंचा है।
घाटी में खिलते हैं 500 प्रजाति के फूल
फूलों की घाटी दुनिया की इकलौती जगह है, जहां प्राकृतिक रूप में 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते है। घाटी की खोज वर्ष 1931 में कामेट पर्वतारोहण के बाद ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रेंक स्मिथ ने की थी। वह भटककर यहां पहुंच गए थे और घाटी की सौंदर्य पर इस कदर रीझे कि फिर कई दिन यहीं गुजारे। अक्टूबर 2005 मे यूनेस्को ने फूलों की घाटी को विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया।
अगस्त-सितंबर के बीच पूरे यौवन पर होती है घाटी
हिमाच्छादित पर्वतों से घिरी यह घाटी हर साल बर्फ पिघलने के बाद खुद-ब-खुद बेशुमार फूलों से भर जाती है। यहां आकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो कुदरत ने पहाड़ों के बीच फूलों का थाल सजा लिया हो। अगस्त से सितंबर के बीच तो घाटी की आभा देखते ही बनती है। प्राकृतिक रूप से समृद्ध यह घाटी लुप्तप्राय जानवरों काला भालू, हिम तेंदुआ, भूरा भालू, कस्तूरी मृग, रंग-बिरंगी तितलियों और नीली भेड़ का प्राकृतिक वास भी है।
यह भी पढ़ें: रूपकुंड का है रोचक इतिहास, झील में मछली की जगह मिलते हैं नरकंकाल
यह भी पढ़ें: अब सिस्मिक वेव बताएगी रेलवे ट्रैक पर है कौन सा वन्यजीव, ऐसे बचेगी उनकी जान
यह भी पढ़ें: मानव की तरह छोटे परिवार की तरफ ढल रहे हैं हाथी, पढ़िए पूरी खबर
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप