Azam Khan Release: अब गरमाएगी प्रदेश की मुस्लिम सियासत, आजम के अगले कदम पर निगाहें
Azam Khan Release Latest Updates समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरा आजम खां के जेल से छूटने के बाद प्रदेश में मुस्लिम राजनीति भी गरमाएगी। आजम खां समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से हैं और रामपुर शहर से 10 बार विधायक भी चुने जा चुके हैं।
रामपुर, (मुस्लेमीन)। समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरा आजम खां के जेल से छूटने के बाद प्रदेश में मुस्लिम राजनीति भी गरमाएगी। आजम खां समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से हैं और रामपुर शहर से 10 बार विधायक भी चुने जा चुके हैं। प्रदेश में मुस्लिम नेता के रूप में उनकी खास पहचान है। अब आजम के अगले कदम पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।
आजम खां ने सियासत की शुरुआत से ही मुस्लिम राजनीति को चमकाया। उन्होंने बाबरी मस्जिद के लिए भी आंदोलन किया। अपने जिले में ही नहीं बल्कि आसपास के तमाम जिलों में भी उनकी मुस्लिम मतदाताओं पर मजबूत पकड़ रही है। रामपुर से वह लोकसभा सदस्य रहने के साथ ही राज्य सभा सदस्य भी रहे हैं। प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष और रामपुर शहर से 10 बार विधायक भी बने। प्रदेश में जब भी सपा की सरकार बनी तब वह कई-कई विभागों के मंत्री बने, लेकिन पिछले सवा दो साल से वह जेल में बंद थे। इस बार विधानसभा चुनाव भी उन्होंने जेल में रहता लड़ा। उनके बेटे अब्दुल्ला आजम ने ही उनके चुनाव की कमान संभाली। हालांकि अब्दुल्ला ने भी आजम खां के अंदाज में ही भाषणबाजी की और लोगों को अपने पक्ष में भी कर लिया। इस वजह से आजम खां की पहली बार एक लाख 31 हजार वोट पाकर विधायक चुने गए। अब्दुल्ला खुद भी सवा लाख से ज्यादा वोट पाए और 61 हजार के अंतर से विजयी रहे, लेकिन सपा के स्टार प्रचारकों में न तो अब्दुल्ला का नाम था और न ही कोई और मुस्लिम बड़ा नेता शामिल था।
रामपुर में तो चुनाव के दौरान मंच पर आजम खां के नाम की खाली कुर्सी छोड़ी जा रही थी। कुर्सी पर उनका फोटा रख दिया जाता था। चुनावी सभा में रामपुर पहुंचे अखिलेश यादव ने भी कहा था कि उन्हें आजम खां की कमी खल रही है, लेकिन अब यह कमी दूर हो जाएगी। आजम खां जेल से बाहर आ गए हैं। उन्होंने मुसलमानों की राजनीति को लेकर देवबंद, बरेली और मुबारकपुर के उलमाओं से भी संपर्क करने की बात कही है। मीडिया के सवाल पर ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी बोले हैं। कहा है कि बाबरी मस्जिद और ज्ञानवापी के मामले में अंतर है। बाबरी मस्जिद का फैसला लंबे समय के बाद हुआ था।
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सियासत में अब मुश्किल होगा सपा का साथ: आजम खां सवा दो साल बाद जेल से छूट गए। ऐसे में उन्हें सपा के साथ कड़वे अनुभव हुए हैं। जहां उन्हें सपा प्रमुख अखिलेश यादव से समर्थन की जरूरत थी, वह नहीं मिला। जेल से छूटने के वक्त भी चाचा शिवपाल मौजूद रहे लेकिन अखिलेश गायब। उन्होंने सिर्फ ट्वीट कर छुट्टी कर ली। पहले से ही आजम खां के समर्थक अखिलेश यादव के रवैये से नाराज हैं। पिछले माह आजम खां के मीडिया प्रभारी ने तो अखिलेश यादव पर निशाना भी साधा था। उनके खिलाफ जमकर बयानबाजी भी की थी। ऐसे में लोग कयास लगा रहे हैं कि आजम खां सपा से किनारा कर सकते हैं। शुक्रवार को मीडिया कर्मियों ने भी सपा से नाराजगी को लेकर आजम खां से सवाल किए, लेकिन उन्होंने स्पष्ट जवाब नहीं दिया।
नेताजी तो बोलते, हमारे दर्द को तौलते: आजम खां या उनके समर्थकों ने शुक्रवार को सपा मुखिया अखिलेश यादव या मुलायम सिंह यादव पर कोई टिप्पणी तो नहीं की, लेकिन अंदर ही अंदर यह दर्द है कि कभी नेताजी भी सवा दो साल में उन पर लगाए केसों पर नहीं बोले. यदि वह एक बार कुछ कहते तो शायद इतने मुकदमे दर्ज नहीं हो पाते। नेताजी जेल में मिलने कभी नहीं गए, जबकि मुलायम सिंह की सरकार बनवाने में हमेशा आजम खां ने उनका साथ दिया।
दिल्ली न आई रास, लखनऊ ने काटा जेल का वास: आजम खां को लोकसभा की सदस्यता रास नहीं आई। वह लोकसभा चुनाव जीतने के कुछ वक्त बाद ही मुकदमों के जाल में फंसते चले गए। उनके खिलाफ 89 मुकदमे विचाराधीन हैं। 26 फरवरी 2020 को पत्नी और बेटे के साथ अदालत में हाजिर हुए और जेल चले गए। उनकी पत्नी पूर्व सांसद डा.तजीन फात्मा 10 माह बाद और बेटे अब्दुल्ला आजम 23 माह बाद जेल से छूट पाए थे, जबकि आजम खां सवा दो साल बाद छूटे हैं। इस बार विधायक का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद ही उन्हें जेल से रिहाई मिल सकी है।