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जालसाजों ने लविवि के खाते से उड़ाए एक करोड़ रुपये, चेक क्‍लोनिंग कर लगाया चूना Lucknow News

लखनऊ विश्वविद्यालय में चेकों की क्लोनिंग कर दिया वारदात को अंजाम हसनगंज थाने में दर्ज हुआ मुकदमा। 11 फर्मों के नाम से काटी गई चेक विवि और बैंक कर्मियों की भूमिका संदेह के घेरे मे

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 04 Oct 2019 03:45 PM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 07:05 AM (IST)
जालसाजों ने लविवि के खाते से उड़ाए एक करोड़ रुपये, चेक क्‍लोनिंग कर लगाया चूना Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। लखनऊ विश्वविद्यालय में फर्जी मार्कशीट बनाए जाने के मामले का अभी पटापेक्ष भी नहीं हुआ था कि एक करोड़ से अधिक की जालसाजी भी उजागर हो गई। जालसाजों ने यूको बैंक में चल रहे विवि के खातों में सेंध लगाकर 11 चेकों की क्लोनिंग कर 1,09,82,935 रुपये निकाल लिए। जालसाजों ने यह रुपये अलग-अलग बैंकों में 11 फर्मों के नाम ट्रांसफर किए। इसके बारे में जब प्रबंधन को पता चला तो हड़कंप मच गया। प्रबंधन ने इस संबंध में हसनगंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया है। 

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एसएसपी कलानिधि के निर्देश पर सीओ महानगर सोनम कुमार, इंस्पेक्टर हसनगंज धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा और क्राइम ब्रांच समेत चार टीमें मामले की जांच में लगी हैं। पूरे प्रकरण में विवि और बैंक कर्मचारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है। गुरुवार को विवि के कुलपति प्रो. एसपी सिंह ने प्रेस वार्ता कर पूरे मामले की जानकारी दी। 

इन फर्मों के खाते में डाले गए रुपये

फर्म का नाम              -        रुपये 

मेसर्स केके कंस्ट्रक्शन   -                999570

मेसर्स दिव्या इलेक्ट्रिकल्स  -             997864

मेसर्स दिव्या इलेक्ट्रिकल्स   -            998570

मेसर्स दिव्या इलेक्ट्रिकल्स   -            998620

मेसर्स दिव्या इलेक्ट्रिकल्स    -           998775

मेसर्स दिव्या इलेक्ट्रिकल्स    -           999695

मेसर्स शाह एजेंसी           -             996595

मेसर्स रीविश्वा                 -          998360

मेसर्स शाह एजेंसी            -           998210

मेसर्स मीना एंड संस          -          998566

मेसर्स मां वैष्णो इंटरप्राइजेज   -          998110

जिनकी हुई क्लोनिंग उन चेकों को पहले ही जारी कर चुका है विवि 

पूरे मामले में खास बात यह है कि जिन 11 चेकों की क्लोनिंग हुई है, उनमें से 10 चेकों को विवि भुगतान के लिए विभिन्न मदों में जारी कर चुका है। कुलपति प्रो. एसपी सिंह ने बताया कि विवि प्रबंधन ने वर्ष 2000 में यूको बैंक से जारी चेकबुक पर उस समय उक्त चेकों को 400, 500, 687 और 700 रुपये के भुगतान के लिए जारी किया था। जालसाजों ने इनकी क्लोनिंग कर उन्हीं नंबर के चेकों से नौ लाख से अधिक और 10 लाख से कम रुपये उड़ाए। 

इन फर्मों का विवि में नहीं है रिकॉर्ड 

कुलपति ने बताया कि जिन फर्मों के खाते में रुपये ट्रांसफर किए गए हैं, उनका रिकॉर्ड विश्वविद्यालय में नहीं है। न ही इन फर्मों के माध्यम से विश्वविद्यालय में कभी कोई काम कराया गया है।

इन बैंकों में ट्रांसफर हुए 

इंस्पेक्टर हसनगंज धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा ने बताया कि उक्त फर्मों के खाते पंजाब बैंक, इंडियन बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और केनरा बैंक में हैं। इन्हीं में रुपये ट्रांसफर हुए हैं। फर्म के बारे में ब्योरा जुटाने के साथ ही कौन-कौन सी ब्रांच में रुपये ट्रांसफर हुए और कई अन्य बिंदुओं पर पूरे मामले की पड़ताल की जा रही है। इस संबंध में विवि और बैंक कर्मचारियों के भी बयान दर्ज किए जाएंगे। 

11 फर्मों के नाम से हुआ भुगतान 

लविवि के कुलपति एसपी सिंह ने बताया कि लविवि के एकाउंट से अप्रैल 2018 से एक मई 2019 के बीच 11 चेक से के जरिये से 1,0982935 रुपये खाते से निकाले गए। निकाले गए। इन चेक के माध्‍यम से 11 अलग अलग फर्मों को भुगतान किया गया। मामला उजागर होने पर इसकी रिपोर्ट लविवि प्रशासन ने हसनगंज थाने में दर्ज कराई। जिसके बाद पुलिस मामले की जांच में जुटी हुई है।

वर्ष 2000 की चेक हुई क्‍लोनिंग 

कुलपति ने जानकारी दी कि भुगतान करने में वर्ष 2000 की चेक जो पहले इश्यू हो चुकी थी उनका इस्‍तेमाल किया गया। पुलिस के मुताबिक जालसाजों ने चेक की क्लोनिंग कर वारदात को अंजाम दिया।

इन बैंकों से निकाले गए रुपये 

चेक का भुगतान पंजाब बैंक, इंडियन बैंक, यूनियन बैंक आफ इंडिया और केनरा बैंक से किया गया। ये सभी क्‍लोन चेक यूको बैंक की थीं। वीसी प्रो. एसपी सिंह जांच के लिए इंटरनल कमेटी गठित कर जल्‍द से जल्‍द पूरे प्रकरण की जांच कराने के निर्देश दिए। 

विवि और बैंक की साठगांठ से हुई जालसाजी 

पूरे मामले में विश्‍वविद्यालय प्रशासन की भी बड़ी लापरवाही उजागर हुई है। एक साल तक यूनिवर्सिटी के खाते से पैसे निकाले जाते रहे, लेकिन प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी। वहीं मामला उजागर होने पर प्रेस वार्ता करके एलयू प्रशासन ने अपना पल्‍ला झाड़ने की कोशिश की। पूरे प्रकरण में लविवि प्रशासन और बैंक की मिलीभगत होने की आशंका साफ नजर आ रही है। 


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