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नंबरों की होड़ और बस्ते के बोझ तले दब रहा बचपन, Parents ऐसे करें बच्‍चों की परवरिश Lucknow News

लखनऊ में पढ़ाई की डांट से डरकर शिवानी ने पांचवीं मंजिल से कूदकर दे दी जान। मनोवैज्ञानिकों की राय अंक के लिए नहीं अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए किताबों से करें दोस्ती।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 08:44 PM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 08:44 PM (IST)
नंबरों की होड़ और बस्ते के बोझ तले दब रहा बचपन, Parents ऐसे करें बच्‍चों की परवरिश Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। शिबानी दुनिया से बेशक चली गई मगर, पीछे छोड़ गई कई सवाल। वजह बड़ी कोई नहीं थी। मां ने सिर्फ पढ़ाई के लिए डांटा। एग्जाम का हवाला दिया। सवाल उठता है, आखिर इतने भर से उसने जिंदगी खत्म करने की कैसे ठान ली...? मानवीय दृष्टिकोण से सभी अपने-अपने जवाब होंगे मगर, जानकार हालात गंभीर बताते हैं। यह कहकर कि अच्छे नंबरों की होड़ और बस्ते के बोझ तले खुशी जैसे करोड़ों बच्चों का बचपन आज छटपटा रहा है। असल में जो पढ़ाई वे पढ़ रहे हैं, अंकों की दौड़ लगा रहे हैं उससे सिर्फ किताबी ज्ञान बढ़ रहा है। लिहाजा, ज्यादा पढऩा ही सफलता है, इस मापदंड को बदलना होगा। अभिभावकों को जिम्मेदारी ज्यादा उठानी होगी ताकि बच्चे तनावग्रस्त होने के बजाए खुशी मन से पढ़ाई करें। अन्य गतिविधियों स्पोर्ट्स, डांस, सिंगिंग में भी व्यस्त भागीदार बनें। 

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90 फीसद के लिए नहीं, टैलेंट की करें पढ़ाई 

विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों को 90 फीसद अंक का मानक निर्धारित कर बच्चों की पढ़ाई नहीं करानी चाहिए। हमें इस मानसिकता से दूर होना होगा। यह ध्यान अभिभावक को भी रखना होगा क्योंकि हर बच्चा टैलेंटेड है मगर यह जरूरी नहीं कि वह 90 फीसद अंक ही लाए। 

सतत और व्यापक मूल्यांकन जरूरी 

विद्यालयों में परीक्षा में परफारमेंश के अंक से मूल्यांकन की पद्धति गलत है। छात्रों के मूल्यांकन के लिए सतत और व्यापक विधा को अपनाना चाहिए। 

बोझ पाठ्यक्रम का नहीं, प्रतिस्पर्धा का 

शिक्षाविद् एवं सीबीएसई के पूर्व अध्यक्ष अशोक गांगुली के मुताबिक, बच्चों पर पाठ्यक्रम का कोई बोझ नहीं है। उनपर दबाव प्रतिस्पर्धा का है। इस दौर में बोर्ड-बोर्ड, स्कूल-स्कूल और बच्चों-बच्चों में जो प्रतिस्पर्धा है, वह गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस पर विशेषज्ञों को शोध करना चाहिए। उसके बाद जो हल निकले उसे तत्काल लागू करना चाहिए। 

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क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ 

सीबीएसई नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष एवं शिक्षा विद अशोक गांगुली ने कहा कि आमतौर पर स्कूलों में एक दिन में आठ नहीं, सिर्फ चार पीरियड होने चाहिए। अन्य चार पीरियड में बच्चों को अन्य गतिविधियों से जोड़ा जाए तो मन से पढ़ाई का बोझ दूर हो सकेगा। 


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