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‘न काम बोल पाया और न साथ पसंद आया’, इसलिए यूपी में बदल गया चुनावी समीकरण

लोकसभा चुनावों के लिए यूपी में चुनावी समीकरण बदलने के बाद पुराने नारे पीछे छूट गए हैं। बदले समीकरण में इन चर्चित नारों की भूमिका भी बदल गई है। जानें- क्या है पूरा मामला?

By Amit SinghEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 02:21 PM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 06:33 PM (IST)
‘न काम बोल पाया और न साथ पसंद आया’, इसलिए यूपी में बदल गया चुनावी समीकरण
‘न काम बोल पाया और न साथ पसंद आया’, इसलिए यूपी में बदल गया चुनावी समीकरण

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आगामी लोकसभा चुनावों के लिए यूपी में सियासी बिसात बिछ चुकी है। इस बिसात पर इस बार साइकिल, हाथी की सवारी करती दिखेगी। इससे पहले यूपी विधानसभा चुनाव में यूपी में साइकिल को हाथ का साथ मिला था, लेकिन लोगों को ये साथ पसंद नहीं आया। ऐसे में गणबंधन के बदले समीकरण में यूपी की सियासत दिलचस्प होने वाली है। साथ ही दिलचस्प होने वाले हैं इस बार के चुनावी नारे भी। हो सकता है सपा-बसपा गठबंधन में अपनी भूमिका तलाश रहे अखिलेश के विधानसभा चुनाव के साथी राहुल ये कहते नजर आएं कि ‘क्या हुआ तेरा वादा’।

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मालूम हो कि 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनावों में सपा और कांग्रेस साथ-साथ थे। गठबंधन को मजबूत करने और दोनों पार्टियों को एकजुट दिखाने के लिए राहुल और अखिलेश की गलबहियां करते हुए फोटो और वीडियो आम हो गए थे। दोनों एक-दूसरे की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। इस गठबंधन से पहले विधानसभा चुनाव के लिए सपा का नारा था ‘काम बोलता है’, इस नारे के सहारे सपा अपनी सरकार में किए गए कामों की बदौलत दोबारा सत्ता पर काबिज होना चाहती थी।

सपा-कांग्रेस गठबंधन के बाद सपा का ‘काम बोलता है’ नारा पीछे छूट गया। नए समीकरण में नया नारा सामने आया ‘यूपी को ये साथ पसंद है’, ‘अखिलेश नहीं ये आंधी है, साथ में राहुल गांधी है’ और ‘अपने लड़के (यूपी के लड़के), बाहरी मोदी’। वहीं इस गठबंधन से पहले कांग्रेस का नारा था ’27 साल यूपी बेहाल’। इस नारे के जरिए कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में शासन करने चुकी सपा समेत बसपा और भाजपा तीनों पार्टियों पर निशाना साध रही थी। हालांकि, गठबंधन के बाद कांग्रेस का भी ये नारा पीछे छूट गया।

यूपी विधानसभा चुनाव-2017 में ही बसपा ने सपा-कांग्रेस गठबंधन समेत भाजपा पर भी जमकर हमला किया था। बसपा ने नारा दिया था ‘बहनजी को आने दो’। लोकसभा चुनाव 2019 में हो सकता है यूपी वालों को फिर से वही पुराना नारा सुनाई दे ‘यूपी को ये साथ पसंद है’, लेकिन इस बार ये साथ सपा-बसपा का होगा। इस चुनाव में भाजपा ने सपा-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ नारा दिया था ‘न गुंडाराज, न भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार’।

जय-वीरू की जोड़ी टूटी तो हो गए हमलावर
आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी के लड़कों जय-वीरू (अखिलेश-राहुल) की जोड़ी क्या टूटी, दोनों एक-दूसरे पर हमलावर भी हो गए हैं। शुक्रवार को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती ने संयुक्त प्रेसवार्ता कर न केवल गठबंधन पर, बल्कि सीटों के बंटवारे पर भी मुहर लगा दी। इसके साथ ही मायावती ने यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश के साथी रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत भाजपा पर भी जमकर निशाना साधा। मायावती ने कहा कि कांग्रेस राज में घोषित इमरजेंसी थी और अब देश में अघोषित इमरजेंसी है।

कांग्रेस पर लगाया धोखा देने का आरोप
मायावती ने कहा कि कांग्रेस के साथ सपा-बसपा गठबंधन का कोई खास फायदा नहीं होता। हमारा वोट तो ट्रांसफर हो जाता है, लेकिन कांग्रेस का वोट ट्रांसफर नहीं होता है या अंदरूनी रणनीति के तहत कहीं और करा दिया जाता है। इसमें हमारी जैसी ईमानदार पार्टी का वोट घट जाता है। 96 में हमारे लिए कड़वा अनुभव था। 1993 में सपा बसपा का वोट ईमानदारी से ट्रांसफर हुआ था इसलिये हमारे गठबंधन में कोई हर्ज नहीं है।

ये गठबंधन कितना लंबे चलेगा
गठबंधन की संयुक्त प्रेसवार्ता के दौरान अखिलेश यादव ने मायावती का धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा मायावती जी का धन्यवाद कि उन्होंने बराबरी का मान दिया। यूपी विधानसभा चुनाव तक बसपा पर हमला करने वाले अखिलेश के सुर अब बदल चुके हैं। लिहाजा, उन्होंने कहा कि आज से मायावती जी का अपमान मेरा अपमान होगा। उन्होंने दावा किया कि ये गठबंधन लंबा चलेगा, स्थाई रहेगा और अगले विधानसभा चुनाव तक बना रहेगा। अखिलेश ने ऐसा ही कुछ दावा कांग्रेस से गठबंधन के वक्त भी किया था, लेकिन दोनों का साथ दो वर्ष भी नहीं चला। अब देखते हैं बसपा संग गठबंधन को लेकर अखिलेश का दावा कितना सही साबित होता है।

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