यूपी में अब ले-आउट प्लान पर ही देना होगा नगरीय विकास शुल्क, इंटीग्रेटेड टाउनशिप विकसित करने वाले विकासकर्ताओं को मिली बड़ी राहत
विकासकर्ताओं को डीपीआर के बजाय सिर्फ ले-आउट पर ही नगरीय विकास शुल्क (सीडीसी) देना पड़ेगा। इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति-2014 में संशोधन संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
लखनऊ, राज्य ब्यूरो। 25 से 500 एकड़ भूमि पर इंटीग्रेटेड टाउनशिप विकसित करने वाले विकासकर्ताओं को राज्य सरकार ने राहत दी है। अब ऐसे विकासकर्ताओं को डीपीआर के बजाय सिर्फ ले-आउट पर ही नगरीय विकास शुल्क (सीडीसी) देना पड़ेगा। इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति-2014 (लाइसेन्स आधारित प्रणाली) में संशोधन संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
दरअसल, छोटे शहरों में भी जरूरतमंदों के लिए आवास मुहैया कराने के लिए राज्य में 25 से 500 एकड़ क्षेत्रफल पर निजी निवेश के जरिए विकासकर्ताओं द्वारा टाउनशिप विकसित की इंटीग्रेटेड टाउनशिप नीति लागू है। नीति के मुताबिक परियोजना की स्वीकृत डीपीआर के तहत चरणबद्ध रूप से ले-आउट प्लान की स्वीकृति और संबंधित विकास प्राधिकरण-परिषद के साथ विकास अनुबन्ध की कार्यवाही की जाएगी। परियोजना की डीपीआर स्वीकृति के समय विकासकर्ता को नगरीय विकास शुल्क देना होता है। शुल्क, अलग-अलग शहरों के लिए तीन सौ से पांच सौ रुपये प्रति वर्गमीटर तक है। रियल स्टेट से जुड़े विकासकर्ताओं को सहूलियत देने के लिए कैबिनेट ने नगरीय विकास प्रभार नियमावली, 2014 के तहत डीपीआर के बजाय ले-आउट प्लान के अनुसार ही नगरीय विकास शुल्क लिए जाने संबंधी संशोधन प्रस्ताव को मंजूरी दी है। माना जा रहा है कि इससे इंटीग्रेटेड टाउनशिप परियोजनाओं के काम में अब तेजी आएगी।
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फिरोजाबाद-शिकोहाबाद प्राधिकरण का बढ़ेगा दायरा: कैबिनेट ने फिरोजाबाद-शिकोहाबाद विकास प्राधिकरण के विकास क्षेत्र के दायरे को बढ़ाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक टुंडला, सिरसागंज नगर पंचायत के साथ ही एत्मादपुर के कुछ गांव को प्राधिकरण के विकास क्षेत्र में शामिल किया गया है। ऐसे क्षेत्रों में अब किसी भी तरह के निर्माण के लिए प्राधिकरण से मंजूरी लेनी होगी जिससे पूरे क्षेत्र का सुनियोजित विकास सुनिश्चित किया जा सकेगा।
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