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मिथकों को तोड़ने के लिए वैज्ञानिक सोच विकसित करना जरूरी

देहरादून में आयोजित सेीनार में वैज्ञानिक वेंकटेश्वरन ने कहा कुछ भी मानने, पढ़ने, सुनने से पहले पूर्वाग्रह से मुक्त रहना बेहद जरूरी है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Mon, 19 Mar 2018 05:13 PM (IST)Updated: Tue, 20 Mar 2018 10:23 AM (IST)
मिथकों को तोड़ने के लिए वैज्ञानिक सोच विकसित करना जरूरी
मिथकों को तोड़ने के लिए वैज्ञानिक सोच विकसित करना जरूरी

देहरादून, [जेएनएन]: दून साइंस फोरम और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने एक होटल में सेमीनार का आयोजन किया। जिसमें समाज के मिथकों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर चर्चा की गई। 

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सेमीनार में दिल्ली से आए वैज्ञानिक वेंकटेश्वरन ने कहा कि कुछ भी मानने, पढ़ने और सुनने से पहले पूर्वाग्रह से मुक्त रहना जरूरी है। किसी भी बात को मानने के लिए उसमें तार्किकता ढूढ़ें। डॉ. आराधना प्रताप ने कहा कि खसरा, चेचक जैसी बीमारियों को दैवीय प्रकोप माना जाता है, जो समाज की अविकसित वैज्ञानिक सोच को दर्शाता है। 

वहीं डॉ. सैय्यद ने शिक्षा के विकास के लिए स्कूलों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। दून साइंस फोरम के संयोजक और भारत ज्ञान-विज्ञान समिति के महासचिव विजय भट्ट ने कहा कि जो मिथक हैं, उनकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन्हें आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता। इस दौरान वरिष्ठ इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा, गुरदीप खुराना, कृष्णा खुराना, उमा भट्ट, डॉ. एसके कुलश्रेष्ठ, कैलाश कांडपाल, डॉ. वाईपी सिंह, नेहा, नितेश खंतवाल आदि मौजूद थे। 

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