मथुरा, जागरण टीम, (विनीत मिश्र)। वृंदावन के राधारमण लाल जू की महिमा निराली है। आज पूरे देश में नेपाल की काली गंडक नदी की शालिग्राम शिला चर्चा में है। 480 वर्ष पहले बांकेबिहारी की नगरी वृंदावन में काली गंडक नदी से लाई गई शालिग्राम शिला से अपने भक्त की सेवा से प्रसन्न होकर प्रकटे थे। आज राधारमण लाल जू जन-जन की आस्था के प्रतीक हैं।

गंडक नदी के शालीग्राम शिला में है विग्रह

वृंदावन के राधारमण मंदिर में आज जो आराध्य का विग्रह है। वह काली गंडक नदी के शालिग्राम शिला में ही है। करीब 480 वर्ष पहले खुद ठाकुर जी ने चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी की सेवा से प्रसन्न होकर राधारमण शालिग्राम शिला में प्रकटे। श्रीराधारमण मंदिर के सेवायत वैष्णवाचार्य जय जय श्री अभिषेक गोस्वामी बताते हैं कि करीब पांच सौ वर्ष पहले आचार्य गोपाल भट्ट नेपाल के काली गंडक नदी के दामोदर कुंड में स्नान कर रहे थे। तब उनके पास द्वादश (12) शालिग्राम आ गए। उन्हें आभास हुआ कि हमारे ईष्ट इन्हीं शालिग्राम में छिपे हैं और इन्हें वृंदावन ले जाना है।

शिला को पूजते रहे

गोपाल भट्ट सभी शालिग्राम शिला लेकर वृंदावन आ गए। शिला का पूजन करते। जब ठाकुर जी के लिए श्रृंगार सामग्री लोग अर्पित करते, तो वह कहते अभी हमारे ठाकुर जी गर्भस्थ अवस्था में हैं, जब वह प्रकटेंगे, तब श्रृंगार सामग्री लेंगे। उनकी इच्छा थी कि ठाकुर जी का प्राकट्य होता, तो वह भी उनका श्रृंगार करते। गोपाल भट्ट के भाव समझ करीब 480 वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की भोर राधारमणलाल जू शालिग्राम शिला में प्रकटे।

चरणाविंद के दर्शन होते हैं

अभिषेक गोस्वामी बताते हैं कि आराध्य के विग्रह में गोविंददेव जी का मुख, गोपीनाथजी का वक्षस्थल और मदनमोहनजी के चरणाविंद के दर्शन होते हैं। वह कहते हैं कि राधारमण लाल जू का प्राकट्य उसी तरह हुआ, जैसे काष्ठ खंभ से प्रह्लाद की भक्ति से प्रभावित हो गए नृसिंह भगवान प्रकटे। बाकी की 11 शालिग्राम शिला की सेवा भी आराध्य की तरह ही उनकी प्रतिमा के पास में होती है।

ये भी पढ़ें...

आनलाइन अश्लील सामग्री बेचने पर सीबीआइ का मेरठ में छापा, एक व्यक्ति को पकड़ा, तुर्की से मिला इनपुट

इसलिए पड़ा राधारमण लाल नाम

सेवायत अभिषेक गोस्वामी बताते हैं कि करीब पांच हजार वर्ष पहले रास रचाते समय राधारानी और भगवान श्रीकृष्ण अंतर्ध्यान हो गए। आज जिस स्थान पर राधारमण मंदिर है, वहां श्रीकृष्ण ने राधाजी की चोटी गूंथी थी। वहां राधारानी थक गईं, तो वह राधारमण-राधारमण कहकर विलाप करने लगीं। उस वक्त गोपियों के बीच में आचार्य गोपाल भट्ट गुण मंजरी (राधारानी की निज सेविका) के रूप में थे। उन्होंने तब राधारमण लाल नाम सुना। जब वह कलियुग में आचार्य गोपाल भट्ट हुए तो शालिग्राम शिला लेकर उसी स्थान पर सेवा की। जब आराध्य का प्राकट्य हुआ तो उन्हें राधारमण लाल जू नाम दे दिया। 

Edited By: Abhishek Saxena