करोड़ों के घालमेल में इस सवालों के कटघरे में लविवि, नहीं दी थी बैंक को कोई सूचना Lucknow News
लविवि के खाते से एक करोड़ 9 नौ लाख 82935 रुपये के घालमेल का मामला।
लखनऊ, जेएनएन। सरकारी पैसों के हिसाब किताब और लेखा-जोखा की जिम्मेदार जिसे दी गई, उसे किश्तों में खाते से गायब हो रही रकम की जानकारी न हो सकी। यह कैसे संभव है? बैंक प्रत्येक माह खाते का ब्योरा लखनऊ विश्वविद्यालय को देता रहा। ताकि ट्रांजेक्शन संबंधी जानकारी विश्वविद्यालय प्रशासन को हो सके। ऐसे में लविवि प्रशासन द्वारा मामले को सिर्फ क्लोनिंग करार देकर पल्ला झाडऩा है।
केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार। आम जनमानस के पैसों का दुरुपयोग न हो इसके लिए हर संभव प्रयास कर रही ही। डिजिटल ट्रांजेक्शन पर अधिक से अधिक जोर दिया जा रहा है। ऑनलाइन होने वाले सस्पेक्टेड ट्रांजेक्शन की भी बराबर निगरानी की जा रही है। वहीं इस दौर में लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा यह प्रचार किया जाना कि वर्ष 2000 की चेक की क्लोनिंग कर 2019 में खाते से रकम निकाल लिया गया, समझ से परे हैं। तनिक देर यदि लविवि प्रशासन के बयान पर यकीन कर भी लिया तो जानकार इस बात का दावा करते हैं कि इतना बड़ा घालमेल बिना विवि के मिली भगत के संभव नहीं।
सवालों के घेरे में लविवि
- क्या 19 वर्ष तक हस्ताक्षर कर्ता अधिकारी समान थे? यदि समान नहीं थे तो चेक कैसे पास हो गया ? मतलब यह है कि अधिकारियों के बदलते ही बैंक में सिग्नेचर कार्डं बदल दिए जाते है। ऐसे में संभव ही नहीं है कि वर्ष 2000 की चेकों से 2019 में भुगतान हासिल किया जा सके।
- पिछले 19 वर्षों में बैंक चेक की सुरक्षा नियमों में काफी बदलाव हुए हैं। जैसे चेक का साइज, चेक का रंग, सीटीएस सुरक्षा मानक, एमआइसीआर आदि।
- 2000 में अधिकांश बैंकें मैनुअल रहीं हैं। यूको बैंक वर्ष 2005 के बाद सीबीएस हुई है। ऐसे में लविवि का दावा अपने आप में ही हास्यास्पद है।
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लविवि ने बैंक को ही नहीं दी सूचना
लखनऊ विश्वविद्यालय में करोड़ों रुपये के घालमेल के मामले कुछ अन्य चीजें जानकार आप भी चौंक जाएंगे। शुक्रवार को मीडिया के सामने बैंकों को कटघरे में खड़े करने वाले जिम्मेदारों ने इस घटना की जानकारी खुद बैंक प्रबंधन को ही देनी मुनासिब नहीं समझी। बेहद संवेदनशील मामले को लेकर लविवि प्रशासन का रवैया कई और बड़े सवाल उठा रहा है।
लविवि क्यों नहीं अपना रहा डिजिटल सिस्टम
लविवि के खाते से करोड़ों रुपये का गलत ढंग से बीते एक वर्ष के भीतर भुगतान होना भुगतान व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। हर विभाग द्वारा पीएम के डिजिटल इंडिया पर काम करने की ओर कदम बढ़ चुके हैं, मगर लविवि में अभी भी मैनुअल काम हो रहा है।
क्या कहते हैं एकेटीयू कुलपति?
एकेटीयू कुलपति प्रो विनय कुमार पाठक ने बताया कि मामूली नहीं लविवि के खाते से एक करोड़ से अधिक रुपये गलत ढंग से निकल जाना अत्यंत गंभीर विषय हैं। हमारे यहां सभी लेनदेन डिजिटल मोड में ही किए जा रहे हैं। पारदर्शी व्यवस्था के लिए डिजिटल पेमेंट सशक्त माध्यम है। मौजूदा समय में मैनुअल सिस्टम भ्रष्टाचार को खुली दावत है।
क्या कहते हैं बैंक प्रबंधक?
यूको बैंक प्रबंधक आंचलिक वीके वर्मा के मुताबिक, किसी पर भी आरोप लगाना बहुत आसान है। लखनऊ विश्वविद्यालय की ओर से हमें अभी तक किसी तरह का लिखित पत्राचार नहीं किया गया। बैंक ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। समय समय पर उन्हें (लविवि) को खाते का स्टेटमेंट दिया गया है। अगर ऐसा कुछ भी था, तो विवि को तत्काल जानकारी देनी चाहिए थी। यह मामला हमारी प्राथमिकता में है।
क्या कहते हैं लविवि प्रवक्ता ?
लविवि प्रवक्ता प्रो एनके पाण्डेय ने बताया कि लविवि अपने यहां लेखा या वित्त के मेंटीनेंस कार्यों में जो भी कमियां हैं, उसे दूर करने के लिए कमेटी गठित की गई है। कमेटी द्वारा जांच कर हमारी व्यवस्था में जो कमी है, उस संबंध में एक सप्ताह में रिपोर्ट देगी। इसके अलावा यूको बैंक को सभी चेकों का ब्योरा भेजकर फ्रॉड ट्रांजेक्शन के जरिए खाते से हुए भुगतान की रिकवरी मांगी गई है।