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Pandit Deendayal Upadhyay: मथुरा का नगला चंद्रभान जहां भवनों में पूजे जाते हैं झोपड़ी में रहने वाले काका

Mathura News पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर चार दिन तक उत्सव का माहौल रहता है। पैतृक गांव नगला चंद्रभान के हर घर में दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर है। पूर्वज के रूप में उनकी पूजा होती है। भगवान के बाद ग्रामीण लगाते हैं भोग।

By vineet Kumar MishraEdited By: Abhishek SaxenaSun, 25 Sep 2022 09:18 AM (IST)
Pandit Deendayal Upadhyay: मथुरा का नगला चंद्रभान जहां भवनों में पूजे जाते हैं झोपड़ी में रहने वाले काका
Mathura News: मथुरा के नगला चंद्रभान में होती है पंडित दीनदयाल की पूजा।

विनीत मिश्र, मथुरा। बुजुर्गों और पूर्वजों का स्मरण करने की सीख तो सभी देते हैं। लेकिन असल में गांव के बुजुर्ग और पूर्वज का सम्मान क्या होता है, ये देखने के लिए नगला चंद्रभान आइए। ये वही गांव है, जहां की माटी में दीना काका यानी पंडित दीनदयाल उपाध्याय पले और पढ़े। जिन काका ने पूरी दुनिया में गांव को पहचान दिलाई, वह गांव ये ऋण उनकी पूजा कर उतार रहा है।

झोपड़ी में रहने वाले काका आज भवनों में पूजे जा रहे हैं। गांव के हर घर में उनकी तस्वीर है। अन्न का भोग भगवान के बाद पूर्वजों के साथ काका को भी लगता है। आस्था का ये सिलसिला शुरू हुआ, तो बरसों-बरस श्रद्धा की डोर मजबूत हुई।

गांव में पूजा करते हैं लोग

पंडित दीनदयाल उपाध्याय को दुनिया में भले ही एकात्म मानववाद के प्रणेता और अंत्योदय के उपासक के रूप में जाना जाता हो। लेकिन गांव तो उनकी पूजा करता है। ऐसा शायद ही कहीं देखने को मिले। अपने गांव में भले वह बहुत दिनों तक नहीं रहे, लेकिन माटी और अपनों का जुड़ाव हमेशा बना रहा।

जिन्होंने काका को देखा, जिन्होंने केवल उनके बारे में सुना, दोनों उन्हें अब गुन रहे हैं। ये बात भले ही सुनने में अनोखी लगे, लेकिन नगला चंद्रभान में काका हर घर में तस्वीर के रूप में विराजमान हैं। ये बात यहीं नहीं रुकती। घर में पहला भोग भी भगवान के बाद काका को लगाया जाता है।

पंडित दीनदयाल को पूर्वज मानता है गांव

जगमोहन पाठक कहते हैं कि हमारा गांव उन्हें पूर्वज मानता है। भगवान के बाद उनकी पूजा भी होती है। घर के बुजुर्गों के साथ वह भी तस्वीर में हैं। भीकम चंद्र दुबे भी दीनदयाल उपाध्याय के बड़े हिमायती हैं। कहते हैं कि आज हमारे गांव का नाम उनसे है, इसलिए हमारा समर्पण उनके प्रति है। वह हमारे पूर्वज हैं।

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त्योहारों पर जलते दीप, होता टीका

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के प्रति ये आस्था और समर्पण ही है कि होली, दिवाली और अन्य बड़े त्योहारों में दीनदयाल स्मारक में लगी काका की प्रतिमा पर भी ग्रामीण पहुंचकर पूजन करते हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मभूमि स्मारक समिति के निदेशक सोनपाल कहते हैं कि दिवाली पर हर घर से ग्रामीण काका की प्रतिमा पर दीप जलाते हैं, मिठाई का भोग लगता है।

होली पर हर व्यक्ति प्रतिमा पर गुलाल का टीका लगा, बधाई देता है। रक्षाबंधन पर जब राखी बंधती है, तो अपनेपन का अहसास शब्दों में बयां नहीं होता।

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मेला नहीं, ये त्योहार है

त्योहारों पर बहू-बेटियां अपनी ससुराल से मायके आती हैं। कुछ ऐसा ही नजारा काका के जन्मोत्सव मेले का भी है। चार दिवसीय जन्मोत्सव मेले के लिए ज्यादातर परिवारों में बेटियां मायके आ जाती हैं। मेले के बाद ही वापस लौटती हैं।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय

  • जन्म-25 सितंबर 1916
  • निधन-11 फरवरी 1968
  • पिता का नाम-भगवती प्रसाद उपाध्याय
  • माता का नाम-रामप्यारी

जन्मस्थान- पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मस्थान को लेकर भ्रम की स्थिति है। कुछ लोग उनका जन्मस्थान जयपुर राजस्थान के धनकिया में बताते हैं, कुछ लोग नगला चंद्रभान में जन्म बताते हैं। कालेज के दिनों में वह कानपुर में आरएसएस से जुड़ गए। उन्हें भारतीय जनसंघ का प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया। बाद में वह जनसंघ के अध्यक्ष बने।