Mukhtar Ansari: पहली बार माफिया मुख्तार अंसारी को किसी कोर्ट ने सुनाई कठोर कैद की सजा, अभी तक मुकर जाते थे गवाह
Mukhtar Ansari News माफिया मुख्तार अंसारी के खिलाफ करीब 60 मुकदमों का आपराधिक इतिहास रहा है किंतु यह पहला मौका है जब उसे किसी अदालत ने सजा सुनायी है। वह पहले से ही दूसरे मामलों में बांदा जेल में हैं।
UP News: लखनऊ, जेएनएन। माफिया डान पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari News) को 19 साल पहले लखनऊ जिला जेल में जेलर एस के अवस्थी को धमकाने व जान से मारने की धमकी देने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने बुधवार को सात साल कठोर कैद की सजा सुना दी। कोर्ट ने उस पर 37 हजार रुपये का हर्जाना भी ठोंका है।
माफिया मुख्तार अंसारी के खिलाफ करीब 60 मुकदमों का आपराधिक इतिहास रहा है, किंतु यह पहला मौका है जब उसे किसी अदालत ने सजा सुनायी है। मुख्तार पहले से ही दूसरे मामलों में जेल में हैं। यह आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने एमपी एमएलए की विशेष अदालत द्वारा गत 23 दिसंबर, 2020 को मुख्तार को बरी करने के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दाखिल अपील को मंजूर करते हुए सुनाया।
अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि पत्रावली पर मुख्तार के खिलाफ उसे सजा सुनाने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं जिन्हें नकार कर उसे बरी करना विचारण अदालत की भूल थी। मुख्तार की छवि भयानक अपराधी और माफिया की है। कोई इस बात से इन्कार नहीं करेगा कि खासो-आम पर उसका भय रहता है। यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि उसके खिलाफ दर्ज लगभग सभी मुकदमों में वह बरी हो गया क्योंकि अभियोजन के गवाह विचारण के दौरान मुकर जाते रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि 2003 में मुख्तार लखनऊ की जिला जेल में बंद था। उससे मिलने तमाम लेाग आया जाया करते थे। 23 अप्रैल, 2003 को मुख्तार के कुछ लोग सुबह उससे मिलने आये। तब जेलर एस के अवस्थी जेल के अंदर ही अपने आफिस में मौजूद थे। जब गेटकीपर प्रेम चंद्र मौर्या ने उनसे बताया कि मुख्तार से कुछ लेाग मिलने आये हैं तो उन्होने कहा कि तलाशी लेकर मिलने दिया जाये।
तलाशी के नाम पर मुख्तार उखड़ गया और कहा कि तुम जेलर अपने आपको बहुत बड़ा समझते हो और मुझसे मिलने आने वालों के लिए बाधा बनते हो। इस पर अवस्थी ने कहा कि बिना तलाशी अंदर मिलने की इजाजत नहीं दी सकती तो मुख्तार ने धमकी दी कि आज तुम जेल से बाहर निकलों तुम्हें मरवा दूंगा।
मुख्तार ने अवस्थी को गाली दी और मिलने आये लोगों में से किसी की पिस्टल लेकर अवस्थी पर तान दिया। तब वहां मौजूद कुछ लोगो ने बीच बचाव किया। मुख्तार ने उससे मिलने आये लोगों को वापस भेज दिया और अवस्थी को धमकी दी कि तुम्हारे दिन खत्म हो गए हैं और तुम्हें कोई बचा नहीं पाएगा।
इस घटना के बाद जेलर अवस्थी ने 28 अप्रैल, 2003 को आलमबाग थाने पर प्राथमिकी दर्ज करा दिया। विवेचना के बाद पुलिस ने केस में आरोपपत्र दाखिल किया। केस की गवाही 2013 से प्रारंभ हो सकी तब तक जेल अधिकांश अधिकारी जो गवाह थे। सेवानिवृत्त हो चुके थे। विचारण के बाद एमपीएमएल की विशेष अदालत ने 23 दिसंबर 2020 को मुख्तार को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। इस निर्णय को राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में तत्काल चुनौती दी थी जिस पर बुधवार को फैसला आया।
अपील पर राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए अपर शासकीय अधिवक्ता उमेश चंद्र वर्मा और राव नरेंद्र सिंह का तर्क था कि मुख्तार प्रदेश में सबसे बड़ा बाहुबली है। उसके नाम से आम लोगों के साथ सरकारी लोग भी भय खाते हैं। जेलर एस के अवस्थी से पहले रहे जेलर आर के तिवारी की हत्या भी कथित रूप से इसी वजह से हुई थी, क्योंकि जेल में मुख्तार को रोक टोक पसंद नहीं थी।
दूसरी ओर सरकार की अपील का विरेाध करते हुए मुख्तार की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ज्योतिंद्र मिश्रा ने कहा कि मुख्तार के खिलाफ पत्रावली पर कोई ऐसे अकाट्य साक्ष्य नहीं हैं जिनसे उसे दोषी करार दिया जा सकता हो। कहा कि केस के अधिकांश गवाह मुकर गए थे।
कोर्ट ने साक्ष्यों का विष्लेषण करते हुए कहा कि वादी जेलर की गवाही हुई जिसमें उसने घटना को साबित किया किंतु उसके सेवानिवृत्त हेाने के बाद जब उससे दस साल बाद जिरह हुई तो वह अभियोजन कथानक से मुकर गया और यह क्यों हुआ मुख्तार के आपराधिक इतिहास से समझा जा सकता है।
साक्ष्यों के परिशीलन से कोर्ट ने मुख्तार को आइपीसी की धारा 353, 504 और 506 के तहत दोषी पाया। कोर्ट ने मुख्तार को धारा 353 के तहत दो साल की सजा और दस हजार रुपये जुर्माना, धारा 504 के तहत दो साल की सजा और दो हजार रुपये जुर्माना और धारा 506 के तहत सात साल की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई जो कि साथ साथ चलेंगी।
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