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मन को वश में करना ही आत्मसंयम

भगवान बुद्ध ने कहा है कि जिसने अपने मन को वश में कर लिया है उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते हैं। अर्थात मन को वश में करने का नाम ही आत्मसंयम है जिसका अर्थ है अपने आप को वश में करना अर्थात मन-वचन और कर्म पर अधिकार प्राप्त करना। ताकि शरीर से कोई अशुभ कार्य न होने पाए जिससे कोई अपशब्द न निकले और मन में कभी अशुभ विचार न उठने पाए। यदि मनुष्य अपनी इंद्रियों का प्रयोग उचित ढंग से करता है तो ही वह मनुष्य कहलाने का अधिकार रखता है। यदि उसका अपने मन पर अधिकार नहीं है उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं है तो वह मनुष्य के पद से गिरकर अन्य योनियों में गिने जाने योग्य हो सकता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 07:28 PM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 07:28 PM (IST)
मन को वश में करना ही आत्मसंयम

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। भगवान बुद्ध ने कहा है कि जिसने अपने मन को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते हैं। अर्थात मन को वश में करने का नाम ही आत्मसंयम है, जिसका अर्थ है अपने आप को वश में करना अर्थात मन-वचन और कर्म पर अधिकार प्राप्त करना। ताकि शरीर से कोई अशुभ कार्य न होने पाए, जिससे कोई अपशब्द न निकले और मन में कभी अशुभ विचार न उठने पाए। यदि मनुष्य अपनी इंद्रियों का प्रयोग उचित ढंग से करता है तो ही वह मनुष्य कहलाने का अधिकार रखता है। यदि उसका अपने मन पर अधिकार नहीं है, उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं है तो वह मनुष्य के पद से गिरकर अन्य योनियों में गिने जाने योग्य हो सकता है। एक कथन है कि हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन जाते हैं। वास्तव में यह विचार नहीं अपितु विचारों का संसार है। हमारी सोच और विचारों का प्रभाव हमारे मन पर गहरा असर छोड़ता है। मनुष्य के मन में विचार ही बार-बार उभरकर आते हैं, जो मनुष्य को दिशा देने का काम करते हैं। विचार ही मस्तिष्क को गति प्रदान करते हैं और गलत विचार क्रोध की ओर जाने को विवश करते हैं। यह हमारी भूल है कि हम सोचते हैं कि वचनों की कोई शक्ति नहीं है। संसार में जो भी हुआ, जो भी हो रहा है और जो भी होगा, सब हमारे कर्म के प्रभाव से हुआ है और जो हो सकता है और आगे जो होगा वह कर्म की शक्ति से होता है। वह विचारों की शक्ति होती है। यदि हमारे अंदर आत्मसंयम नहीं है तो आत्मिकता का धन हमारे हाथ नहीं आ सकता है। हम इंद्रियों के जाल में फंसकर पहले तो निर्मल होंगे, फिर अपमानित होते हुए पहले अपना अनिष्ट करेंगे और फिर किसी और का करेंगे। यह सच है कि जो लोग दूसरों के लिए सोचते हैं, उनका मन विश्वास पूर्ण विचारों का स्त्रोत है। इसलिए यदि बुराई से बचना हो तो अपनी दिशा को भलाई की और मोड़ देना चाहिए। वास्तव में यदि आप जीतना ही चाहते हैं तो सबसे पहले आत्मसंयम की आदत डाल लें। क्योंकि संयम का अर्थ ही है अपनी बिखरी हुई शक्तियों को निश्चित दिशा देना। मान लीजिए जिस कार्य को नहीं करना है और जब उसे ही करने के लिए मन आकर्षित करता है तो आप उसे प्रयासपूर्वक रोकने के लिए मन बना लें। उसे ही आत्मसंयम कहते हैं। संयम का अर्थ है जब आकृति आकर्षणों की ओर जाने के लिए हमारा मन सहज रूप से रुक जाए। गांधीजी ने कहा था कि अनुशासन और बलिदान के बिना मुक्ति की आशा नहीं की जा सकती है, लेकिन यह बात भी सच है कि लोग अक्सर गुस्से में विवेक शून्य होकर तुरंत अपने आत्मसंयम को गुस्से में खो देते हैं। यह सच है कि समय बीतने के साथ लोगों के आत्मसंयम में भारी कमी आई है। इसके गंभीर परिणाम सामने भी आए हैं। इसलिए आत्मसंयम की उपयोगिता को किसी भी हाल में कम नहीं आंका जा सकत है। लेकिन, यह भी सच है कि शुरुआत में आत्मसंयम का मार्ग थोड़ा कठिन लगता है। अर्थात् मन को वश में करने का नाम ही आत्मसंयम है। मनुष्य को मिली हुई शक्तियों को निश्चित दिशा देना संयम कहलाता है।

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