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बात पते की : प्रधान बनाम प्रधान पद प्रत्याशी, पांच साल के काम पर अब उठ रहे सवाल Meerut News

जिले में प्रधानी के चुनाव का वक्‍त जैसे जैसे नजदीक आ रहा है। वैसे वैसे ही कई लोगों की धड़कने बढ़ने लगी है। हालात यह हैं कि शायद कोई गांव पंचायत हो जहां प्रधान के खिलाफ शिकायत न की गई हो। ऐसे में अब क्‍या होगा बताना जल्‍दबाजी होगा।

By Prem BhattEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 12:24 PM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 12:24 PM (IST)
मेरठ जिले में प्रधानों को करप्‍शन के मुद्दे अब घेरा जाने लगा है।

मेरठ, [अनुज शर्मा]। पांच साल के कार्यकाल में प्रधानजी ने भले ही ईमानदारी से जनता की सेवा की हो, लेकिन फिलहाल वे बेईमान की सूची में हैं। कारण साफ है। चुनाव आने वाले हैं लिहाजा प्रधान पद प्रत्याशी अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। इसके लिए वे मौजूदा प्रधान को घेरने का अभियान चला रहे हैं, उनके पांच साल के काम पर सवाल उठा रहे हैं और भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर उनकी जांच कराने में जी-जान लगा रहे हैं। शायद कोई गांव पंचायत हो जहां प्रधान के खिलाफ शिकायत न की गई हो। हालांकि अधिकांश शिकायतें झूठी साबित हो रही हैं लेकिन जांच प्रक्रिया प्रधानजी पर भारी गुजर रही है। जिसने गड़बड़ की है वे तो जैसे-तैसे शिकायत को मैनेज कर लेते हैं, लेकिन ईमानदार प्रधानों के लिए जांच पूरी कराना आसान नहीं है। वे सोच रहे हैं कि आखिर प्रधान बनकर क्या गलती कर दी।

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मेरठ भी अब 'बड़ा शहर'

अपना मेरठ भी अब दिल्ली, मुंबई से कम नहीं है। आजकल शहरों का कद वहां फैली बुराई से मापा जाता है। तो लो, अब मेरठ भी पीछे नहीं रह गया है। जुआ, सट्टा, चोरी, डकैती, लूट, दुष्कर्म की घटनाएं तो यहां पहले से ही खासी हैं, युवाओं को नशे की दुनिया में धकेलने वाले हुक्का बार भी यहां तमाम स्थानों पर खुल गए हैं। जनता इससे अनजान है, लेकिन पुलिस और युवा इनका ठिकाना जानते हैं। जब कभी बात बिगड़ती है तो पुलिस मजबूरी में कार्रवाई करती है, तब जनता जान पाती है। ऑनलाइन देह व्यापार का तो मेरठ पहले से केंद्र है। शहर की नई उपलब्धि क्रिकेट मैचों पर ऑनलाइन सट्टेबाजी है। एक सप्ताह में ही कई स्थानों पर यह धंधा पकड़ा गया है, अर्थात इस नए धंधे ने भी शहर में पैर जमा लिए हैं। अब कोई मेरठ को छोटा शहर न माने।

करोड़पति सरकार, लखपति ट्रैफिक पुलिस

आप यदि पढ़े-लिखे शरीफ व्यक्ति हैं तो शहर की सड़कों पर कृपया वाहन लेकर न निकलें। एक भी यात्रा आपको महंगी पड़ सकती है। हर चौराहे और मोड़ पर ट्रैफिक पुलिस के जवान और उनके सहयोगी होमगार्ड आपकी प्रतीक्षा में खड़े मिलेंगे। इन्हें अपने असली काम जाम खुलवाने से कोई वास्ता नहीं है। वे तो जाम में भी चेकिंग  के महत्वपूर्ण कार्य में जुटे रहते हैं। महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि सरकारी खजाने में हर महीने लाखों करोड़ों रुपये का जुर्माना जमा किया जा रहा है, लेकिन इससे भी ज्यादा चालान वे वाहन चालक को कोने में ले जाकर नगद ही निपटा लेते हैं। लिहाजा ट्रैफिक पुलिस भी लखपति से कम नहीं है। अगर आप वाहन में परिवार के साथ हैं तो आपको रोका जाना तय है, क्योंकि उस समय आप ज्यादा सवाल जवाब नहीं करेंगे। चेकिंग  के इस नाटक से अब जनता परेशान हो चुकी है।

मीडियम क्लास न हो बीमार

मीडियम क्लास पर कोरोना भारी पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में मौत और लापरवाही के किस्सों से घबराए लोग वहां इलाज के लिए भर्ती होने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। निजी अस्पतालों में भर्ती होकर उनकी जान तो बच रही है, लेकिन इन अस्पतालों का मीटर रोजाना 15 से 25 हजार रुपया तक भागता है। यानि कोरोना के 10 से 15 दिन के इलाज में दो से तीन लाख का खर्च तय। यह झटका मध्यम परिवार को कई साल पीछे धकेल रहा है। कोरोना से घबराई जनता लुटने को मजबूर है। सरकारी तंत्र का शायद इस ओर ध्यान ही नहीं है। रोजाना औसतन सौ से ज्यादा नए मरीजों की संख्या निजी अस्पतालों के लिए वरदान बन रही है। गरीब तो भगवान भरोसे सरकारी अस्पताल में भर्ती हो जाता है, जबकि क्रीमी लेयर के इलाज के लिए तमाम नामचीन निजी अस्पताल बांहे फैलाए खड़े रहते हैं।


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