आइए जेल, मुस्कुराएगी तबीयत
सिद्धार्थनगर : जेल के विषय में आप क्या सोंचते हैं। ऊंची-ऊंची बदरंग दीवारें। बेतरतीब व्यवस्था। गंदगी
सिद्धार्थनगर : जेल के विषय में आप क्या सोंचते हैं। ऊंची-ऊंची बदरंग दीवारें। बेतरतीब व्यवस्था। गंदगी का बोलबाला। ऐसा है तो कभी यहां जेल जाने का मौका मिले तो बिल्कुल मत चूकिएगा। यकीन मानिए कि तबीयत मुस्कुरा उठेगी। जिला कारागार का कोना-कोना हरियाली का पैगाम देता है। कहीं सब्जी की खेती देखने को मिलेगी तो कहीं हरे-भरे पेड़। इसके बाद की जो जगह बचती है उसे कैदियों उपवन बना दिया है। वह यहां हत्या, लूट, छिनैती, बलात्कार के आरोप में भले आए हों, पर समाज को जीने की राह दिखा रहे हैं। उनका उपवन सबक दे रहा है कि वह जेल की तस्वीर बदल सकते हैं तो आप अपने इर्द-गिर्द की क्यों नहीं? प्रकृति स्वयं वन का सृजन कर रही है। इसके लिए वन व उद्यान विभाग में प्रतिवर्ष करोड़ों खपाये जा रहे हैं। बावजूद इसके उसका दायरा सिमट गया है। धरा हरियाली से उघाड़ होती जा रही है। ऐसे में जिला जेल के बंदी नजीर बनकर उभरे हैं। उनकी लगन से वह उपवन तैयार किया है, जिससे लोग आनंदित हो जाएं। यहां सुमन ही नहीं आम व अन्य वृक्षों का रूप देखते ही बन रहा है। इसकी संगत ने जेल की रंगत ही बदल दी है। विभाग ने इसके सौन्दर्यीकरण के लिए भले एक पायी न दी हो, मगर बंदियों की मेहनत ने उसे प्रदेश की बेहतर जेलों में शुमार कर दिया है। वर्ष 2005 से स्थापित जिला जेल में सुविधाओं का भले अकाल हो, फिर भी उसकी गिनती प्रदेश के सुंदर जेलों में होती है। कैदियों को यह जेल इतनी भाती है कि यह उनकी पहली पसंद में गिनी जाती है। यहां देवरिया, बस्ती, फैजाबाद, अन्य जिलों सहित नेपाल के भी बंदी है। तमाम ऐसे हैं, जो प्रदेश की तमाम जेलों से होकर आयें हैं, पर हर किसी की राय यही कि इससे बेहतर सूबे की अन्य कोई जेल नहीं। वजह कुछ कैदियों की मेहनत है। इससे जेल में वह गुलगश्त तैयार हुआ, जो पहली ही नजर में आंखों में उतर जाता है। जेल के मुख्य द्वार से लेकर भीतर प्रथम द्वार तक सड़क के इर्द-गिर्द पुष्पवाटिका है। देशी बेला, चमेली, ग्लैडियस व लिली की जुगलबंदी ने वह आभा तैयार की है, कोई देखकर दंग जाये। इतराता गुलाब है तो गेंदा के फूलों को भी खुद पर नाज है। ईश्वर की इस सुंदर रचना के साथ यहां क्रोटन, मोरपंख के शो प्लांट हैं, जिन्हें सलीके से लगाया ही नहीं गया है, बल्कि स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखा गया है। यह किसी और ने नहीं, बल्कि कैदियों ने तैयार किया है। यहां पिछले दो वर्षों से चलने वाली आध्यात्मिक शिविर से उनमें वह परिवर्तन आया, जो मां-बाप व स्कूल की शिक्षा से संभव न हो सका था। पहले उन्होंने जेल की खाली एक एकड़ पथरीली भूमि से कंकड़ पत्थर निकाले और बाद में उसे समतल किया। छह माह की मेहनत में ही असर दिखने लगा। बाद में वहां फूलों के कुछ पौधे लगाये गये। इससे उनके कुछ और साथी प्रभावित हुए तो फिर बंदियों की भारी तादाद जुट गयी जेल की दिशा दशा बदलने में। परिणाम यह हुआ कि वर्ष भीतर ही तस्वीर बदल गयी। 540 कैदियों की क्षमता वाली इस जेल में 605 बंदी हैं।----कैदियों में बदलावउपवन का परिणाम है कि कैदियों की स्थिति में भी बदलाव आया है। वाटिका के संपर्क में आकर यहां के अधिकांश कैदी अब यही पैगाम देते हैं कि जीवन का सच्चा सुख भाईचारा व शांति में है।
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जेल में तैयार उद्यान के पीछे कैदियों की अहम भूमिका है। यह किसी एक की मेहनत नहीं है, बल्कि सभी ने थोड़ा थोड़ा समय निकालकर इसे तैयार किया है। इतना अवश्य है, सब कुछ जेल प्रशासन की गाइड लाइन में तैयार हुआ है और जरूरत पड़ने पर उन्हें यथासंभव मदद भी दी गयी है।
बी.के.गौतम
जेलर