मोबाइल नंबर स्वैप कर बैंक खातों में लगा रहे बैंक एकाउंट में सेंध
साइबर ठग लोगों के मोबाइल नंबर स्वैप कर ऑनलाइन बैंकिंग के माध्यम से सीधे उनके खाते में सेंध लगा रहे हैं।
लखनऊ (ज्ञान बिहारी मिश्र)। साइबर क्राइम का दायरा व्यापक होता जा रहा है। जालसाज एटीएम कार्ड की जानकारी लेकर,कार्ड की क्लोनिंग कर तो कभी स्वैपिंग करके लोगों की गाढ़ी कमाई लूट रहे हैं। अब जालसाजों ने नया तरीका ईजाद किया है। वह लोगों के मोबाइल नंबर स्वैप कर ऑनलाइन बैंकिंग के माध्यम से सीधे उनके खाते में सेंध लगा रहे हैं। ऐसे में अगर आपके मोबाइल नंबर का नेटवर्क अचानक गायब हो जाए तो फौरन सतर्क हो जाएं।
कार्ड की जानकारी करते हैं हासिल: सबसे पहले जालसाज आपके एटीएम कार्ड पर अंकित 16 डिजिट नंबर की जानकारी एकत्र करते हैं। इसके लिए वह एटीएम बूथ में मौजूद रहते हैं और किसी बहाने से उसे नोट कर लेते हैं, या फिर वह एटीएम में स्किमर लगाकर पूरा ब्योरा हासिल कर लेते हैं।
बैंक के कॉल सेंटर में फोन कर हासिल करते हैं ब्योरा: एटीएम कार्ड के 16 डिजिट नंबर को हथियार बनाकर वह बैंक के कॉल सेंटर में फोन करते हैं। कॉल टेकर को सभी डिजिट बताकर मोबाइल बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कहते हैं। कॉल सेंटर के कर्मचारी बैंक में रजिस्टर्ड नंबर से फोन करने पर ही ब्योरा देने की बात बोलते हैं। इस पर जालसाज उनसे उक्त नंबर भूल जाने अथवा याद न होने का झांसा देकर मोबाइल नंबर व अन्य जानकारी हासिल कर लेते हैं।
ई-एफआइआर का इस्तेमाल: मोबाइल नंबर हासिल करने के बाद ठग पुलिस की ऑनलाइन पोर्टल पर उक्त नंबर के खोने अथवा चोरी हो जाने की ई-एफआइआर दर्ज कराते हैं। इसके बाद संबंधित टेलीकॉम कंपनी में एफआइआर की प्रति दिखाकर जालसाज दूसरा सिम हासिल कर लेते हैं। मोबाइल नंबर स्वैप होते ही उसके फोन से नेटवर्क गायब हो जाता है।
पकड़े गए ठग ने खोला राज: कानपुर नगर स्थित बेसिक शिक्षा अधिकारी के यहां वित्त एवं लेखा अधिकारी महानगर रहीम नगर निवासी अजय नाथ मौर्य के खाते से 2.20 लाख रुपये निकल गए थे। अजय ने नाका कोतवाली में एफआइआर दर्ज कराई, जिसके बाद साइबर क्राइम सेल ने जांच शुरू की। पड़ताल में पता चला कि जालसाज ने अजय का मोबाइल नंबर स्वैप कर ऑनलाइन बैंकिंग के जरिए ठगी की है। पुलिस ने इस मामले में प्रदीप तिवारी को गिरफ्तार किया, जिसके बाद पूछताछ में सारी बात सामने आई। खास बात यह है कि मोबाइल स्वैपिंग के जरिए ठगी की रिपोर्ट कानपुर के कल्याणपुर थाने में भी दर्ज है, जिसके बारे में अभी पड़ताल जारी है।
रजिस्टर्ड सिम से ऑनलाइन बैंकिंग: रजिस्टर्ड नंबर हासिल करने के बाद जालसाज संबंधित बैंक के कॉल सेंटर में फोन करते हैं और नेट बैंकिंग एक्टिवेट करा लेते हैं। इसके बाद कीमती सामान की खरीदारी करते हैं। इससे पहले कि पीड़ित टेलीकॉम कंपनी में जाकर नेटवर्क नहीं आने की शिकायत दर्ज कराए, उसके खाते से मोटी रकम पार हो चुकी होती है।
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शक न हो इसलिए करते हैं फोन: नंबर स्वैप करने से थोड़ी देर पहले ठग मोबाइल नंबर के असली धारक को फोन कर कहते हैं कि आपके सिम की वैधता समाप्त होने वाली है, जिसे कुछ माह के लिए बढ़ाया जा रहा है। ऐसे में आपके मोबाइल का सिग्नल कुछ देर के लिए जा सकता है। इसके थोड़ी देर बाद ही सिग्नल चला जाता है और उन्हें शक भी नहीं होता।
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