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पहले हल्ला होगा फिर चुप्पी और उसके बाद स्वीकार्यता

हिंदी साहित्य की प्रथम विद्रोहिणी निश्चित रूप से मीरा बाई ही रहीं, पर हमने उन्हें हमेशा कृष्ण भक्त संत कवि के रूप में ही पढ़ा, जाना और समझा।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 09 Oct 2016 11:40 PM (IST)Updated: Sun, 09 Oct 2016 11:51 PM (IST)

लखनऊ ( दुर्गा शर्मा)। मैं तो अपने नारायण की आप ही हो गई दासी रे। लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे।.....हिंदी साहित्य की प्रथम विद्रोहिणी निश्चित रूप से मीरा बाई ही रहीं, पर हमने उन्हें हमेशा कृष्ण भक्त संत कवि के रूप में ही पढ़ा, जाना और समझा। यह विद्रोह था थोपे गए रिश्तों को त्यागकर ऐच्छिक संबंध और उसके लिए मुख्तार होने का। मीरा ने खिलाफत की तो उसे तरह-तरह के उद्बोधन और उलाहना मिले। यह सिलसिला थमा नहीं है। आज भी पुरुष सत्ता से निकलकर महिलाएं अपनी बोली बोलती हैं तो हंगामा बरपा होता है। आखिर यह हल्ला कब थमेगा? जागरण संवादी के जरिए साहित्य जगत की दो हस्तियों मैत्रेयी पुष्पा और गीताश्री ने सम्मान नहीं समानता के लिए संवाद किया।

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कविता और साहित्य से लोगों को कनेक्ट करने की जरूरत

स्त्री विमर्श पर खूब लेखनी चली। पुरुषों ने तो लिखा ही महिलाओं ने भी पीड़ा को आवाज देकर आजादी मांगी। अंतर बस यही रहा कि पुरुषों ने अनुमान से लिखा तो महिला रचनाकारों ने अनुभव से कलम उठाया। पुरुष प्रधान सामंती समाज के विरुद्ध स्त्री मुक्ति के दर्शन के रूप में मैत्रेयी पुष्पा ने चाक उपन्यास लिखा। कलावती चाची और सारंग जैसे किरदारों के जरिए पुरुष सत्ता से बगावत की। इसके बाद जो हंगामा हुआ जगजाहिर है। प्रसंग का जिक्र करते हुए मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि 'मंटो पर तो मुकदमा हुआ पर शुक्र है मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि पीड़ा से ही खिलाफत के स्वर निकलते हैं। जब तक स्त्री दृष्टि नहीं होगी तब तक महिला लेखकों का सही मूल्यांकन नहीं हो सकेगा।

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वहीं गीताश्री ने कहा कि मैत्रेयी पुष्पा ने विद्रोह का रोशनदान खोला है, जिससे आए उजाले ने अब एक फौज सी खड़ी कर दी है। हमारी पीढ़ी ने तो फिर भी लिहाज किया पर अब जो पीढ़ी आ रही है (खासकर 25-35 वर्ष) वह लिहाज नहीं कर रही। पहले जो महिला लेखक आईं उन्होंने साहित्य के लिए द्वार लांघा पर मौजूदा लेखिकाएं रोजगार, कॅरियर और अन्य विकल्पों के लिए किवाड़ खोल रही हैं। यह सम्मान नहीं समानता चाहती हैं। पुरुष सत्ता थोड़ा साहस दिखाए और उन्हें समानता दें। गीताश्री ने एक प्रसंग का जिक्र किया कि एक साहित्य महोत्सव में दो महिला साहित्यकारों ने भी शिरकत की। विचार जानना तो दूर मंच पर से उनका नाम तक लेना किसी को गंवारा नहीं हुआ। उन्होंने सुझाव भी दिया कि हम मूल्यांकन के लिए दूसरों की ओर क्यों देखें। हम खुद के बीच से एक आलोचक बनाने का क्यों नहीं सोच पाते? हम महिला साहित्य सम्मेलन पर क्यों नहीं विचार करते?

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पाठक पढऩा शुरू करें तो सब मिलेगा

संवादी के दौरान महिला लेखकों की रचनाओं में विषयों की विविधता की कमी का मुद्दा भी उठा। इस पर दोनों महिला साहित्यकारों ने सार रूप में कहा कि मन्नू भंडारी राजनीतिक पृष्ठभूमि पर केंद्रित महाभोज जैसा उपन्यास रच देती हैं। दैहिक आजादी के इतर अन्य विषयों पर भी महिला लेखक लिख रही हैं। विषयों में विविधता है और विस्तार दिया जा रहा है। पाठक पढऩा शुरू करें तो सब मिलेगा।

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कलम उठाएं देर नहीं हुई है

मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि उन्होंने बहुत देर में कलम उठाया। जब उन्होंने लिखना शुरू किया तो उन्हें एहसास हुआ कि कभी देरी नहीं होती। आप भी अपनी अभिव्यक्ति को आकार दें। पहले हल्ला होगा, फिर चुप्पी और उसके बाद स्वीकार्यता जरूर होगी।


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