अब झुंड में दिखाई दे रहे तेंदुए, जैव विविधता खत्म होने और खाद्य श्रृंखला टूटने से बदला व्यवहार
तेंदुए बस्तियों रिहायशी इलाकों में दिन दहाड़े हमलावर हो रहे हैं। एकाकी रहने वाले तेंदुए अब परिवार के साथ नजर आने लगे हैं। शिकार के लिए बस्तियों पर निर्भरता खतरनाक साबित हो रही है। बीते छह दिनों में तेंदुओं ने उत्तराखंड में तीन बच्चों का शिकार कर लिया है।
चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा : उत्तराखंड में तेंदुओं के हमले बढ़ गए हैं। वे अब रात की बजाय दिन में शिकार करने लगे हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ उनके इस बदलते व्यवहार की पहले ही पुष्टि कर चुके हैं। इसके पीछे जो कारण बताया जा रहा है उसके मुताबिक जैव विविधता खत्म होने, खाद्य श्रृंखला टूटने, जंगलों का दायरा सिमटने के उनके स्वभाव और व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है। बीते छह दिनों में तेंदुओं ने उत्तराखंड में तीन बच्चों का शिकार कर लिया है।
तेंदुए बस्तियों, रिहायशी इलाकों में दिन दहाड़े हमलावर हो रहे हैं। एकाकी रहने वाले तेंदुए अब परिवार के साथ नजर आने लगे हैं। शिकार के लिए बस्तियों पर निर्भरता खतरनाक साबित हो रही है। बीते दिवस द्वाराहाट ब्लाक के भौरा गांव में शाम पाइपलाइन की मरम्मत के दौरान तेंदुए ने तीन लोगों पर हमला कर दिया था। जिसके बाद से ग्रामीणों में दहशत है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे आने वाले समय में गुलदार और मानव के बीच संघर्ष और बढ़ने की आशंका है।
नर गुलदार का इलाका 48 वर्ग किमी और मादा गुलदार का क्षेत्र 17 वर्ग किमी होता है। अगर कोई दूसरा तेंदुआ उनके इलाके में घुस जाए तो उनमें संघर्ष हो जाता है। ऐसे में कमजोर की मौत निश्चित है। वन्यजीव जंतु प्रेमी और पर्यावरणविद डा. रमेश बिष्ट ने बताया कि तेंदुए का व्यवहार बदल रहा है, जो जैव विविधता खत्म होने की ओर संकेत है। बदलते व्यहवार पर्यावरणीय संकट की भी चेतावनी है।
समय के साथ दिखने लगा बदलाव
50 गुलदार व दो बाघों का शिकार कर चुके शिकारी लखपत सिंह का कहना है कि अब तेंदुए का व्यवहार चौंकाता हैं। अब तेंदुए को उत्तराखंड में गुलदार भी कहा जाता है। तेंदुए अब झुंड में दिखाई दे रहे हैं। बागेश्वर, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल आदि जगहों पर आदमखोर को मारने गए तब यह दिखाई दिया। पहले जिस इलाके में आदमखोर होता था वहां पर एक ही गुलदार होता था। अब यह दो से तीन एक साथ रह रहे हैं। अपना शिकार भी साझा करते दिखाई दे रहे हैं। जो पुराने अध्ययनों को चुनौती दे रहा हैं।
मादा के साथ शावक सीख रहे बस्तियों में शिकार करना
गुलदार खाद्य श्रृंखला में सबसे टॉप पर है। मादा गुलदार तीन से चार शावकों को जन्म देती है। शावक मादा के साथ करीब 18 महीने तक रहते हैं। इसके बाद अलग हो जाते हैं। अब शावकों के लिए जंगल में खाने के लिए कुछ नहीं मिल पाता तो उनको लेकर मादा आसान शिकार की तलाश में आदम बस्तियों में पहुंच रही है। मां के साथ शावक अब जंगल में शिकार करना नहीं सीख रहे, बल्कि इंसान की बस्तियों में शिकार करना सीख रहे हैं। इसलिए वह भी बड़े होकर शिकार के लिए आदम बस्तियों में ही स्वभाविक रूप से अाने लगे हैं।
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