Move to Jagran APP

दुनिया को बचाने के लिए लगातार करने होंगे नए शोध

अगर प्राकृतिक संसाधनों का अवैज्ञानिक तरीके से दोहन किया गया तो दुनिया खतरे में पड़ सकती। ये चिंता जाहिर की है वैज्ञानिकों ने।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 26 Mar 2018 07:43 PM (IST)Updated: Mon, 26 Mar 2018 07:43 PM (IST)
दुनिया को बचाने के लिए लगातार करने होंगे नए शोध
दुनिया को बचाने के लिए लगातार करने होंगे नए शोध

द्वाराहाट, [जेएनएन]: प्राकृतिक संसाधनों के असीमित व अवैज्ञानिक दोहन पर विशेषज्ञों ने गहरी चिंता जताई है। उन्होंने इस पर काबू पाने के लिए सूक्ष्म जीव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने की पुरजोर वकालत की है। उन्होंने तर्क दिया कि इस तकनीक से जैवविविधता व पर्यावरण को तो सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी ही, साथ ही मृदा की लगातार घट रही उर्वरा शक्ति को संतुलित किया जा सकेगा। उनका मानना है कि रासायनिक पदार्थों का आवश्यकता से अधिक उपयोग विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। विषय विशेषज्ञों ने कहा, मानव और पृथ्वी की सुरक्षा को सूक्ष्म जीव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नित नए अनुसंधान करने होंगे। 

loksabha election banner

विपिन त्रिपाठी कुमाऊं प्रौद्योगिकी संस्थान (बीटीकेआइटी) में माइक्रोबाइल टेक्नोलॉजी विषय पर कार्यशाला शुरू हुई। बायोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग में कार्यक्रम का शुभारंभ निदेशक बीटीकेआइटी प्रो. आरके सिंह ने दीप प्रज्वलित कर किया। उन्होंने प्रकृति से सौगात में मिले संसाधनों के असीमित दोहन पर गहरी चिंता जताई। उन्होने कहा कि इससे हो रहे प्राकृतिक असंतुलन को रोकने के लिए सूक्ष्म जीव प्रौद्योगिकी का सहारा समय की आवश्यकता है। 

कुमाऊं विश्वविद्यालय में जैव तकनीक विभाग की डॉ. बीना पांडे ने बायोफ्यूल व बायोफर्टिलाइजर पर विस्तार से जानकारी दी। कहा कि पेट्रोल व डीजल के अधिक उपयोग से भंडार तो कम हो ही रहे हैं, पर्यावरण को खासा नुकसान भी पहुंच रहा है। रासायनिक खादों के प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही इन पर नियंत्रण के लिए जैविक विधि का सहारा लेना होगा। 

कार्यशाला में बीटीकेआइटी, कुमाऊं व गढ़वाल विश्वविद्यालय, जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण व शोध संस्थान कोसी कटारमल तथा ग्राफिक एरा देहरादून के 57 छात्र एवं शोधार्थी हिस्सा ले रहे हैं। इसमें जैविक क्रिया द्वारा ऊर्जा निर्माण, जैव विविधता संरक्षण, बायोफ्यूल, व्यवसायिक उपयोग के लिए एंजाइम का उत्पादन, जैविक खाद आदि निर्माण व प्रयोग पर गहन मंथन तथा इससे होने वाले लाभ पर विस्तृत जानकारी दी जाएगी। ताकि शोधछात्र नए अध्ययन के जरिये हिमालय पर्यावरण व जैवविविधता संरक्षण की दिशा में नई पटकथा लिख सकें।यह भी पढ़ें: ड्रोन है एयरस्पेस इंजीनियरिंग की आधुनिक तकनीक

यह भी पढ़ें: मिथकों को तोड़ने के लिए वैज्ञानिक सोच विकसित करना जरूरी

यह भी पढ़ें: 75 साल बाद ऑर्डनेंस फैक्ट्री ने छोड़ा पुराना ढर्रा, फैक्ट्री में बनेगा ये डिवाइस


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.